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मेन्स्ट्रूअल हाइजीन डे: ऑर्गेनिक सेनेटरी नैपकिन का प्रयोग बढ़ा, जानिए इसके फायदे

महिलाएं अब सिंथेटिक सामग्रियों से बने पैड की बजाय ऑर्गेनिक सैनेटरी पैड के इस्तेमाल को लेकर जागरुक हो रही हैं।

By Arti YadavEdited By: Published: Mon, 28 May 2018 12:06 PM (IST)Updated: Mon, 28 May 2018 02:23 PM (IST)
मेन्स्ट्रूअल हाइजीन डे: ऑर्गेनिक सेनेटरी नैपकिन का प्रयोग बढ़ा, जानिए इसके फायदे
मेन्स्ट्रूअल हाइजीन डे: ऑर्गेनिक सेनेटरी नैपकिन का प्रयोग बढ़ा, जानिए इसके फायदे

इंदौर (अभिलाषा सक्सेना)। मध्य प्रदेश के इंदौर संभाग के महेश्वर, सनावद और धामनोद में फिल्माई गई अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन ने देश-दुनिया में मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को होने वाली असुविधाओं, संक्रमण और अंधविश्वास की जड़ता को खत्म कर सैनेटरी पैड के इस्तेमाल को लेकर खुली बहस छेड़ी है।

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इंदौर सहित अंचल में अब सिंथेटिक सामग्रियों से बने पैड की बजाय ऑर्गेनिक सैनेटरी पैड को लेकर भी प्रयोग हो रहे हैं। ये पैड केले के रेशे, पाइन वुड, बांस के पल्प व जूट से बनाए जा रहे हैं। प्राकृतिक पदार्थो (एग्रो वेस्ट) से बनने वाले ये पैड इस्तेमाल के बाद स्वत: नष्ट हो जाते हैं। देवास में बनने वाले इन पैड की सप्लाई इंदौर, भोपाल, उज्जैन तक की जा रही है। भारत सरकार इसे स्वच्छ भारत अभियान के तहत प्रोत्साहित कर रही है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 62 फीसद लड़कियां व महिलाएं सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। इनमें शहरी इलाकों में 78 और ग्रामीण में 48 फीसद है। मप्र में 37.6 फीसद महिलाएं इसका प्रयोग करती हैं। ये महिलाएं ज्यादातर सिंथेटिक पैड का इस्तेमाल करती हैं। 2013 में जैविक पैड की शुरुआत हुई। देवास की प्रीति कीर ने बताया कि नैपकिन में बॉयोडिग्रेडेबल पाइन वुड पल्प के अलावा ऑर्गेनिक ग्लू का इस्तेमाल होता है। पैकिंग के लिए कार्न स्टार्च का उपयोग किया जाता है।

8 घंटे में 2000 पैड बनते हैं

मैन्स्ट्रुल हाइजीन को लेकर देशभर में काम कर रही संस्थाओं में से एक रिसर्च एंड डेवलपमेंट हेड आईआईटी खडगपुर के डॉ. मनमाथा महातो ने बताया कि हमने अपनी तकनीक का पेटेंट कराया है। इसमें 8 घंटे में 2000 पैड तैयार हो जाते हैं। इस नैपकिन की खासियत है कि इनमें ज्यादा समय तक सोखने वाले प्लास्टिक और आर्टिफीशियल जेल का इस्तेमाल नहीं किया जाता, ताकि इसे 4 से 6 घंटे में बदल लिया जाए और संक्रमण से बचा जा सके। महातो ने बताया यह पैड 180 दिन में नष्ट हो जाते हैं।

9000 टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट हर महीने

भारत में हर महीने 9000 टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट उन्पन्न होता है। यह कचरा हर महीने जमीन के अंदर धंस जाता है, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक है।


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