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चीन को रोकने के लिए अब उसी की राह पर निकला भारत, सेशेल्‍स बना नया पड़ाव

यह अच्छी बात है कि सेशेल्स के राष्ट्रपति डैनी फॉर की हालिया भारत यात्रा के दौरान एजंप्शन द्वीप पर दोनों देशों द्वारा साथ मिलकर नौसैनिक अड्डा बनाने पर सहमति बन ही गई।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 29 Jun 2018 12:13 PM (IST)Updated: Sat, 30 Jun 2018 09:59 PM (IST)
चीन को रोकने के लिए अब उसी की राह पर निकला भारत, सेशेल्‍स बना नया पड़ाव
चीन को रोकने के लिए अब उसी की राह पर निकला भारत, सेशेल्‍स बना नया पड़ाव

[डॉ. रहीस सिंह]। यह अच्छी बात है कि सेशेल्स के राष्ट्रपति डैनी फॉर की हालिया भारत यात्रा के दौरान एजंप्शन द्वीप पर दोनों देशों द्वारा साथ मिलकर नौसैनिक अड्डा बनाने पर सहमति बन ही गई, जिसे लेकर बीते लगभग एक महीने से आशंकाएं जताई जा रही थीं। भारत के लिए यह सामरिक लिहाज से बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि चीन लगातार अपनी पैठ हिंद महासागर के द्वीपों में बना रहा है और यह भी माना जा रहा है कि पिछले दिनों सेशेल्स में विपक्षी दलों ने भारत को लेकर जो विरोध किया था, उसमें चीन का अहम किरदार था। बड़ी उपलिब्ध इसलिए भी कि यदि भारत सेशेल्स को राजी नहीं कर पाता तो एजंप्शन द्वीप में चीन या फिर कोई यूरोपीय देश, मसलन फ्रांस नौसैनिक अड्डा बनाने की कोशिशें करता और हिंद महासागर में चीन के इस तरह सैन्य विस्तार का मतलब है, भारत के लिए चुनौतियों व खतरों का बढ़ना। पर भारत बाजी पलटने में कामयाब रहा। फिर भी कुछ प्रश्न हैं। पहला सवाल, सेशेल्स इतना अहम क्यों है और सेशेल्स के जरिए हम अन्य पड़ोसियों एवं हिंद महासागर के द्वीपीय देशों को क्या संदेश दे सकते हैं? दूसरा, क्या भारत अब ओसीन अथवा ब्लू वॉटर डिप्लोमेसी की रणनीति को बदलने की कोशिश में है ताकि वह सामुद्रिक ताकत बन सके?

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सामरिक साझेदारी का नया युग
सेशेल्स के साथ दोस्ती अथवा सामरिक साझेदारी का नया युग सही अर्थो में वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सेशेल्स यात्रा से शुरू हुआ। उसी यात्रा के दौरान सेशेल्स के एजंप्शन द्वीप पर नौसैनिक अड्डा बनाए जाने के प्रस्ताव पर सहमति बनी थी। मोदी की वह सेशेल्स यात्रा किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा लगभग 34 वर्षो के बाद की गई यात्रा थी। इसका तात्पर्य है कि बीते साढ़े तीन दशक में भारत ने हिंद महासागर के द्वीपीय देशों की ओर ठीक से देखा ही नहीं। स्वाभाविक है कि भारतीय सामरिक नीति हिंद महासागर के द्वीपीय या छोटे देशों की महत्ता का आकलन भी नहीं कर पाई होगी। जबकि ये द्वीपीय देश न केवल दक्षिण एशियाई कूटनीति में भारत का पलड़ा भारी कर सकते थे, बल्कि वैश्विक कूटनीति के लिहाज से भी भारत के पक्ष में कुछ नए संतुलनों व रणनीतियों को जन्म दे सकते थे। भारत की इस कूटनीतिक निष्क्रियता व अदूरदर्शिता का लाभ चीन ने उठाया और वह इस हिंद महासागरीय देश से मजबूत रिश्ता बनाने में सफल हो गया।

सामरिक दृष्टि से बेहद खास है सेशेल्‍स 
ध्यान रहे कि लगभग 84 हजार की आबादी वाला सेशेल्स भले ही एक बहुत छोटा देश हो, किंतु भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। सेशेल्स के साथ भारत का प्रमुख मुद्दा रक्षा और सामुद्रिक सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग संबंधी है, जिसे सुदृढ़ करना भारत की प्राथमिकता है। इस क्षेत्र में समुद्री दस्युओं के आधिक्य को देखते हुए भारत सेशेल्स पीपुल्स डिफेंस फोर्सेस (एसपीडीएफ) की क्षमता मजबूत करने की कोशिश लगातार कर रहा है। सेशेल्स का जल सीमा क्षेत्र 1.3 मिलियन वर्ग किमी से भी ज्यादा विस्तृत अनन्य आर्थिक क्षेत्र (एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन- ईईजेड) भी रखता है, इसलिए भारत ने उसकी निगरानी क्षमता बढ़ाने के लिए उसे नौसैनिक जहाज आइएनएस तरासा दिया, जो सेशेल्स कोस्ट गार्ड के बेड़े में पीएस कांस्टैंट के नाम से शामिल हो चुका है।

