भारत में रहने वाले 40 लाख लोगों के अस्तित्व पर संकट, जानें क्या है पूरा मामला
असम में रह रहे विदेशियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर भेजने के लिए 1951 में नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन (एनआरसी) बनाया गया था। इसमें संशोधन किए जा रहे हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। असम में रह रहे विदेशियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर भेजने के लिए 1951 में नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन (एनआरसी) बनाया गया था। इसमें संशोधन किए जा रहे हैं। सोमवार को दूसरा और आखिरी मसौदा जारी किया गया है। इस लिस्ट में सिर्फ उन लोगों के नाम शामिल किए गए हैं, जो 25 मार्च 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं।
असम क्यों गिन रहा है अपने नागरिक
1951 में पूर्वी पाकिस्तान से भारत में अवैध प्रवेश करने वाले लोगों और भारतीय नागरिकों की पहचान करने के लिए पहली बार नेशनल रजिस्टर फॉर सिटीजन तैयार किया गया।
36% 1951 से 1961 तक असम की जनसंख्या में इजाफा इस दौरान देश की आबादी 22 फीसद ही बढ़ी। असम में तेजी से जनसंख्या वृद्धि के लिए बांग्लादेश से अवैध आवाजाही को दोषी माना गया।
35% 1961 से 1971 तक असम की जनसंख्या में इजाफा (देश की आबादी में सिर्फ 25 फीसद इजाफा हुआ)।
50% 1971 से 1978 तक असम में मतदाताओं की संख्या में हुआ इजाफा 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के सात साल बाद असम में मतदाताओं की संख्या 50 फीसद तक बढ़ी। असम के मंगलदोई लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में ही पचास हजार अधिक मतदाता पाए गए।
सर्वोच्च न्यायालय ने 2009 में दायर एक जनहित याचिका के बाद इस मुद्दे पर ध्यान देना शुरू किया। इसके बाद 2015 में एनआरसी पर काम किया जाना शुरू हुआ।
1971 का महत्व
1971 से 1991 के बीच असम में बड़ी संख्या में मतदाता बढ़े, जिसने असम में अवैध तरीके से लोगों के प्रवेश की तरफ इशारा किया।
1979 में असम में अवैध तरीके से आने वाले लोगों के खिलाफ शुरू हुआ हिेंसक प्रदर्शन 1985 में असम समझौते के बाद बंद हुआ। इसका एक मुख्य बिंदु यह था कि 1951 का एनआरसी संशोधित किया जाए और इसमें वर्ष 1971 को मानक वर्ष माना गया।
लाखों लोग संकट में
इस आधार पर एनआरसी में करीब 2.90 करोड़ लोगों को भारत का नागरिक माना गया है। वहीं लगभग 40 लाख लोगों को भारतीय नागरिकता नहीं दी गई है। ऐसे में इन लोगों का अस्तित्व खतरे में आ गया है।
क्या है मसला
1947 में भारत- पाकिस्तान का बंटवारा होने के बाद कई लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) चले गए। लेकिन लोगों के घर-परिवार यहीं रह गए और अवैध तरीके से भारत में लोगों का आना- जाना इसके बाद भी जारी रहा। ऐसे में 1979 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) और ऑल असम गण संग्राम परिषद (एएजीएसपी) ने असम में अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों के खिलाफ हिंसक आंदोलन छेड़ दिया।
यह आंदोलन छह वर्ष तक जारी रहा। अगस्त, 1985 में भारत सरकार और इन दोनों संगठनों के बीच असम समझौता हुआ जिसके बाद हिंसा पर रोक लगी और असम में नई सरकार का गठन हुआ। इस समझौते का एक अहम भाग यह था कि 1951 की एनआरसी सूची में संशोधन किया जाएगा।
कहां कितनी बढ़ी आबादी
असम के 25 में से 14 जिलों में राज्य की औसत जनसंख्या वृद्धि (17 फीसद) से अधिक वृद्धि देखी गई। इनमें से नौ जिले मुस्लिम बहुल हैं।
किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं: राजनाथ
असम में नेशनल रजिस्टर फॉर सिटिजन (एनआरसी) के ड्राफ्ट रिपोर्ट की गूंज संसद में भी सुनाई दी। विपक्षी दलों के हंगामे के कारण जहां राज्यसभा नहीं चल पाई, वहीं लोकसभा में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भरोसा दिया कि किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है, किसी के साथ भेदभाव नहीं होने दिया जाएगा। राजनाथ सिंह का कहना था कि यह केवल ड्राफ्ट है और जिन लोगों का नाम इसमें नहीं है, उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने का पूरा अवसर दिया जाएगा। वहीं, देर शाम महारजिस्ट्रार कार्यालय ने 31 दिसंबर से पहले एनआरसी को अंतिम रूप देने की अधिसूचना जारी कर दी। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में भी इस पर सुनवाई है जहां सरकार रिपोर्ट देगी।
31 दिसंबर से पहले जारी हो जाएगा अंतिम एनआरसी
सोमवार देर शाम अधिसूचना जारी कर महारजिस्ट्रार कार्यालय ने साफ कर दिया कि 31 दिसंबर से पहले सभी दावों की पड़ताल पूरी कर ली जाएगी और अंतिम एनआरसी को जारी कर दिया जाएगा। महारजिस्ट्रार की अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को इस मुद्दे पर होने वाली सुनवाई से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, एनआरसी को तैयार करने में काफी देर हो रही थी और बार-बार इसकी अंतिम तारीख को बढ़ाया जा रहा था। सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में महारजिस्ट्रार से जवाब-तलब किया है। जाहिर है अब महारजिस्ट्रार की ओर से अदालत से 31 दिसंबर तक सारी प्रक्रिया पूरी कर लेने का आश्वासन दिया जा सकता है।