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आम आदमी ही नहीं, 'रावण' पर भी पड़ी कोरोना की मार, पुतलों के लिए नहीं मिले एक भी ऑर्डर

कोरोना का असर सिर्फ आम आदमी ही नहीं लोककला और संस्कृति पर भी पड़ा है। ऐसे में पुतले बनाने वाले कारीगर खाली बैठे हैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 20 Sep 2020 09:38 PM (IST)Updated: Sun, 20 Sep 2020 09:38 PM (IST)
आम आदमी ही नहीं, 'रावण' पर भी पड़ी कोरोना की मार, पुतलों के लिए नहीं मिले एक भी ऑर्डर
आम आदमी ही नहीं, 'रावण' पर भी पड़ी कोरोना की मार, पुतलों के लिए नहीं मिले एक भी ऑर्डर

जेएनएन, नई दिल्ली। दुर्गा पूजा और दशहरा आने को है, लेकिन बाजार अभी तक सूने हैं। यहां तक कि दशहरे पर रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के जिन पुतलों के लिए दो महीने पहले ऑर्डर दिए जाते थे, वे भी इस बार नहीं दिए गए हैं। कोरोना का असर सिर्फ आम आदमी ही नहीं, लोककला और संस्कृति पर भी पड़ा है। ऐसे में पुतले बनाने वाले कारीगर खाली बैठे हैं।

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साल भर की आजीविका का बड़ा हिस्सा पुतलों से कमा लिया करते थे कारीगर

कारीगर साल भर की अपनी आजीविका का बड़ा हिस्सा पुतले बनाकर कमा लिया करते थे, लेकिन इस बार अभी तक ऑर्डर तक नहीं मिला है।

यूपी में दुर्गा पूजा और दशहरा उत्सव पर कोरोना संक्रमण का साया, कारीगर खाली बैठे हैं

उत्तर प्रदेश में गणेश महोत्सव सन्नाटे में बीता तो दुर्गा पूजा और दशहरा उत्सव पर भी संक्रमण का साया बरकरार है। ऐसे में पुतला बनाने वाले कारीगर खाली बैठे हैं। वहीं, दुर्गा महोत्सव से जुड़ी प्रतिमाएं भी नहीं बन रही हैं। पांच पीढ़ियों से पुतला बनाने में लगे लखनऊ के नूर बाड़ी के राजू फकीरा को ऐशबाग से छोटे पुतले के अलावा कोई ऑर्डर नहीं मिला है। मेरठ के शाहपीर गेट निवासी 45 वर्षीय मेहताब कहते हैं कि पुतला बनाने से 16 परिवार चार महीने का गुजारा पा जाते थे। कोरोना ने सब छीन लिया।

रामलीला में 80 फुट का रावण बनाने को लेकर गाइडलाइन का हो रहा इंतजार

आगरा की मशहूर रामलीला में 80 फुट का रावण बनाने वाले छोटे खां, मैनपुरी के असलम, फीरोजाबाद के कमलेश, मुरादाबाद के असलम कहते हैं कि रामलीला कमेटियों को शासन की गाइडलाइन का इंतजार है।

दिल्ली में पांच करोड़ रुपये का होता था कारोबार, हर साल बनते थे तीन हजार पुतले

नजफगढ़, नंगली सकरावती, द्वारका मोड़, उत्तम नगर और तितारपुर पश्चिमी दिल्ली के कुछ ऐसे इलाके हैं, जहां हर साल पुतले बनाए जाते थे। इलाके में करीब तीन हजार पुतलों का निर्माण होता था। इससे हर वर्ष करीब चार से पांच करोड़ रुपये का कारोबार होता था, लेकिन इस बार तो अभी तक खाता भी नहीं खुला है। यहां हरियाणा और राजस्थान से कारोबारी आते थे। इनके साथ कार्य करने के लिए बिहार, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश से लोग भी आते थे।

पंजाब में नहीं मिल रहे ऑर्डर, पुतले तैयार करके तीन लाख रुपये की कमाई होती थी

पंजाब की दशहरा कमेटियों में पुतले तैयार करवाने को लेकर खास उत्साह नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि उत्तर प्रदेश, बंगाल व बिहार से पुतले बनाने वाले कारीगर अभी तक नहीं आए हैं। हालांकि स्थानीय कारीगरों को भी ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। जालंधर में पुतले तैयार करने वाले संजीवन लाल ने कहा कि इस बार परिवार का खर्च चलाना मुश्किल है। उन्होंने बताया कि हर बार 100 से अधिक पुतले तैयार करके करीब तीन लाख रुपये की कमाई हो जाती थी। पठानकोट के रछपाल ने कहा कि उनकी सारे साल की कमाई में से 60 फीसद इसी पर निर्भर है।

कम होगा पुतलों पर खर्च, पटना के गांधी मैदान में दशहरा पर रावण-वध के आयोजन पर संशय के बादल

पटना के गांधी मैदान में दशहरा पर वर्ष 1955 से रावण-वध का आयोजन हो रहा है। इस बार आयोजन पर भी संशय है। दशहरा कमेटी के अध्यक्ष कमल नोपानी ने कहा कि जिला प्रशासन को आयोजन के लिए आवेदन भेजा गया है। पिछले साल आयोजन पर 22 लाख रुपये खर्च हुए थे। इस बार का बजट दस लाख से ऊपर नहीं जाने वाला।

कोरोना के कारण जम्मू में भी बना हुआ है असमंजस, रावण के पुतले नहीं बनाए जा रहे

कोरोना के कारण जम्मू-कश्मीर में अभी कहीं रावण के पुतले नहीं बनाए जा रहे। श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर मैनेजमेंट ट्रस्ट गांधीनगर के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री गुलचैन सिंह चाढ़क ने कहा कि उन्होंने जिला आयुक्त, जम्मू से बात की थी। उन्होंने धार्मिक संगठनों के साथ जल्द बैठक कर निर्णय लेने का आश्वासन दिया था। फिलहाल कोरोना के बढ़ते मामले देखते हुए रावण दहन के आयोजन की संभावना कम है।

जबलपुर में 71 वर्ष से रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले बना रहा हूं इसबार हाथ खाली

मध्य प्रदेश के जबलपुर में आलम आतिशबाजी का परिवार 71 वर्ष से रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले बना रहा है। जबलपुर के अलावा नागपुर और सतना में भी जाकर पुतले बनाते थे। 45 से 55 फीट के पुतलों से इन्हें ढाई लाख रुपये तक की आय हो जाती थी। इस बार एक भी ऑर्डर नहीं मिला है।-


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