ऑपरेशन मेघदूत: जब भारत ने बर्फ में खोदी थी पाकिस्तान की कब्र, किया था सियाचिन पर कब्जा
1984 में भारतीय सेना के जवानों ने सियाचिन पर कब्जा कर न सिर्फ पाकिस्तान की चाल को नाकाम कर दिया था बल्कि पाक सेना के जवानों की कब्र भी खोद दी थी।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। सियाचिन, दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। यहां पर कुछ भी कर पाना आसान नहीं होता है। इसके बाद भी भारतीय फौज के जांबाज यहां पर हमेशा डटे रहते हैं। उन्हें यहां पर बर्फीली हवाओं और तुफानों का जबरदस्त सामना करना पड़ता है। सियाचिन में भारतीय सीमा के एक तरफ चीन है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान। 1984 में इसी सियाचिन पर कब्जा करने के लिए भारत के जवानों को काफी मुश्किलों का सामना करते हुए यहां तक पहुंचना पड़ा था। पाकिस्तान ने 17 अप्रैल 1984 को सियाचिन पर कब्जा करने की योजना बनाई थी। लेकिन इसकी जानकारी भारत को लग गई। इसके बाद भारत ने पाकिस्तान को हैरत में डालते हुए सियाचिन पर कब्जा करने की योजना बनाई और इसको 'ऑपरेशन मेघदूत' का नाम दिया गया।
वायु सेना की अहम भूमिका
इस ऑपरेशन के तहत भारतीय जवानों को इंदिराकोल से लेकर सिआ ला, बिलाफोंड ला, और गियांग ला पर कब्जा कर सियाचिन को अपने कब्जे में लेने का था। वायु सेना के हेलीकॉप्टरों की बदौलत ही जवानों को ऊंचाई वाले इलाकों तक पहुंचाया जा सका था। 'ऑपरेशन मेघदूत' को सफल बनाने में भारतीय वायु सेना के एमआई-17, एमआई 6 एमआई 8 और चीता हेलीकॉप्टरों ने भी काफी अहम भूमिका निभाई थी। ऑपरेशन का पहला चरण मार्च 1984 में ग्लेशियर के पूर्वी बेस के लिए पैदल मार्च के साथ शुरू हुआ। कुमाऊं रेजिमेंट की एक बटालियन और लद्दाख स्काउट्स की यूनिट ने हथियारों और जरूरी सामान के साथ जोजिला दर्रे से होते हुए सियाचिन की और बढ़ना शुरू किया। लगभग 6500 मीटर की ऊंचाई पर भारतीय जवानों को जिस दुश्मन का सबसे ज्यादा सामना करना था वह था यहां का जानलेवा मौसम। यहां का मौसम पल में बदल जाता था। यहां का तापमान कई जगहों पर -30 तक चला जाता है। इसकी वजह से यहां पर सांस लेना, चलना और बात करना भी काफी मुश्किल काम होता है।
उपकरणों की थी कमी
भारतीय वायुसेना के लिए भी यह टास्क पूरा करना आसान नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि वायुसेना के पायलट को काफी समय तक बर्फ की सफेद चादर देखते रहने से 'सपेशियल डिसऑरियंटेशन' होने लगता है। ऐसे में यहां तैनात जवानों को हाई ब्लडप्रेशन के साथ-साथ मैमोरी लॉस होने तक की शिकायत होने लगती है। इस ऑपरेशन को उस वक्त प्लान किया गया था जब जवानों के पास वहां इस्तेमाल होने वाले पूरे उपकरण भी नहीं थे। ऐसे में उपकरणों को लेने के लिए तत्कालीन सरकार ने लेफिटनेंट जनरल पीएन हून को विदेश भेजा ताकि उपकरण को मंगवाया जा सके। लेकिन इसी दौरान भारत को हिला देने वाली खबर लगी। इसके मुताबिक जिस कंपनी से जरूरी चीजों की आपूर्ति करने के लिए बात की जा रही थी उसने बताया कि उसके पास में इन चीजों को लेकर पाकिस्तान की सेना ने पहले से ऑर्डर दिया हुआ है। इस ऑपरेशन को शुरू करने से पहले भारतीय सेना और एयरफोर्स के शीर्ष स्तर के अधिकारियों ने सियाचिन में हालात की समीक्षा की।
