रेटिंग एजेंसियों ने माना, कोरोना की वजह से पटरी से उतरी भारतीय अर्थव्यवस्था अब फिर से लगी दौड़ने
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर के सकारात्मक रहने से साफ हो जाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के गिरफ्त से तेजी से बाहर निकल रही है जिसकी तस्दीक विविध रेटिंग एजेंसियां भी कर रही हैं।
सतीश सिंह। महामारी जनित कारणों से पटरी से उतर चुकी भारतीय अर्थव्यवस्था अब तेजी से पटरी पर दौड़ लगा रही है। यही कारण है कि अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि का अनुमान पहले के 10.8 प्रतिशत से बढ़ाकर 13.7 प्रतिशत कर दिया है। आर्थिक गतिविधियों के सामान्य होने और कोरोना वायरस का टीका बाजार में आने के बाद लोगों के मन से कोरोना वायरस का डर खत्म होने की वजह से मूडीज ने यह नया अनुमान लगाया है। इस रेटिंग एजेंसी ने चालू वित्त वर्ष के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में आने वाली गिरावट के अनुमान को भी पहले के 10.6 प्रतिशत में सुधार करते हुए इसे सात प्रतिशत कर दिया है।
हालांकि मूडीज के अनुसार भारत की राजकोषीय स्थिति वित्त वर्ष 2021-22 में कमजोर बनी रहेगी। सरकार के समक्ष कर्ज को लेकर चुनौतियां बनी रहेंगी। एजेंसी के अनुसार ज्यादा राजकोषीय घाटे, धीमी जीडीपी एवं नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर रहने के कारण सरकार के लिए कर्ज के बोझ को कम करना आसान नहीं होगा। वैसे सरकार राजस्व बढ़ाने की कोशिश कर रही है, लेकिन इस मोर्चे पर सरकार के लिए सफल होना फिलहाल मुमकिन नहीं है। जीएसटी संग्रह में तेजी आई है, लेकिन राजस्व के दूसरे स्त्रोतों से अभी भी अपेक्षित राजस्व का संग्रह नहीं हो पा रहा है। विनिवेश की मदद से भी गैर-कर राजस्व में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी की संभावना नहीं है, क्योंकि वर्ष 1996 (जो विनिवेश के जरिये गैर-कर राजस्व संग्रह का पहला साल था) से अब तक सिर्फ तीन बार ही सरकार विनिवेश के लक्ष्य को हासिल कर सकी है।
मौजूदा समय में दो सरकारी बैंकों को बेचने के बाद भी सरकार को 30-35 हजार करोड़ रुपये से अधिक मिलने की संभावना नहीं है, क्योंकि मौजूदा समय में बेचे जाने वाले बैंकों के शेयरों का बाजार मूल्य ज्यादा नहीं है। इसे बेचना सरकार के लिए आसान भी नहीं है। एयर इंडिया को बेचने के लिए सरकार लंबे समय से प्रयासरत है, लेकिन अभी तक सरकार को इसमें सफलता नहीं मिली है। फिर भी, सरकार को दो सरकारी बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के विनिवेश से वित्त वर्ष 2021-22 में एक लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा गैर-कर राजस्व आने की उम्मीद है, पर इसे व्यावहारिक कहना समीचीन नहीं होगा। मूडीज का कहना है कि केंद्र सरकार का वित्त वर्ष 2020-21 और वित्त वर्ष 2021-22 में राजकोषीय घाटा अनुमान की तुलना में कम रहेगा।
वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही में राजस्व संग्रह में तेजी आने और वित्त वर्ष 2021-22 में ज्यादा नॉमिनल जीडीपी वृद्धि के अनुमान के आधार पर मूडीज ने यह अनुमान लगाया है। मूडीज का कहना है कि एक फरवरी 2021 को वित्त वर्ष 2021-22 के लिए पेश किए गए के बजट के मुताबिक सरकार ने वित्त वर्ष 2026 तक जीडीपी के 4.5 प्रतिशत राजकोषीय घाटे को रखने का लक्ष्य रखा है, जिससे यह संकेत मिलता है कि आगामी चार वर्षो तक राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.5 प्रतिशत के आसपास रहेगा, क्योंकि सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगातार प्रयासरत रहेगी और मौजूदा आर्थिक मानकों में आगामी वर्षो में और भी बेहतरी आने की संभावना है।
रेटिंग एजेंसी इक्रा के अनुसार 31 मार्च 2022 को समाप्त होने वाले वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि में उल्लेखनीय सुधार की उम्मीद है। केंद्र सरकार द्वारा सरकारी खर्च को बढ़ाने और विविध उत्पादों के खपत में तेजी को देखते हुए एजेंसी ने यह अनुमान लगाया है। इक्रा के अनुसार कोरोना महामारी का प्रभाव कम हो रहा है। इस वजह से वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी 10.5 प्रतिशत और नॉमिनल जीडीपी में 14.5 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो सकती है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच के अनुसार भी भारत सरकार द्वारा इस वर्ष बजट में पेश किए गए घाटे का लक्ष्य ज्यादा है, लेकिन कोरोना महामारी को देखते हुए सरकार के इस कदम को सही ठहराया जा सकता है, क्योंकि सरकारी खर्च में बढ़ोतरी से राजकोषीय घाटे में इजाफा होना स्वाभाविक है। सरकार लोगों के स्वास्थ्य में बेहतरी लाने के लिए राजकोषीय घाटे की चिंता किए बगैर सरकारी खर्च में वृद्धि कर रही है, ताकि आर्थिक गतिविधियों में पर्याप्त तेजी आ सके। इसी वजह से भारत का सार्वजनिक ऋण अनुपात भी बढ़ा है।
गौरतलब है कि फिच ने जून 2020 में भारत को नकारात्मक परिदृश्य के साथ -बीबीबी माइनस- रेटिंग दिया था, जो विकास पर कोरोना महामारी के पड़ने वाले नकारात्मक असर और सरकार पर कर्ज के दबाव को देखते हुए किया गया था। फिच ने वित्त वर्ष 2021 में राजकोषीय घाटा के 9.5 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2021-22 में 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। फिच के अनुसार बजट के आर्थिक और राजस्व संबंधी अनुमान विश्वसनीय हैं, क्योंकि अर्थव्यवस्था के विविध मानकों में सकारात्मक तेजी आने से सुधार हो रहा है। रेटिंग एजेंसियों के अनुसार कोरोना महामारी के कारण बाजार में कर्ज को लेकर दबाव बना रहेगा। भारत में कारोबार में अभी भी जोखिम ज्यादा है। कहीं-कहीं पर पूंजी प्रवाह को लेकर भी जोखिम बना हुआ है।
अनिश्चितता और महामारी के दीर्घावधि असर के कारण रियल एस्टेट क्षेत्र में अभी भी ज्यादा जोखिम की स्थिति देखी जा रही है। बावजूद इसके भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है, इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है। धीरे-धीरे कोरोना वायरस का खौफ लोगों के मन-मस्तिष्क से बाहर निकल रहा है। बाजार में टीका सुलभ तरीके से उपलब्ध होने की वजह से लोगों के मन में भरोसा बढ़ा है। बहुत सारे लोग अपने काम पर लौट गए हैं और बचे हुए प्रवासी मजदूर एवं कामगार भी अपने काम पर लौट रहे हैं। लगभग सभी सेक्टर में काम-काज की गति फिर से तेज हो चुकी है। ऐसे में यह कहना अनुचित नहीं होगा कि कोरोना महामारी के नकारात्मक प्रभावों से जल्द ही भारतीय अर्थव्यवस्था बाहर होगी।