पीएस टोपाज जहाज
इससे पहले सेशेल्स को पीएस टोपाज नाम जहाज दिया गया था। यही नहीं, 2013 में भारत ने सेशेल्स के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन की आतंकवाद और समुद्री दस्युओं से रक्षा के लिए अत्याधुनिक उपकरणों से लैस एक डोर्नियर-228 (समुद्री गस्ती विमान) भी भेंट किया था। यही सेशेल्स की वायुसेना की सामुद्रिक क्षमता का मुख्य आधार है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सेशेल्स यात्रा के दौरान उसे डोर्नियर लड़ाकू विमान देने और द्विपक्षीय सहयोग के प्रतीक के रूप में तटीय निगरानी रडार परियोजना शुरू करने की घोषणा की थी। तटीय निगरानी रडार परियोजना एजंप्शन द्वीप पर है, जो उन 115 द्वीपों में से एक है, जिससे मिलकर सेशेल्स बना है। 1दरअसल भारत के लिए सेशेल्स जैसे द्वीपीय देशों के साथ संबंध मजबूत करना जरूरी है, क्योंकि हिंद महासागर में एक ग्रेट गेम की स्थिति निर्मित हो चुकी है और इस समय सबसे बड़ा खिलाड़ी चीन है।

हिंद महासागर नीति
अमेरिका पहले से ही अपनी हिंद महासागर नीति पर काम कर रहा है और अमेरिकी सेंट्रल कमान (सेटकॉम) के अधीन त्वरित बल सक्रिय हैं। उल्लेखनीय है कि अमेरिका का हवाई व नौसैनिक अड्डा डिएगो-गार्सिया, हिंद महासागर में भू-सामरिक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बना हुआ है। दूसरी तरफ चीन हिंद महासागर में एक बड़ा संजाल निर्मित कर चुका है। चीन अपने स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स के तहत ग्वादर (पाकिस्तान), मारओ (मालदीव), हंबनटोटा (श्रीलंका) से लेकर सिंहनौक्विले (कंबोडिया) जैसे बंदरगाहों के जरिये सामरिक-आर्थिक महत्व के मोतियों की पूरी श्रृंखला निर्मित कर चुका है। पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह भू-सामरिक दृष्टि से चीन के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि इसके माध्यम से चीन मध्य-एशिया और इसके आस-पास के समुद्री क्षेत्र में अपनी नौसैनिक ताकत प्रदर्शित कर सकता है।

चीन की जुगत
मारओ नौसैनिक बंदरगाह पर चीन अपने युद्धपोत और नाभिकीय पनडुब्बियों को रखने का इरादा रखता है। श्रीलंका का हंबनटोटा कोलंबो जितना बड़ा है और सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण भी। चीन ने कंबोडिया के रेएम बंदरगाह के आधुनिकीकरण के लिए सारा खर्च उठाया है तथा सिंहनौक्विले बंदरगाह के पुनर्निर्माण में सहयोग किया है। इसलिए चीन को इनका सामरिक प्रयोग करने का अधिकार मिल ही जाएगा। इनके जरिये चीन दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी पैठ बनाने में सफल हो जाएगा। इसके साथ ही चीन मलक्का से जिबूती तक न्यू मैरीटाइम सिल्क रूट का निर्माण कर रहा है और जिबूती में इसी उद्देश्य से अपना सैन्य अड्डा बना रहा है। कुल मिलाकर वह हिंद महासागर में दोहरी सामरिक दीवार निर्मित कर रहा है, जिसे भारत तोड़ न पाए।

भारत के लिए खास है सेशेल्‍स 
इन स्थिति में सेशेल्स जैसे द्वीपीय देश का महत्व भारत के लिए बहुत बढ़ जाता है। इस दिशा में भारत की पिछले महीने प्राप्त सफलता भी ध्यान देने योग्य है, जब प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी इंडोनेशिया यात्रा के दौरान मेजबान देश से एक व्यापक समुद्री सुरक्षा समझौता किया। चूंकि हम मनीला में अमेरिका, जापान व ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए रणनीतिक चतुर्भुज बनाने की प्रक्रिया के लिए हस्ताक्षर कर चुके हैं, ऐसे में सेशेल्स में नौसेनिक अड्डे पर सहमति बनने का आशय है कि भारत सामुद्रिक सुरक्षा के मोर्चे पर अब चीन के समानांतर अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है। इससे भारत डिएगो-गार्सिया व जिबूती पर निगरानी रख सकता है और एजंप्शन से लेकर ईरान के चाबहार तक सामरिक रेखा बनाकर चीन की ग्वादर-जिबूती सामरिक रेखा को कमजोर कर सकता है। इस दृष्टि से एजंप्शन द्वीप में नौसैनिक अड्डा बनाने संबंधी भारत को मिली यह सफलता एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।

(लेखक विदेश संबंधी मामलों के जानकार हैं) 


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