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क्या वर्तमान समय में वक्फ कानून मात्र तुष्टीकरण और संपत्ति हड़पने का माध्यम बनकर रह गया है?

वक्फ के रूप में दर्ज संपत्ति को रिकवर करने के लिए लिमिटेशन एक्ट के तहत भी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। धारा 107 में वक्फ की संपत्तियों को इससे छूट दी गई है। इस तरह की छूट हिंदू संप्रदाय से जुड़े ट्रस्ट की संपत्तियों के मामले में नहीं है।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Mon, 03 Oct 2022 04:36 PM (IST)Updated: Mon, 03 Oct 2022 04:36 PM (IST)
क्या वर्तमान समय में वक्फ कानून मात्र तुष्टीकरण और संपत्ति हड़पने का माध्यम बनकर रह गया है?
वक्फ की बात, भेदभाव का खुला दस्तावेज

नई दिल्‍ली, जेएनएन। दुनिया में इस्लाम का प्रादुर्भाव करीब 1400 साल से माना जाता है। तमिलनाडु के एक गांव में 1500 साल पुराने मंदिर को वक्फ बोर्ड द्वारा अपनी संपत्ति बताने के दावे के साथ ही पहले से चल रहा उसकी संवैधानिकता का सवाल और गहरा गया है। देशभर में इस कानून और संस्था की अहमियत पर विमर्श जारी है। दरअसल 1954 में वक्फ की संपत्ति और उसके रखरखाव के लिए वक्फ एक्ट-1954 बनाया गया था। कोई भी ऐसी चल या अचल संपत्ति वक्फ की हो सकती है, जिसे इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक कार्यों के लिए दान कर दे। देशभर में वक्फ की संपत्तियों को संभालने के लिए एक केंद्रीय और 32 स्टेट वक्फ बोर्ड हैं। 1995 में वक्फ कानून में संशोधन करते हुए वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां दे दी गईं। कानून कहता है कि यदि वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति पर अपना दावा कर दे, तो उसे उसकी संपत्ति माना जाएगा।

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यदि दावा गलत है तो संपत्ति के मालिक को इसे सिद्ध करना होगा। 2013 में फिर इसमें संशोधन किए गए। अब वक्फ बोर्ड और वक्फ की संपत्तियां फिर चर्चा में हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने वक्फ की संपत्तियों का सर्वे कराने का निर्णय लिया है। देश में सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा संपत्ति वक्फ के पास है। इसकी संपत्तियां आठ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन पर फैली हैं। पिछले 13 साल में वक्फ की संपत्ति करीब दोगुनी हो गई है। ऐसे कई तथ्य हैं, जो इस व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हैं। जब यह कानून बना था, तब इसे लेकर भले ही कुछ तार्किक कारण रहे हों, लेकिन आज यह पूरी तरह से कब्जे और वसूली का माध्यम बनता दिख रहा है। ऐसे में वर्तमान देश-काल और परिस्थिति में वक्फ कानून और उसके अधिकारों की सामयिकता और संवैधानिकता की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।

भेदभाव का खुला दस्तावेज

वक्फ अधिनियम, 1995 की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दी थी। अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के लिए स्थानांतरण याचिका दी है। याचिका में उन्होंने इस अधिनियम को संविधान के विभिन्न प्रविधानों की कसौटी पर परखा है। यह अधिनियम धार्मिक आधार पर भेदभाव करता है। वक्फ संपत्तियों के रखरखाव के लिए जिस तरह की कानूनी व्यवस्था की गई, वैसी व्यवस्था हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई या अन्य किसी पंथ के अनुयायियों के लिए नहीं है। यह पंथनिरपेक्षता, एकता एवं अखंडता की भावना के विपरीत है।

यदि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के अनुरूप धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण की बात करता है, तो इसमें अनुच्छेद 14 और 15 के अनुरूप सभी धर्मों एवं संप्रदायों के लोगों के लिए समानता होनी चाहिए, किंतु यह केवल मुस्लिम समुदाय के लिए है।

यदि यह अधिनियम अनुच्छेद 29 व 30 के तहत अल्पसंख्यकों के हित की रक्षा की बात करता है, तो इसमें जैन, बौद्ध, ईसाई व अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए था, किंतु ऐसा नहीं है।

इंडियन ट्रस्टीज एक्ट 1866, इंडियन ट्रस्ट एक्ट 1882, चैरिटेबल एंडामेंट एक्ट 1890, आफिशियल ट्रस्टीज एक्ट 1913 और चैरिटेबल एंड रिलीजियस एक्ट 1990 जैसे अधिनियमों के तहत सभी समुदायों से जुड़े ट्रस्ट व दान आदि का प्रबंधन किया जाता है। इन सभी को साथ लाने के बजाय एक धर्म पर केंद्रित वक्फ कानून बना दिया गया।

