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कभी बोते थे लाल आतंक के बीज, अब मशरूम उगाकर जिंदगी संवार रहे आत्मसमर्पित नक्सली

छत्‍तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में पूर्व नक्सलियों ने आत्मसमर्पण के बाद मशरूम उत्पादन के जरिए अपनी जिंदगी को एक नई दिशा दी है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 10 Oct 2019 09:08 PM (IST)Updated: Thu, 10 Oct 2019 09:08 PM (IST)
कभी बोते थे लाल आतंक के बीज, अब मशरूम उगाकर जिंदगी संवार रहे आत्मसमर्पित नक्सली
कभी बोते थे लाल आतंक के बीज, अब मशरूम उगाकर जिंदगी संवार रहे आत्मसमर्पित नक्सली

राजनांदगांव, राज्‍य ब्‍यूरो। ये कभी छत्तीसगढ़ के जंगलों में लाल आतंक के बीज बोया करते थे। एक दिन अचानक आतंक और हिंसा से इनका मोह भंग हुआ और बंदूक छोड़कर समाज की मुख्यधारा में शामिल होने की ठानी। कच्ची उमर में नक्सलियों के साथ बंदूक थामने वाले इन लोगों ने जीवन जीने के लिए कोई और तरीका सीखा ही नहीं था। सवाल यह था कि आत्मसमर्पण के बाद जीविकोपार्जन के लिए क्या करें। राज्य सरकार की आत्मसमर्पण नीति ने इन्हें एक राह दिखाई और आज यह अपने बूते पर खड़े होकर आत्मसम्मान की जिंदगी जी रहे हैं।

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हम बात कर रहे हैं राजनांदगांव जिले के उन पूर्व नक्सलियों की, जिन्होंने आत्मसमर्पण के बाद मशरूम उत्पादन के जरिए अपनी जिंदगी को एक नई दिशा दी है। इस काम में पुलिस विभाग और वन विभाग के जरिए उन्हें मदद मिल रही है। उन्हें इस काम का अच्छा रिस्पांस भी मिल रहा है। खास बात यह है कि इनके द्वारा उत्पादन किए जाने वाले मशरुम को बेचने के लिए बाजार तक भी लाना नहीं पड़ रहा है। क्योंकि फसल के तैयार होते ही स्टॉफ के लोग उत्पादन वाली जगह से ही हाथों हाथ खरीद ले रहे है। इस तरह मुख्यधारा में लौट कर सरेंडर नक्सलियों बिना भेदभाव वाला काम मिल रहा है, वही उनकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत हो रही है।

मशरुम उत्पादन पर विशेष प्रशिक्षण

पुलिस नक्सल ऑपरेशन शाखा से मिली जानकारी के अनुसार मशरुम उत्पादन का काम वर्ष 2019 शुरू किया गया है। पुलिस कंट्रोल रूम के पास पीछे हिस्से में सरेंडर नक्सली मशरुम का उत्पादन कर रहे है। इससे पहले सरेंडर नक्सलियों को पुलिस प्रशासन द्वारा मशरुम उत्पादन पर विशेष प्रशिक्षण दिया गया है। इस प्रशिक्षण के बाद आधा दर्जन से ज्यादा सरेंडर महिला नक्सली मशरूम उत्पादन कर रहे है।

रोजाना करीब 3 किलो मशरुम का उत्पादन

मशरूम की फसल बीज डालने के करीब 22 दिन के भीतर बाजार में बेचने लायक हो जाता है। इसी वर्ष शुरू हुआ मशरुम उत्पादन फिलहाल कम क्षेत्रफल में किया जा रहा है। यही वजह है कि फिलहाल रोजाना करीब 3 किलो मशरुम का उत्पादन हो रहा है। जो करीब 200 रूपए प्रति किलो के हिसाब से ब्रिकी हो रही है। मशरुम उत्पादन में रुचि बढ़ने के बाद इसका दायरा भी बढ़ाया जा सकता है। खास बात यह है कि सभी को अलग-अलग उत्पादन करने की सुविधा भी मिल रही है। इसमें सरेंडर महिला नक्सली समेत पुरुष भी सहयोग कर रहे है।

मशरुम उत्पादन में फिलहाल बड़ी आमदनी हाथ नहीं आ रही है, लेकिन उत्पादन का एरिया बढ़ाने के बाद आय में वृद्धि होगी। इसके लिए पुलिस प्रशासन मशरुम उत्पादन के लिए बनाए गए पुराने शेड को भी डेवलप कर सकती है। ताकि उत्पादन की जगह बढ़ाने से उनके परिवार की भरण-पोषण आसानी से हो सके और भविष्य के लिए भी बचत कर सके। साथ ही मुख्यधारा से जुड़ने वालों को निश्चित फायदा पहुचाया जा सके। 


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