उलझता जा रहा मुख्य न्यायाधीश पर आरोपों की जांच का मामला, कानूनविदों की यह है राय
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर लगे अमर्यादित आचरण के आरोपों की जांच का मामला उलझता जा रहा है। ऐसे मामले में आगे की कार्यवाही को लेकर पूर्व न्यायाधीश अलग अलग राय रखते हैं।
नई दिल्ली, माला दीक्षित। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर लगे अमर्यादित आचरण के आरोपों की जांच का मामला उलझता जा रहा है। शिकायतकर्ता महिला ने तीन सदस्यीय आंतरिक जांच कमेटी पर सवाल उठाते हुए कमेटी की कार्यवाही में भाग लेने से इन्कार कर दिया है। शिकायतकर्ता के इन्कार के बाद बुधवार को कमेटी की सुनवाई नहीं हुई। ऐसे मामले में आगे की कार्यवाही को लेकर पूर्व न्यायाधीश अलग अलग राय रखते हैं।
कोई कहता है कि शिकायतकर्ता महिला के बयान और पेश सामग्री के आधार पर कमेटी अपनी रिपोर्ट दे देगी। तो किसी का कहना है कि ऐसे मामले मे जांच कमेटी तब तक रिपोर्ट नहीं दे सकती जब तक कि शिकायतकर्ता की ओर से पेश सामग्री की सत्यता न जांच ली जाए। और कोई महिला की ओर से उठाई गई कुछ आपत्तियों को गैर वाजिब मानते हैं। सुप्रीम कोर्ट की पूर्व कर्मचारी शिकायतकर्ता महिला ने बुधवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कमेटी की कार्यवाही में आगे से भाग न लेने की घोषणा की थी। उसमें महिला ने कहा था कि कमेटी ने उसे वकील साथ रखने की इजाजत नहीं दी है न ही उसे उसके बयान की प्रति उपलब्ध कराई गई है। कार्यवाही की आडियो वीडियो रिकार्डिग भी नहीं हो रही उसे इस कमेटी से न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है। इसलिए वह आगे से इसकी कार्रवाही में भाग नहीं लेगी।
मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे, इन्दिरा बनर्जी और इंदू मल्होत्रा की कमेटी कर रही है। महिला की ओर से कमेटी के बहिष्कार के कारणों मे वकील को साथ रखने की इजाजत न मिलना और देरी से शिकायत करने के बारे में बार बार सवाल पूछे जाने का भी कारण दिया गया है। इन आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश ज्ञान सुधा मिश्रा कहती हैं कि यह प्रारंभिक जांच है जिसमें अभी शिकायतकर्ता महिला के बयान दर्ज हो रहे थे। उसके साथ क्या हुआ वह घटना सिर्फ महिला ही बता सकती है, उसमें वकील क्या बताएगा। प्रारंभिक जांच में वकील के जाने का कोई औचित्य समझ नहीं आता।
जस्टिस मिश्रा कहती हैं कि जब मामले में गवाहों से जिरह की स्थिति आती तो शायद वकील की मांग वाजिब हो सकती थी। जस्टिस मिश्रा का यह भी कहना है कि जांच कमेटी निष्पक्ष होगी। जरूरी नहीं कि कमेटी मे हर बात शिकायतकर्ता के मनमाफिक हो। ये प्रश्न वाजिब है कि उसने इतनी देर से शिकायत क्यों की और उसे कमेटी को इसका जवाब देना होगा। कमेटी जांच के दौरान सच्चाई का पता लगाने के लिए कुछ ऐसे सवाल भी पूछ सकती जो उसे अच्छे न लगें। इन आधारों पर कमेटी पर सवाल उठाना बिल्कुल गैर वाजिब है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह महिला के कार्यवाही में भाग लेने से इन्कार करने के बाद आगे की कार्यवाही के बारे में कहते हैं कि कमेटी के सामने महिला ने जो बयान दर्ज कराए हैं और जो सबूत पेश किये हैं उन्हीं के आधार पर कमेटी अपनी रिपोर्ट दे देगी। जबकि दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश आरएस सोढ़ी इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि कमेटी ऐसे रिपोर्ट नहीं दे सकती उसे महिला के बयान के साथ पेश सामग्री की सत्यता भी परखनी होगी। जब तक सामग्री की सत्यता नहीं परखी जाती तबतक वो सबूत का रूप नहीं ले सकती।
हालांकि, जस्टिस सोढ़ी कहते हैं कि इस मामले मे अब सबसे जरूरी ये है कि मुख्य न्यायाधीश को साजिशन फंसाए जाने के आरोपों की जांच शुरू होनी चाहिए। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस एके पटनायक को जल्दी से जल्दी जांच करके रिपोर्ट दे देनी चाहिए। ताकि यह साफ हो कि मुख्य न्यायाधीश को फंसाने के पीछे कोई बड़ी साजिश या फिक्सिंग लाबी तो शामिल नहीं है। जस्टिस पटनायक को सुप्रीम कोर्ट ने वकील उत्सव बेंस द्वारा हलफनामा दाखिल कर मुख्य न्यायाधीश को फंसाए जाने की साजिश के लगाए गए आरोपों की जांच सौंपी है।