Move to Jagran APP

पाकिस्तान की बढ़ी मुश्किलें, झेलनी पड़ी कूटनीतिक शर्मिंदगी

पाकिस्तान को उस समय कूटनीतिक शर्मिदगी का सामना पड़ा जब अशरफ गनी ने शाहिद अब्बासी से फोन पर बातचीत करने से इनकार कर दिया।

By Manish NegiEdited By: Published: Wed, 31 Jan 2018 08:46 PM (IST)Updated: Thu, 01 Feb 2018 07:38 AM (IST)
पाकिस्तान की बढ़ी मुश्किलें, झेलनी पड़ी कूटनीतिक शर्मिंदगी
पाकिस्तान की बढ़ी मुश्किलें, झेलनी पड़ी कूटनीतिक शर्मिंदगी

नीलू रंजन, नई दिल्ली। मुंबई हमले के बाद अमेरिका को बरगलाने में सफल रहे पाकिस्तान के लिए काबुल हमले के बाद मुश्किलें बढ़ गई हैं। अब तो हालात ऐसे हो गए हैं कि अफगानिस्तानी राष्ट्रपति अशरफ गनी ने बुधवार को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद अब्बासी से फोन तक पर बात करने से इनकार कर दिया। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लंबी बात की। अमेरिका पहले ही पाकिस्तान को आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई का अल्टीमेटम दे चुका है।

loksabha election banner

मंगलवार को पाकिस्तान को उस समय कूटनीतिक शर्मिदगी का सामना पड़ा जब अशरफ गनी ने शाहिद अब्बासी से फोन पर बातचीत करने से इनकार कर दिया। गनी पिछले चंद दिनों में काबुल में दो बड़े आतंकी हमले से नाराज हैं, जिनके पीछे पाक खुफिया एजेंसी आइएसआइ का हाथ होने के सबूत मिल रहे हैं। दोनों हमले में लगभग डेढ़ सौ लोग मारे गए थे। वहीं अशरफ गनी ने नरेंद्र मोदी से लंबी बातचीत की। मोदी ने घनी से हमले में घायल हुए लोगों की इलाज में सहायता की पेशकश की। जिसपर घनी ने उनका आभार जताया।

दरअसल पाकिस्तान काबुल में बड़े हमलों के साथ अमेरिका को संदेश देना चाहता है कि अफगानिस्तान में शांति उसके सहयोग के बिना संभव नहीं है। पाकिस्तान चाहता है कि अमेरिका तालिबान को अफगानिस्तान में बड़ी ताकत के रूप में स्वीकार करे और स्थायी शांति के लिए उससे बातचीत के लिए तैयार हो जाएगा। लेकिन इस बार पाकिस्तान का खेल उल्टा पड़ सकता है। पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद से पीड़ित भारत और अफगानिस्तान के साथ अमेरिका की इस क्षेत्र में आतंकवाद को जड़मूल से खत्म करने के लिए कूटनीतिक एकजुटता बढ़ती जा रही है। काबुल हमलों के बाद भी अमेरिका ने तालिबान के साथ किसी भी तरह की बातचीत से इनकार कर दिया है और उसके खिलाफ कार्रवाई का ऐलान किया है। यही नहीं, अफगानिस्तान, अमेरिका और भारत की जल्द ही भावी रणनीति को लेकर एक अहम बैठक होने वाली है। इस बैठक की रजामंदी अक्टूबर, 2017 में अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन और सुषमा स्वराज के बीच हुई बातचीत में बनी थी।

जाहिर है इस बार पाकिस्तान के लिए दुनिया की आंखों में धूल झोंककर बचना आसान नहीं होगा और उसे चार दशक से पाले गए तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। आतंकवाद के मामले में पूरी तरह से घिर चुके पाकिस्तान के लिए इसके अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। शायद यही कारण है कि पाकिस्तान ने अब अफगानिस्तान को 85 हक्कानी नेटवर्क और तालिबानी आतंकियों को सौंपने का संकेत भी दे दिया है। अफगानिस्तान का आरोप है कि पाकिस्तान के भीतर रहकर ये आतंकी सीमा पार हमलों को अंजाम देते रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.