एक यूनिट रक्तदान बचाएगा पांच लोगों की जिंदगी
एक समय रक्तदाता से जो खून लिया जाता था वही मरीज को चढ़ा दिया जाता था। पर अब रक्त संरक्षित करने व चढ़ाने का तरीका बदल गया है। अब तो एक यूनिट रक्तदान से पांच लोगों की जिंदगी बच सकती है। असल में रक्तदाता से खून लेने के बाद, उसके अवयव (कंपोनेंट) को अलग कर लिया जाता है। मरीज को जिसकी कंपोनेंट की जरूरत होती है
नई दिल्ली [जासं]। एक समय रक्तदाता से जो खून लिया जाता था वही मरीज को चढ़ा दिया जाता था। पर अब रक्त संरक्षित करने व चढ़ाने का तरीका बदल गया है। अब तो एक यूनिट रक्तदान से पांच लोगों की जिंदगी बच सकती है। असल में रक्तदाता से खून लेने के बाद, उसके अवयव (कंपोनेंट) को अलग कर लिया जाता है। मरीज को जिसकी कंपोनेंट की जरूरत होती है वहीं चढ़ाया जाता है। राजधानी व बड़े महानगरों के अस्पतालों में यही तकनीक इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि रक्तदान करने के मामले में लोगों की सोच में बदलाव नहीं आया है। विश्व स्वास्थ संगठन ने भी इस बार नारा दिया है 'रक्तदान करें : जीवन का उपहार दें'।
डाक्टरों की माने तो जागरूकता के अभाव में स्वेच्छा से रक्तदान करने वाले लोगों की कमी है। इसके चलते खून की जरूरत पड़ने पर परिजनों को ही इंतजाम करना पड़ता है। अस्पताल या प्राइवेट ब्लड बैंक तभी खून देते हैं जब, उसके बदले में कोई रिश्तेदार खून देता है।
आरएमएल (राममनोहर लोहिया) अस्पताल के ब्लड बैंक की विभागाध्यक्ष डा. वीना डोडा ने कहा कि दूसरे देशों में सभी ब्लड बैंक नेटवर्क से जुड़े हुए हैं। वहां मरीज को अस्पताल द्वारा परिजनों को बिना कहे खून उपलब्ध कराया जाता है। जबकि यहां अभी तक ऐसा प्रावधान नहीं है। हालांकि सरकारी अस्पताल नैतिकता के आधार पर कई बार एक-दूसरे के मरीजों को खून उपलब्ध कराते हैं।
खून से अलग कर लिए जाते हैं पांच कंपोनेंट
डा. वीना ने बताया कि एक यूनिट खून मिलने पर रेफ्रिजरेटर सेंट्रीफ्यूजन मशीन की मदद से खून से सफेद रक्तकंण (डब्ल्यूबीसी), लाल रक्तकंण (आरबीसी), प्लाज्मा, प्लेटिलेट्स व क्रायोप्रिसिपिटेट अलग कर लिया जाता है। मरीज को वही कंपोनेंट चढ़ाया जाता है, जिसकी जरूरत होती है। इस तरह यह चार से पांच मरीजों में इस्तेमाल होता है।
फोर्टिस अस्पताल के ब्लड बैंक के प्रमुख डा. आरसी खुराना ने बताया कि आरबीसी को 35-42 दिन, प्लेटिलेट्स पांच दिन व प्लाज्मा को -80 डिग्री तापमान पर एक साल तक सुरक्षित रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि देश में खून की मांग के मुताबिक 25 प्रतिशत की कमी है। इसलिए लोगों को स्वेच्छा से रक्तदान के लिए आगे आना होगा।
मैक्स अस्पताल की डॉक्टर संगीता पाठक ने कहा कि खून में 12.5 फीसद हीमोग्लोबिन होने पर रक्तदान किया जा सकता है। हिमोग्लोबिन की कमी के चलते रक्तदाताओं में दस फीसद ही महिलाएं होती हैं।
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