कसौटी: स्वास्थ्य मंत्रालय, इलाज के अभाव में नहीं होगी किसी गरीब की मौत: जेपी नड्डा
ऐसा नहीं है हमारी योजनाओं का लाभ सीधे जनता को मिल रहा है। जिला अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधाओं का लाभ सीधे गरीब मरीजों को मिल रहा है।
[जागरण स्पेशल]। भारत जैसे विशाल देश की 130 करोड़ की आबादी के स्वास्थ्य का ख्याल रखने के लिए बड़े निवेश की जरूरत है। पिछले चार साल की बात हो तो केंद्र सरकार खर्च का आकार तो अपेक्षित रूप से नहीं बढ़ा पाई है। लेकिन दावा है कि सोच में बदलाव के जरिए ही जमीन पर अंतर दिखने लगा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के साथ दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता नीलू रंजन की बातचीत का अंश...
सरकार के चार साल हो गए हैं। आम आदमी तक स्वास्थ्य की सुविधाएं नहीं पहुंच पाई हैं। कहां कमी रह गई?
मैं इससे सहमत नहीं हूं, जमीन पर बड़ा बदलाव आया है। ऐसे प्रोग्राम संचालित किए गए हैं, जिससे हम हेल्थ के क्षेत्र में नेशनल इंडीकेटर को सुधार सके। पहले टुकड़ों में फैसले होते थे। अगर अंधापन आया तो इस पर काम शुरूकर दिया। लेप्रोसी की चर्चा हुई, तो नेशनल लेप्रोसी इलीमिनेशन प्रोग्राम लांच कर दिया। बल्ड प्रेशर बढ़ा, डाइबिटीज बढ़ी, तो हमने उनका प्रोग्राम बना दिया। पहली बार व्यापक पॉलिसी लेकर आए, जिसका ध्येय है- रोग से निरोग की तरफ। इसमें प्राइमरी हेल्थ सेंटर पर जोर दिया गया और डेढ़ लाख प्राथमिक सेंटर को वेलनेस सेंटर में वर्ष 2022 तक तब्दील करने का निर्णय लिया गया।
प्राइमरी हेल्थ सेंटर तो पहले भी थे, उसे वेलनेस सेंटर में बदलने भर से किस तरह बड़े बदलाव की उम्मीद कर सकते हैं?
यह आगे चलकर बहुत कारगर और दूरगामी प्रभाव वाला कदम साबित होगा इन डेढ़ लाख सब सेंटर से देश के सभी 30 वर्ष तक के लोगों का डायबिटिक, ब्लड प्रेशर, सर्विकल कैंसर, ओरल कैंसर, हाइपरटेंशन, लेप्रोसी और महिलाओं के ब्रेस्ट कैंसर की जांच की सुविधा होगी। उनकी यूनिवर्सल जांच होगी। ऐसे में हम प्राइमरी तौर पर रोग का पता लगा सकेंगे।
वाजपेयी सरकार में छह एम्स खोलने की घोषणा की गई थी, 14 साल बाद भी वे पूरी तरह चालू नहीं हो पाएं हैं?
पिछली सरकारों ने इस पर कोई काम नहीं किया। हमने सिस्टम में बदलाव किया। पहले हर फाइल दिल्ली तक आती थी। हमने सभी को डिसेंट्रलाइज कर दिया। नए एम्स के काम में पिछले चार साल में आई तेजी को कोई भी देख सकता है। इसके बावजूद बीमारी या अस्पताल की बदइंतजामी की वजह से बच्चों की मौत की खबरें आती रहती हैं। जैसा कि पिछले साल गोरखपुर में हुआ था। हम राज्यों के अस्पतालों को दुरुस्त करने की कोशिश कर रहे हैं। कई राज्यों में सुधार भी हुआ है। केंद्र के कायाकल्प प्रोग्राम के तहत जिला अस्पताल पुरस्कार भी ले रहे हैं। इसके तहत सात पैमानों पर जिला अस्पताल में प्रतिस्पद्र्धा कराते हैं। पहले राज्य के भीतर फिर ऑल इंडिया स्तर पर प्रतियोगिता होती है। सालों साल की बीमारियां ठीक करने में समय लगता है।
लेकिन देश में पर्याप्त डॉक्टर ही नहीं है। डॉक्टरों के बिना लोगों के स्वास्थ्य की देखभाल का दावा कैसे किया जा सकता है।
मेडिकल एजुकेशन में हम आमूलचूलपरिवर्तन लाने जा रहे हैं। आने वाले संसद सत्र में एमएनसी बिल ला रहे हैं। 58 नए मेडिकल कॉलेज सरकार ने खोले हैं। 24 मेडिकल कॉलेज की मंजूरी दी है। 15 हजार पीजी सीट हमने बढ़ा दी है। सीट बढ़ाने की प्रक्रिया जारी है।
आयुष्मान भारत को दुनिया की सबसे बड़ी हेल्थकेयर स्कीम कहा जा रहा है। लेकिन रेट को लेकर निजी अस्पताल और बीमा कंपनियां नाराज चल रही हैं।
अभी शुरुआत है। हर कोई अपनी बात रखता है। वो मोलभाव की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। पीएम मोदी के नेतृत्व में मौजूदा सरकार इतना जरूर आश्वस्त करेगी कि अब देश में पैसे और इलाज के अभाव में किसी गरीब की मौत नहीं होगी। गरीब की चिंता करना हमारी जिम्मेदारी है और बड़ी से बड़ी बीमारियों का भी मुफ्त इलाज कराएंगे।
लेकिन जमीन पर इतने सारे बदलाव देखने को नहीं मिल रहे?
ऐसा नहीं है हमारी योजनाओं का लाभ सीधे जनता को मिल रहा है। जिला अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधाओं का लाभ सीधे गरीब मरीजों को मिल रहा है। प्रधानमंत्री मातृत्व सुरक्षा अभियान के तहत मातृ मृत्यु दर में सुधार हुआ है। इंद्रधनुष के माध्यम से बच्चों का इम्यूनाइजेशन 10 फीसद बढ़ाने में सफलता मिली। इसमें पांच नए रोगों के वैक्सीन को शामिल करने जा रहे हैं। स्टेंट का दाम कंट्रोल किया है। वहीं, नीकैप के दामों का कंट्रोल किया है। साथ ही अमृत दुकान खोलकर योजना के तहत करोड़ों लोगों को सस्ती दवाएं दी जा रही हैं।