बिलाफोंड ला पर पहला एयरड्रॉप
12 अप्रैल 1984 को आखिरकार जवानों के लिए जरूरी कपड़े और सामान एमआई 17 से पहुंच चुका था। तत्कालीन केप्टन रिटायर्ड लेफिटनेंट जनरल संजय कुलकर्णी उस पहले दल में थे जिन्हें बिलाफोंड ला पर एयरड्रॉप किया जाना था। यह दल करीब चालीस जवानों का था। चीता हेलीकॉप्टर ने यहां पर जवानों को लाने के लिए 17 राउंड लगाए और जवानों को वहां पर उतारा। 13 अप्रैल को सुबह सात बजे यहां पर तिरंगा लहरा दिया गया था। यहां पर 30 जवान आए थे लेकिन इनमें से एक को खराब हालत के चलते वापस बेस भेजना पड़ा था और एक जवान की मौत हो गई थी। खराब मौसम के बावजूद जवानों ने यहां के रास्ते में तीन कैंप बना लिए थे।
दुश्मन की निगाह में आने का खतरा
इसके बाद भारतीय वायुसेना के चीता और एमआई 8 हेलीकॉप्टर ने लद्दाख स्काउट के जवानों की एक यूनिट को सिया ला से करीब पांच किलोमीटर दूर उतारा। 17 अप्रैल को मेजर एएन बहुगुणा के नेतृत्व में जवानों ने पांच किमी का रास्ता पैदल पार कर सिया ला पर तिरंगा लहराया। इस बीच लेफ्टिनेंट कर्नल डीके खन्ना और उनके जवान गियांग ला की तरफ बढ़ रहे थे। लेकिन यहां पर आसानी से दुश्मन की निगाह में आने का खतरा मंडरा रहा था। सेना ने यहां पर 23 अप्रैल तक जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों की तैनाती कर दी थी। लोलोफांडला और सियाचिन ग्लेशियर पर भी हथियारों की आपूर्ति कर दी गई थी। इसके अलावा लेह एयर फील्ड की सुरक्षा के लिए भी जरूरी मशीनगन और मिसाइलें तैनात कर दी गई थीं। ऐसा ही थोएय एयरफील्ड पर भी किया गया था।
पाकिस्तान ने यहां कब्जे को बनाई थी बरजिल फोर्स
भारत को खुफिया सूचना मिली थी कि पाकिस्तान ने सियाचिन में कब्जे के लिए बरजिल फोर्स बनाई थी। भारतीय सेना को सियाचिन से खदड़ने के लिए पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन अबाबील' लॉन्च किया था। इस ऑपरेशन का मकसद सिया ला और बिलाफोंड ला पर कब्जा करना था। पाकिस्तान की तरफ से पहला हमला 23 जून को सुबह लगभग पांच बजे किया गया था। इसका भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया और 26 पाकिस्तानी जवानों को मार गिराया। इसके बाद जून और फिर अगस्त में भी पाकिस्तान ने हमला किया लेकिन हर बार उसको मुंह की खानी पड़ी। इसमें पाकिस्तान को तीस जवानों को खोना पड़ा था। इस बीच गियांग ला के सबसे ऊंचे प्वाइंट पर भी भारतीय जवानों ने कब्जा जमा लिया था। इस तरह से पूरा सियाचिन भारत का हो चुका था। 1987 में और फिर 1989 में भी पाकिस्तान ने यहां पर हमला किया था। यहां पर स्थित बाना पोस्ट दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र की सबसे ऊंची पोस्ट है जो समुद्र स्तर से 22,143 फीट (6,74 9 मीटर) की ऊंचाई पर है। भारत सरकार के मुताबिक सियाचिन ग्लेशियर में चलाए गए ऑपरेशन मेघदूत से लेकर 18.11.2016 तक, 35 अधिकारी और 887 जेसीओ/ ओआरएस ने यहां पर अपनी जान गंवा चुके हैं।
सीरिया में अपनी फौज बनाए रखने के पीछे अमेरिका के हैं तीन खास मकसद
सीरिया के चलते बिगड़े हालात में भारत को सता रहा तेल की कीमतें बढ़ने का डर
पाकिस्तान की राजनीति में नवाज शरीफ का चैप्टर क्लोज, कौन संभालेगा पार्टी की विरासत
अच्छे संबंधों और समझौतों के बावजूद भारत का नेपाल पर निगाह रखना जरूरी