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कड़े नियमों के बीच श्रद्धालुओं के लिए खुला पद्मनाभ मंदिर, एक दिन पहले करानी होगी बुकिंग

तिरुवंतपुरम स्थित भगवान पद्मनाभ मंदिर को कोरोना काल में कड़े नियमों के बीच श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है। जानें कैसे कर पाएंगे भगवान पद्मनाभ के दर्शन...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 26 Aug 2020 06:52 PM (IST)Updated: Thu, 27 Aug 2020 04:49 AM (IST)
कड़े नियमों के बीच श्रद्धालुओं के लिए खुला पद्मनाभ मंदिर, एक दिन पहले करानी होगी बुकिंग
कड़े नियमों के बीच श्रद्धालुओं के लिए खुला पद्मनाभ मंदिर, एक दिन पहले करानी होगी बुकिंग

तिरुवंतपुरम, पीटीआइ। तिरुवंतपुरम स्थित भगवान पद्मनाभ मंदिर को कोरोना काल में कड़े नियमों के बीच श्रद्धालुओं के लिए बुधवार को खोल दिया गया। पहले दिन सुबह लगभग दो सौ लोगों ने दर्शन-पूजन किया। यहां 21 मार्च से दर्शन पर रोक थी। शारीरिक दूरी का पालन कराने के लिए हर तरह के प्रबंध किए गए हैं। केरल की पिनराई विजयन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले कांग्रेस विधायक वीडी सतीशन ने भी मंदिर पहुंचकर भगवान विष्णु को नमन किया।

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दर्शन के लिए लोगों को मंदिर की वेबसाइट पर जाकर एक दिन पहले ऑनलाइन बुकिंग करानी होगी। इसके लिए उन्हें अपने आधार कार्ड की कॉपी देनी होगी। श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश दिलाने के लिए उत्तरी गेट पर काउंटर खोले गए हैं। एक बार में सिर्फ 35 लोगों को ही अंदर जाने की अनुमति होगी। जबकि एक दिन में श्रद्धालुओं की संख्या अधिकतम संख्या 665 होगी। यहां 60 साल के ऊपर के लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। बच्चों के प्रवेश को भी रोका गया है।

समाचार एजेंसी पीटीआइ के मुताबिक, श्रद्धालुओं को मास्क लगाए रखना होगा और मंदिर के सामने साबुन से हाथ धोने के बाद ही उन्हें प्रवेश दिया जाएगा। कोरोना संक्रमण को देखते हुए बीते 21 मार्च से मंदिर बंद था। मंदिर की ओर से बताया गया कि सुबह आठ से 11 बजे दिन तक और शाम पांच बजे से शाम 6:45 के आसपास दीप आराधना के समय तक दर्शन की अनुमति दी जाएगी। एक समय में केवल 35 लोगों को ही मंदिर में प्रवेश करने दिया जाएगा।

बता दें कि तहखानों में अकूत खजाने को लेकर इस मंदिर की विश्वव्यापी ख्याति रही है। अभी भी मंदिर का एक तहखाना नहीं खोला गया है। कहा जाता है इस रहस्‍यमय कक्ष में सबसे ज्यादा संपत्ति है। इस कक्ष के द्वार पर दो सांप बने हुए हैं। त्रावणकोर के राजाओं द्वारा निर्मित इस मंदिर के लिए 1750 में महाराज मार्तंड वर्मा ने खुद को भगवान का सेवक बताते हुए अपनी सारी संपत्ति भगवान के नाम कर दिया था। यह भी पढ़ें- जानें क्‍यों नहीं खोला जा सका है तहखाने का एक कक्ष 


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