OPEC के फैसले से बढ़ सकती हैं तेल की कीमतें, तेल का उत्पादन भी होगा कम!
तेल उत्पादित देशों के संगठन OPEC ने भारत समेत कई देशों की चिंता बढ़ाने का फैसला लिया है। यह फैसला आम लोगों की जेब पर बहुत भारी पड़ सकता है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। तेल उत्पादन करने वाले देशों के संगठन OPEC ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मांग को ठुकराते हुए तेल का उत्पादन कम करने का फैसला लिया है। यह बैठक वियना में हुई थी।OPEC का यह फैसला कई देशों के लिए चौंकाने वाला भी है। वहीं यदि भारत के संबंध में बात की जाए तो यह फैसला आम आदमियों की जेब पर भारी पड़ सकता है। वर्तमान में तेल खरीद को लेकर भारत जिन परेशानियों से जूझ रहा है वह किसी से अछूती नहीं रही है। अमेरिकी प्रतिबंध लगने से पहले ईरान भारत की तेल की मांग के बड़े हिस्से की आपूर्ति करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। हालांकि, खुद अमेरिका ने भारत को तेल आपूर्ति करने की बात कही है, लेकिन तेल की कीमतों और इसकी अदायगी को लेकर दोनों देशों के बीच अभी रजामंदी नहीं हुई है।
यहां पर एक बात और महत्वपूर्ण है और वो ये कि ईरान को भारत रुपये में अदायगी के लिए लगभग तैयार कर चुका था। लेकिन, अमेरिकी प्रतिबंधों ने भारत का खेल खराब कर दिया है। तेल, ओपेक और अमेरिका के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान खासा अहम हो जाता है जो उन्होंने जी20 बैठक के दौरान दिया था। उन्होंने अमेरिका को आईना दिखाते हुए साफ कर दिया था कि दादागिरी से लिया गया कोई भी फैसला सही नहीं हो सकता है। इसके अलावा उन्होंने यह भी साफ कर दिया था भारत कोई भी फैसला अपने हितों को ध्यान में रखकर लेगा। इस मंच पर उन्होंने तेल की बढ़ती कीमतों पर भी चिंता जाहिर की थी।
बहरहाल, ओपेक ने जो फैसला लिया है उसको लेकर भारत ही नहीं चीन की भी चिंता बढ़नी तय है। चीन भी ईरान से तेल का बड़ा खरीददार था। ओपेक ने अपने फैसले में कहा है कि मार्च 2020 तक वह तेल का उत्पादन कम करेगा। हालांकि इस दौरान तेल की कीमत पर सदस्य देशों में मतभेद भी साफतौर पर जाहिर हुआ। सदस्य देशों ने अमेरिकी तेल उत्पाद में बढ़ोतरी और गिरती हुई वैश्विक अर्थव्यवस्था पर चिंता भी जताई। तेल और अमेरिका की जहां तक बात है तो आपको बता दें कि राष्ट्रपति ट्रंप चाहते थे कि सऊदी अरब अमेरिकी मिलिट्री सपोर्ट के बदले में तेल का उत्पादन बढ़ाए। यह इसलिए भी जरूरी था क्योंकि ईरान को काउंटर करने के लिए उसको सऊदी अरब का साथ भी कहीं न कहीं चाहिए।
ओपेक द्वारा जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है कि तेल उत्पादित देशों को वर्तमान में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बीते कुछ समय में ओपेक देशों के सामने चुनौतियां भी बढ़ी हैं। इसमें देशों की व्यापार नीति, मौद्रिक नीति और देशों की भौगोलिक स्थिति भी शामिल है। आपको बता दें कि ओपेक की पिछली बैठक दिसंबर 2018 में हुई थी, वहीं अब यह 5 दिसंबर 2019 में होगी।
यहां पर ये भी बताना जरूरी हो जाता है कि ओपेक सदस्य देशों में शामिल ईरान और वेनेजुएला पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद कच्चे तेल की कीमतों में करीब 25 फीसद तक की बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसकी वजह से तेल निर्यात में भी कमी आई है। यहां पर ओपेक के उस धड़े की भी बात करनी जरूरी हो जाती है जो रूस से प्रभावित है। दरअसल, 2017 से ही रूस के समर्थित ओपेक देश तेल के उत्पादन में कमी और इसकी कीमतों में वृद्धि को लेकर काम कर रहे हैं। वहीं अमेरिका तेल उत्पादन में रूस और सऊदी अरब को पछाड़कर आगे जाना चाहता है।
गौरतलब है कि अमेरिका तेल का सबसे बड़ा ग्राहक है, लेकिन वह ओपेक का सदस्य नहीं है। लिहाजा ओपेक से होने वाली तेल की सप्लाई पर उसका कोई जोर नहीं चलता है। शनिवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तेल उत्पादन में कटौती की मांग को सही ठहराते हुए सऊदी अरब का समर्थन किया था। उनका कहना था कि इसके तहत मार्च 2020 तक 1.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती की जाएगी।