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लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष पर घमासन तय

नई दिल्ली। सोमवार से शुरू हो रहे बजट सत्र में सरकार और विपक्ष खुलकर आमने-सामने होंगे। कांग्रेस ने यूं तो मोदी सरकार को घेरने के लिए तमाम मुद्दे अपने तरकश में इकट्ठे कर लिए हैं, लेकिन पहला मोर्चा लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर खुलेगा। संप्रग को मिली सीटों की संख्या के आधार पर लोकसभा में अगर कांग्रेस को नेता विपक्ष पद न

By Edited By: Published: Thu, 03 Jul 2014 09:30 PM (IST)Updated: Thu, 03 Jul 2014 09:30 PM (IST)
लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष पर घमासन तय

नई दिल्ली। सोमवार से शुरू हो रहे बजट सत्र में सरकार और विपक्ष खुलकर आमने-सामने होंगे। कांग्रेस ने यूं तो मोदी सरकार को घेरने के लिए तमाम मुद्दे अपने तरकश में इकट्ठे कर लिए हैं, लेकिन पहला मोर्चा लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर खुलेगा। संप्रग को मिली सीटों की संख्या के आधार पर लोकसभा में अगर कांग्रेस को नेता विपक्ष पद नहीं मिला तो वह राज्यसभा में न तो सरकार का सहयोगी करेगी और न ही लोकसभा की कार्यवाही को सुचारू ढंग से चलने देगी। सूत्रों के मुताबिक, नेता विपक्ष के मुद्दे पर कांग्रेस ने अदालत जाने का विकल्प भी खुला रखा है।

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कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'हम भाजपा या सरकार से पद नहीं मांग रहे। हम अपना संवैधानिक अधिकार मांग रहे हैं, क्योंकि ऐसा लगता है कि सरकार की मंशा सीवीसी, सीईसी, सीबीआइ और लोकपाल जैसे पदों पर अपनी मनमर्जी से लोगों को नियुक्त करने की है, जिसमें विपक्ष की राय ही नहीं होगी।' कांग्रेस के पास लोकसभा के कुल सांसदों का दस फीसद भी न होने से सरकार ने नेता विपक्ष का पद खाली रखने का मन बनाया है।

अगर नेता विपक्ष नहीं होगा, तो अहम नियुक्तियों में विपक्ष की शह भी नहीं होगी। इसीलिए, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर कोई समझौता न करने का फैसला किया है। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन से गुरुवार को मल्लिकार्जुन खड़गे, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दीपेंद्र हुड्डा की मुलाकात को इसी पेशबंदी का हिस्सा माना जा रहा है। यह अलग बात है कि खड़गे ने इसे सौजन्य भेंट करार दिया।

संसद से सड़क तक संघर्षसंसद में हाशिये पर रहने के बावजूद महंगाई और मोदी सरकार के एक माह के भीतर लिए गए फैसलों पर कांग्रेस हल्ला बोल करेगी। वहीं, संसद में कम संख्या की कमजोरी की भरपाई के लिए सड़क पर अपने कार्यकर्ताओं को भी उतारने की तैयारी है। हालांकि, कांग्रेस के पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए इस रणनीति के कारगर होने पर सवाल जरूर हैं। वैसे कांग्रेसी रणनीतिकार मान रहे हैं कि मोदी सरकार ने एक माह में ही उसे तमाम मुद्दे दे दिए हैं।

मोदी सरकार द्वारा नृपेंद्र मिश्रा की अध्यादेश लाकर की गई नियुक्ति से लेकर, सुब्रमण्यम विवाद व इराक में फंसे भारतीयों की वापसी में सरकार की नाकामी तक कांग्रेस के तीर सरकार को मुश्किलों में खड़ा करने के लिए काफी हैं। मुद्दों के साथ पेशबंदी की इस रणनीति को कांग्रेस ने 'संसद से सड़क तक' नाम दिया है।

कांग्रेस इराक में फंसे भारतीयों को लेकर सरकार की ढुलमुल नीति और सीमा पर अतिक्रमण की बढ़ती घटनाओं पर भी सरकार से सवाल करेगी। कोशिश होगी कि सरकार इन मुद्दों पर न सिर्फ बैकफुट पर दिखे, बल्कि निहालचंद, सुब्रमण्यम और वीके सिंह के मामले पर कांग्रेस को बढ़त मिल जाए।

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नेता विपक्ष को लेकर संशय कायम


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