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सलाखों के पीछे कटेगी 'डोसा किंग' की बाकी बची जिंदगी, जानिए कौन है ये किंग

तमिलनाड़ु के एक छोटे से शहर से निकलकर पी राजागोपाल ने अपनी एक अलग पहचान बनाई मगर कभी हार न मानने को लेकर लिए गए एक गलत फैसले ने उनको सलाखों के पीछे पहुंचा दिया।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sat, 06 Jul 2019 12:31 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jul 2019 10:10 AM (IST)
सलाखों के पीछे कटेगी 'डोसा किंग' की बाकी बची जिंदगी, जानिए कौन है ये किंग

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। देश के साथ-साथ विदेशों में भी अपने डोसे की बदौलत एक पहचान बनाने वाले डोसा किंग पी राजागोपाल 7 जुलाई से आजीवन जेल की सलाखों के पीछे रहेंगे। हत्या के एक मामले में दोषी पाए जाने पर अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। सजा से बचने के लिए उन्होंने निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में अपील की मगर वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली, कोर्ट ने उन्हें दोषी मनाते हुए आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी है।

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फर्श से अर्श तक का सफर
पी राजागोपाल एक निम्न परिवार से थे। 1981 में उन्होंने चेन्नई में एक जनरल स्टोर (किराने की दुकान) खोली, इसे मद्रास के नाम से खोला गया था। इस काम में राजागोपाल को बहुत अधिक कामयाबी नहीं मिली तो उन्होंने कुछ खाने पीने का रेस्टोरेंट टाइप का खोलने का मन बनाया। ये वो दौर था जब लोग घर से बाहर खाने के लिए सोचते भी नहीं थे। घर से खाकर निकलते थे और वापस घर पर ही आकर खाया करते थे। ऐसे में इस तरह की चीजें सोचना अपने आप में एक बड़ा निर्णय था। मगर राजागोपाल ने ये सोचा और श्रवण भवन के नाम से एक रेस्टोरेंट खोला, इस रेस्टोरेंट में सांभर, वाडा, इडली डोसा जैसी चीजें शामिल की गई। चेन्नई के लोगों के लिए ये वो चीजें थी जिसे वो घर से बाहर निकलकर खा सकते थे। इसमें इन चीजों के टेस्ट पर खास ध्यान दिया गया जिससे लोगों को घर जैसा अहसास हो सके। अब यदि कोई घर के बाहर परिवार के साथ कहीं कुछ खाना चाहता था तो उसके लिए पी राजागोपाल का श्रवण भवन बेहतर विकल्प था।

विदेशों में भी खोला श्रवण भवन
चेन्नई में श्रवण भवन की कामयाबी को देखते हुए पी राजागोपाल ने लेसेस्टर स्क्वायर से लेक्सिंगटन एवेन्यू तक श्रवण भवन की शाखाएं खोल दी। इसी के साथ देश में सभी प्रमुख जगहों पर इनकी शाखाएं खोली गई। धीरे-धीरे श्रवण भवन की लोकप्रियता बढ़ती गई। साउथ इंडियन खाने के शौकीन लोगों के ये बेहतरीन विकल्प बन गया। कुछ ही समय में इसने अपनी एक जगह बना ली। आज विदेशों में भी श्रवण भवन की 80 शाखाएं खुली गई है। पी राजागोपाल ने विदेश में रहने वालों को भी साउथ इंडियन खाने का टेस्ट उन तक पहुंचाया। यूनाइडेट स्टेट, गल्फ कंट्री, यूरोप और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी आज श्रवण भवन की शाखाएं खुली हुई हैं।विदेश में रहने वाले तमाम इंडियन्स को आज श्रवण भवन का साउथ इंडियन खाना खूब भाता है। 

साधारण परिवार से था संबंध
पी.राजागोपाल तमिलनाडु के एक साधारण परिवार में पैदा हुए थे। उनके पिता का प्याज का कारोबार था। बचपन में राजागोपाल अपने पिता के साथ ही काम करते थे मगर होश संभालने के बाद उन्होंने कुछ अपना करने का सोचा, इसी के बाद उन्होंने पहले एक किराने की दुकान खोली, फिर साउथ इंडियन खाने के लिए श्रवण भवन की नींव रखी और इसमें वो कामयाब रहे। राजगोपाल हमेशा अपने माथे पर चंदन के पेस्ट की एक पट्टी लगाते हैं और सफेद कपड़े पहनना उनका शौक है। ये दक्षिण भारतीयों की अपनी एक अलग पहचान सरीखा भी है। पी.राजागोपाल को जानने वाले बताते हैं कि वह अपने श्रवण भवन में काम करने वाले कर्मचारियों के साथ उदारता से व्यवहार करते हैं यहां तक ​​कि सबसे कम रैंकिंग वाले कर्मचारियों को स्वास्थ्य बीमा जैसे लाभ भी देते है। जिन कर्मचारियों को राजागोपाल खास तवज्जो देते हैं वो सभी कर्मचारी उनको "अनाचारी" (बड़े भाई) कहकर बुलाते हैं। 

भगवान पर विश्वास
श्रवण भवन की सभी शाखाओं में हिंदू देवताओं के साथ उनकी दो तस्वीरें होती हैं। एक तस्वीर में उनके बेटों के साथ जो अब व्यवसाय चलाते हैं और दूसरी तस्वीर में वो अपने आध्यात्मिक गुरु के साथ दिख जाते हैं। इन तस्वीरों से उनके आध्यात्म में विश्वास की बात को भी बल मिलता है। 

2000 के बाद से शुरु हुआ पतन
साल 2000 में राजागोपाल की निगाहें अपने यहां काम करने वाले एक कर्मचारी की बेटी पर पड़ी, वो उसे अपनी तीसरी पत्नी के तौर पर चाहता था। इसके लिए उसने एक ज्योतिषी की सलाह भी ली। कर्मचारी की ये बेटी पहले से ही शादीशुदा थी, इस वजह से राजागोपाल की बात खत्म हो गई। मगर राजागोपाल ऐसे हार मनाने वालों में नहीं थे। उन्होंने प्रयास जारी रखा। उस महिला से शादी करने के लिए राजागोपाल ने महिला, उसके पति और उसके परिवार को महीनों तक धमकवाया, पति के साथ मारपीट और अन्य ज्यादतियां की गई। मगर किसी से सफलता नहीं मिली।

जब राजागोपाल को किसी भी तरफ से इसमें सफलता नहीं मिली तो उसने भाड़े के कुछ लोगों को उस व्यक्ति की हत्या करने का आदेश दे दिया। राजागोपाल के इशारे पर उस व्यक्ति की हत्या कर दी गई। इसके बाद महिला ने हत्या का मुकदमा दर्ज करवाया, कोर्ट में केस चलता रहा। 2004 में उन्हें दोषी पाया गया और 10 साल की सजा सुनाई गई। अपील पर उन्हें हत्या का दोषी ठहराया गया था और सजा को बढ़ा दिया गया था। मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने उन्हें 7 जुलाई तक आत्मसमर्पण करने और अपने जीवन के बाकी बचे हिस्सों को सलाखों के पीछे बिताने के आदेश दिए हैं। 7 जुलाई से पी राजागोपाल का बाकी बचा जीवन सलाखों के पीछे ही बीतेगा।   


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