Move to Jagran APP

फेक न्यूज से कुल मिलाकर मौजूदा मान्यताओं को ही मिलती है और मजबूती

ब्रिटेन में रहने वाले एक भारतीय शोधकर्ता सायन बनर्जी के मुताबिक फर्जी खबर लोगों के राजनीतिक विचारों को नहीं बदलती बल्कि मौजूदा मान्यताओं को और मजबूत करती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 13 May 2019 10:54 AM (IST)Updated: Mon, 13 May 2019 10:54 AM (IST)
फेक न्यूज से कुल मिलाकर मौजूदा मान्यताओं को ही मिलती है और मजबूती

नई दिल्ली, प्रेट्र। सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिये फेक न्यूज यानी फर्जी खबर का बढ़ता प्रसार दुनियाभर के देशों के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। अब शोधकर्ताओं ने अध्ययन कर यह पता लगाने का दावा किया है कि भारत में वाट्सएप पर प्रसारित होने वाले गलत सूचना संदेश (फेक न्यूज) वोटरों को कैसे प्रभावित कर रहे हैं।

loksabha election banner

ब्रिटेन में रहने वाले एक भारतीय शोधकर्ता सायन बनर्जी के मुताबिक, फर्जी खबर लोगों के राजनीतिक विचारों को नहीं बदलती, बल्कि, मौजूदा मान्यताओं को और मजबूत करती है। साथ ही, यह हमारे भीतर मौजूद सबसे खराब विचारों को भी बाहर ले आती है। कई रिपोर्ट यह भी कहती हैं कि फेक न्यूज के जरिये किसी के

प्रति गलत धारणाएं बनाकर राजनीतिक पार्टी के उम्मीदवारों या किसी समूह के सदस्यों के प्रति वोटरों की पसंद को बदला जा सकता है।

ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स के बनर्जी और उनकी टीम यह समझना चाहती थी कि भारत जैसे विकासशील देशों में वाट्सएप जैसे सोशल मीडिया मंचों पर फारवर्ड की जाने वालीं फर्जी खबरें कैसे लोगों के राजनीतिक मतों, जातीय हिंसा और सार्वजनिक नीति के विकल्पों को प्रभावित करती हैं। इसके लिए शोधकर्ताओं की एक टीम ने पांच सप्ताह तक देश के 18 निर्वाचन क्षेत्रों का अध्ययन किया। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, और झारखंड के इलाके शामिल थे।

बनर्जी ने कहा, ‘अमेरिका के शोधकर्ताओं ने इस बात का पहले ही पता लगा लिया है कि फेक न्यूज केवल मौजूदा राजनीतिक विचारों और मतों को पुष्ट करती है। लेकिन इससे किसी व्यक्ति के विश्वास को नहीं डिगाया जा सकता।’ उन्होंने कहा कि आज फेक न्यूज एक रोग बनकर हमारे सामने खड़ी है और लोग बिना सोचे समझे एप पर आए संदेशों का फॉरवर्ड कर देते हैं। उन्होंने कहा कि अपने शोध में हमने पाया कि फेक न्यूज केवल एक उत्प्रेरक है, जो हमारे भीतर के दानव को बाहर निकाल देती है।

शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के लिए दो चरणों में प्रयोग किए। पहले चरण में उन्होंने 18 निर्वाचन क्षेत्रों से 3500 मतदाताओं का चुनाव किया और उनकी राजनीतिक प्राथमिकताएं जानीं। इसके बाद अपना फोन नंबर साझा करने के इच्छुक प्रतिभागियों को शोध के लिए चुना। दूसरे चरण में शोधकर्ताओं ने खबर को उसकी सत्यता की जांच कर एक ग्रुप के जरिये साझा किया। साथ ही एक दूसरे ग्रुप से दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुओं और सुरक्षा से संबंधित फेक खबर साझा की।

बनर्जी ने कहा कि ये खबर हानिकार नहीं थी और न ही किसी राजनीतिक पार्टी से संबंधित थी। बनर्जी ने कहा कि इस दौरान हमने पाया कि राजनीतिक पार्टियों के लोग केवल वोट पाने के लिए ऐसे संदेशों को भी अपने वाट्सएप ग्रुपों में साझा कर देते हैं, जिससे हिंसा भड़क सकती है। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता है ऐसे संदेश लोगों को प्रभावित करते हैं। लेकिन सड़क, बिजली जैसे मुद्दे जरूर लोगों को सोचने पर मजबूर करते है।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.