न्याय की व्यवस्था के विरुद्ध

संविधान ने तीन तरह के न्यायालयों की व्यवस्था की है। अनुच्छेद 124-146 के तहत संघीय न्यायपालिका, अनुच्छेद 214-231 के तहत हाई कोर्ट और अनुच्छेद 233-237 के तहत अधीनस्थ न्यायालय। संविधान निर्माताओं की मंशा थी कि सभी तरह के नागरिक विवाद संविधान के तहत बनी न्यायपालिकाओं में ही सुलझाए जाएं। ऐसे में वक्फ ट्रिब्यूनल को लेकर इस अधिनियम में की गई व्यवस्था संविधान द्वारा प्रदत्त न्याय व्यवस्था के विरुद्ध है।

अनुच्छेद 27 का स्पष्ट उल्लंघन

वक्फ बोर्ड में मुस्लिम विधायक, मुस्लिम सांसद, मुस्लिम आइएएस अधिकारी, मुस्लिम टाउन प्लानर, मुस्लिम अधिवक्ता, मुस्लिम बुद्धिजीवी और मुतावल्ली होते हैं। इन सभी को सरकारी कोष से भुगतान किया जाता है, जबकि केंद्र या राज्य सरकारें किसी मस्जिद, मजार या दरगाह की आय से एक भी रुपया नहीं लेती हैं। दूसरी ओर, केंद्र व राज्य सरकारें देश के चार लाख मंदिरों से करीब एक लाख करोड़ रुपये लेती हैं, लेकिन उनके लिए ऐसा कोई अधिनियम नहीं है। यह अनुच्छेद 27 का स्पष्ट रूप से उल्लंघन है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि किसी व्यक्ति को ऐसा कोई कर चुकाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, जिसका प्रयोग किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि के लिए हो।

वक्फ बोर्ड के असीमित अधिकार

वक्फ अधिनियम, 1955 की धाराओं 4, 5, 6, 7, 8, 9 और 14 में वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा दिया गया है, जो किसी ट्रस्ट आदि से ऊपर है। हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई व अन्य समुदायों के पास सुरक्षा का कोई विकल्प नहीं है, जिससे वे अपनी संपत्तियों को वक्फ बोर्ड की संपत्ति में शामिल होने से बचा सकें, जो एक बार फिर समानत को लेकर संविधान के अनुच्छेद 14, 15 का उल्लंघन है।

संपत्ति के अधिकार भी सुरक्षित नहीं

अधिनियम की धारा 40 में वक्फ बोर्ड को अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी संपत्ति के बारे में यह जांच कर सकता है कि वह वक्फ की संपत्ति है या नहीं। यदि बोर्ड को लगता है कि किसी ट्रस्ट, मुत्त, अखरा या सोसायटी की कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है, तो वह संबंधित ट्रस्ट या सोसायटी को नोटिस जारी कर पूछ सकता है कि क्यों न उस संपत्ति को वक्फ संपत्ति में शामिल कर लिया जाए। यानी संपत्ति का भाग्य वक्फ बोर्ड या उसके अधीनस्थों पर निर्भर करता है। यह अनुच्छेद 14, 15, 26, 27, 300-ए का उल्लंघन है।

लिमिटेशन एक्ट से भी छूट

वक्फ के रूप में दर्ज संपत्ति को रिकवर करने के लिए लिमिटेशन एक्ट के तहत भी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। धारा 107 में वक्फ की संपत्तियों को इससे छूट दी गई है। इस तरह की छूट हिंदू या अन्य किसी भी संप्रदाय से जुड़े ट्रस्ट की संपत्तियों के मामले में नहीं है।

दीवानी अदालतों की सीमा से भी बाहर

धारा 83 के तहत ट्रिब्यूनल का गठन करते हुए विवादों की सुनवाई के मामले में दीवानी अदालतों का अधिकार छीन लिया गया है। संसद के पास ऐसा अधिकार नहीं है जिसके तहत वह ऐसा ट्रिब्यूनल गठित कर दे, जिससे न्याय व्यवस्था को लेकर संविधान के अनुच्छेद 323-ए का उल्लंघन होता हो। वक्फ बोर्ड को कई ऐसे अधिकार दिए गए हैं, जो इसी तरह के अन्य ट्रस्ट या सोसायटी के पास नहीं हैं।


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