प्रधानमंत्री मोदी से मुकाबले को विपक्ष के पास अब गठबंधन ही रास्ता
उत्तरप्रदेश में चुनाव हारने के बावजूद अखिलेश यादव ने सपा-कांग्रेस गठबंधन को जारी रखने की बात कह कांग्रेस को थोड़ी राहत दी।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। उत्तरप्रदेश में मोदी की चुनावी आंधी में सपा-कांग्रेस गठबंधन का साथ बेशक वहां की जनता को पसंद नहीं आया है। मगर उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीते लोकसभा का जो सियासी रिप्ले हुआ है उसके बाद कांग्रेस समेत विपक्ष की सभी पार्टियों के माथे पर चिंता की लकीरें कहीं ज्यादा गहरी हो गई हैं। इन नतीजों में कांग्रेस-सपा और बसपा के प्रदर्शन से साफ है कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केसरिया परचम लहराते हुए आगे बढ़ रही भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनौती देने के लिए अब विपक्ष के पास एकजुट होने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
उत्तरप् रदेश को अगले आम चुनाव का सेमीफाइनल आंका जा रहा था। खासतौर पर कांग्रेस के इस सियासी मैच में बुरी तरह धराशायी होने के बाद अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबले का सियासी समीकरण बनाने के लिए विपक्ष को नए सिरे से राजनीतिक गोलबंदी का रास्ता तलाशना होगा। क्योंकि उत्तरप्रदेश में तीसरे मोर्चे के दलों की कनिष्ठ सहयोगी की भूमिका में आ चुकी कांग्रेस पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना जैसे बडे़ राज्यों में भी तीसरे नंबर पर खिसक चुकी है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ सरीखे राज्यों में भी वह भाजपा के मुकाबले संघर्ष कर रही है।
इस मौजूदा हालात में कांग्रेस किसी भी रुप में मोदी के पराक्रमी सियासत को अकेले चुनौती देने की हालात में नहीं है। साफ तौर पर अब कांग्रेस को राष्ट्रीय राजनीति में प्रासंगिक बने रहना है तो फिर गठबंधन के सहारे भाजपा को चुनौती पेश करने का राजनीतिक समीकरण बनाना ही पडे़गा।
कांग्रेस को इस लिहाज से अब अपने पुराने सत्ता के अहंकार की राजनीतिक धारा को जाहिर तौर पर बदलना होगा। इसके लिए पार्टी के नेतृत्व को खुद सीधी पहल कर इन राज्यों में गठबंधन के सही साथी की तलाश करनी होगी जिसके सहारे मौजूदा सूरत बदली जा सके।
उत्तर प्रदेश में चुनाव हारने के बावजूद अखिलेश यादव ने सपा-कांग्रेस गठबंधन को जारी रखने की बात कह कांग्रेस को थोड़ी राहत दी। मगर कांग्रेस की असली चिंता आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और उडीसा जैसे राज्य में है जहां उसके लिए फिलहाल कोई संभावित गठबंधन का साथी नहीं दिख रहा। तेलंगाना में टीआरएस और आंध्र में जगनमोहन रेड्डी कांग्रेस को तवज्जो देने को तैयार होंगे इसमें संदेह है। तो उडीसा में भाजपा की बढ़ रही चुनौती के बावजूद बीजेडी के लिए कांग्रेस का हाथ थामना फिलहाल मुश्किल दिख रहा है।
पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों के साथ कांग्रेस का गठबंधन तो है मगर पार्टी की यहां दोहरी चुनौती ममता बनर्जी है। राष्ट्रीय सियासत में कांग्रेस ममता और वामपंथी दोनों को साथ लेकर चलना चाहती है। भाजपा बनाम अन्य विपक्षी दल का वैकल्पिक विपक्षी समीकरण ममता के बिना बनाना कांग्रेस के लिए मुश्किल है। ऐसे में साफ है कि उत्तरप्रदेश की जनता को अपने लड़कों का साथ पसंद नहीं आया हो मगर कांग्रेस समेत विपक्षी खेमे के इन दलों को अपनी सियासत बचाने के लिए गठबंधन की राह पर चलना मजबूरी होगी।
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