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नीति आयोग की सिफारिश, संसद के बजट सत्र में नहीं चलेगी रेल!

नीति आयोग ने रेल बजट पेश किए जाने की परिपाटी को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की सिफारिश की है।

By kishor joshiEdited By: Published: Wed, 22 Jun 2016 09:25 AM (IST)Updated: Wed, 22 Jun 2016 11:16 AM (IST)
नीति आयोग की सिफारिश, संसद के बजट सत्र में नहीं चलेगी रेल!

हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। यह लगभग तय माना जा सकता है कि अगले साल अलग से रेल बजट न आए। साल दर साल लोकलुभावन घोषणाओं का प्लेटफार्म बनते जा रहे रेल बजट को सरकार खत्म कर सकती है। इसके साथ ही रेल बजट में किराये-भाड़े में कमी या बढ़ोतरी और विशेष रियायतों की बड़ी-बड़ी घोषणाओं का दौर खत्म हो सकता है। ऐसा होने पर रेलवे का वित्तीय लेखा-जोखा अन्य मंत्रालयों की तरह देश के आम बजट में ही संसद के समक्ष रखा जाएगा।

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पीएमओ को भेजी सिफारिश

सूत्रों के मुताबिक नीति आयोग ने पिछले हफ्ते एक रिपोर्ट तैयार कर अलग से रेल बजट पेश किए जाने की परिपाटी को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की सिफारिश प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी है। पीएमओ ने इस रिपोर्ट को रेलवे बोर्ड के पास टिप्पणी के लिए भेजा है। बोर्ड को इस पर अगले कुछ दिनों में टिप्पणी देने को कहा गया है। इसके बाद रेल मंत्रलय और वित्त मंत्रलय के अधिकारियों के संयुक्त दल इस रिपोर्ट की सिफारिशों को अमल में लाने के लिए उपयुक्त उपाय करेंगे।

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लोकलुभावन घोषणाओं से नुकसान

रिपोर्ट में कहा गया है कि रेल बजट लोकलुभावन घोषणाएं करने के लिए एक राजनीतिक प्लेटफार्म बनकर रह गया है जिससे भारतीय रेल पर अवांछित प्रभाव पड़ा है। रेल बजट खत्म होने पर सरकार में नौकरशाही और राजनीतिक प्रक्रिया में कमी आएगी, जिससे रेलवे को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।

आम बजट का हिस्सा बनेगी रेल

सूत्रों ने कहा कि रिपोर्ट में यह दलील भी दी गयी है कि संविधान ने अलग से रेल बजट पेश करने का दायित्व सरकार पर नहीं डाला है इसलिए इसे खत्म करने में कोई कानूनी बाधा नहीं आएगी। सूत्रों ने कहा कि अलग रेल बजट की जगह हर साल के आम बजट में रेलवे के वित्तीय प्रदर्शन, प्रस्तावित राजस्व, कार्यकारी व्यय और पूंजीगत कार्यो के लिए वार्षिक योजना पेश की जा सकती है जैसा कि अन्य विभागों के संबंध में फिलहाल किया जा रहा है। सूत्रों ने कहा कि यह रिपोर्ट नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबरॉय ने तैयार की है जो पहले भी रेलवे के कायापलट पर एक रिपोर्ट तैयार कर चुके हैं। सूत्रों ने कहा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग रेल बजट पेश करने की मौजूदा व्यवस्था को खत्म करने से रेल सुधार की दिशा में अच्छा संदेश जाएगा।

संसद में किराया घोषणा जरूरी नहीं

सूत्रों ने कहा कि अब तक रेल बजट के अवसर का इस्तेमाल किराए में वृद्धि या कमी के लिए किया जाता रहा है लेकिन हकीकत यह है कि रेल किराए में वृद्धि के लिए संसद की मंजूरी आवश्यक नहीं है। इसलिए रेल बजट अलग से पेश करना जरूरी नहीं है। सूत्रों ने कहा कि फिलहाल रेलवे बजट के दस प्रमुख भाग होते हैं जिसमें से मात्र दो को ही संसद की मंजूरी की आवश्यकता होती है। ये दो भाग हैं- पिछले वित्त वर्ष का वित्तीय प्रदर्शन और बजटीय वर्ष के लिए प्रस्तावित राजस्व और व्यय। इस तरह इन दोनों को आम बजट में शामिल किया जा सकता है जैसा कि अन्य मंत्रलयों के संबंध में होता है। हालांकि रेलवे का एक्शन प्लान बनाने, विजन योजनाएं तैयार करने और आउटकम दस्तावेज तैयार करने का काम रेल मंत्रालय के पास ही रहेगा।

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नब्बे साल पुराना इतिहास

सूत्रों ने हालांकि इस बात को स्वीकार किया कि रेल बजट का 90 साल पुराना इतिहास है और यह तब से पेश किया जा रहा है। इसलिए इसे खत्म करने पर विरोध भी हो सकता है।


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