देश में बढ़ गई निर्भया की तादाद, लेकिन हमें शर्म नहीं आती
उन्नाव और कठुआ में हुए दुष्कर्म मामलों ने एक बार फिर से हमारा सिर शर्म से झुका दिया है। कठुआ मामले की गूंज संयुक्त राष्ट्र तक में सुनाई दी है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। उन्नाव और कठुआ में हुए दुष्कर्म मामलों ने एक बार फिर से हमारा सिर शर्म से झुका दिया है। कठुआ मामले की गूंज संयुक्त राष्ट्र तक में सुनाई दी है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनिया गुतेरेस ने इस मामले में दोषियों की जल्द गिरफ्तारी और उन्हें सख्त सजा देने की अपील की है। लेकिन उन्नाव और कठुआ के बाद भी यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है।
यह हालत सिर्फ भारत की ही नहीं है बल्कि पाकिस्तान में भी ऐसा ही हाल है। जनवरी में वहां पर सात साल की मासूम जैनब अंसारी की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई थी। जिसके बाद वहां पर कई जगहों पर इंसाफ की मांग को लेकर प्रदर्शन किए गए थे। अब मंगलवार को एक बार फिर कराची की सड़कों पर यही सब दोबारा देखने को मिल रहा है। इस बार सात वर्षीय राबिया से दुष्कर्म के बाद हत्या किए जाने के बाद वहां पर लोगों में गुस्सा है।
शर्म नहीं आती
बहरहाल, इतना सब होने पर भी एक हम हैं जिन्हें शर्म नहीं आती है। कठुआ में मासूम के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या के बाद भारत में भी जनता के बीच आक्रोश साफ दिखाई देता है। लड़कियां, महिलाएं और दूसरे लोग एक बार फिर सड़क पर इंसाफ की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं तो कुछ उसके लिए कैंडल मार्च कर रहे हैं। राजनीतिक पार्टियां भी इसमें पीछे नहीं हैं।
पिछले दिनों कांग्रेस ने भी इसी तरह का एक कैंडल मार्च किया था। लेकिन अफसोस ये है कि कांग्रेस ने ही 16 दिसंबर 2012 को निर्भया के लिए इंसाफ मांगने वालों पर लाठी भांजी थी और आंसू गैस के गोले छोड़े थे। इस वाकये को भी अब छह वर्ष बीत गए हैं। मामला अपने अंजाम तक पहुंचने के बाद भी फिलहाल ठंडा ही पड़ा है। ऐसा इसलिए क्योंकि निचली अदालत और हाईकोर्ट ने इस मामले के सभी दोषियों को फांसी की सजा सुनाई है, लेकिन अभी इस मामला सुप्रीम कोर्ट में है। लिहाजा ठंडा है।
बढ़ गईं निर्भया
निर्भया से पहले और इस मामले के बाद निर्भया की गिनती कभी कम नहीं हुई बल्कि लगातार बढ़ी ही है। लगातार इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं। बीते तीन वर्षों में बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों में करीब 34 फीसद की तेजी दर्ज की गई है। अपने को एक सभ्य समाज का हिस्सा कहलाने वालों के लिए यह और भी शर्म की बात है कि अधिकतर मामलों में पीडि़ता का करीबी और रिश्तेदार ही इस तरह की हैवानियत को अंजाम देने वालों में शामिल रहा है।
ऐसा हम नहीं बल्कि दिल्ली पुलिस की एक रिपोर्ट इसको बयां कर रही है। इसके अलावा नोबल पुरस्कार पाने वाले कैलाश सतयार्थी की भी रिपोर्ट ऐसा ही कुछ बताती है। बीते तीन वर्षों में इस तरह के अपराध तो बढ़े हैं लेकिन न तो कोर्ट की गिनती बदली न ही जजों की संख्या में कोई इजाफा हुआ है। देश के कोर्ट यहां तक की सुप्रीम कोर्ट भी जजों की कमी से जूझ रहा है।
पांच में से एक बच्ची बनती है शिकार
कैलाश सत्यार्थी की रिपोर्ट एक और चौंकाने वाला खुलासा करती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पांच से नौ वर्ष की पांच बच्चियों में से एक बच्ची यौन शोषण का शिकार बनती है। इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि इस तरह के अपराध गांवों के मुकाबले शहरों में ज्यादा हो रहे हैं। शहरों में मौजूद अनाधिकृत कालोनियों में इस तरह के अपराध ज्यादा हुए हैं। यह अफसोस की बात ही कही जाएगी कि जिन जगहों को सबसे ज्यादा महफूज माना जाता है वहीं पर हमारी बच्चियां सबसे ज्यादा शिकार बनाई जा रही हैं।
ये हैं वजह
यहां पर एक सवाल यह भी उठता है कि आखिर इस तरह के अपराधों के बढ़ने के पीछे वजह कौन सी हैं। जानकार मानते हैं कि बदलते माहौल में खुलापन लोगों की सोच में बदलाव और सोशल मीडिया भी इसका एक बड़ा कारण बनकर उभरे हैं। सोशल मीडिया इस वजह से क्योंकि इसके जरिए हम उन अंजान चेहरों से भी जुड़ गए हैं जिनका हमसे दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। इनको हम अपना करीबी दोस्त मानने लगे हैं। यही बाद में हमारा गलत तरीके से सबसे ज्यादा फायदा भी उठाते हैं।
पीड़िता का करीबी शामिल
पुलिस की रिपोर्ट बताती है कि करीब 96 फीसद मामलों में इन अपराधों में पीडि़ता का करीबी ही शामिल होता है। वहीं कुछ मामले कभी सामने ही नहीं आते हैं। पुलिस का यहां तक कहना है कि कुछ मामलों में तो बच्ची का पिता, अंकल और दोस्त शामिल होता है।
निर्भया फंड
आपको यहां पर बता दें कि वर्ष 2013 में केंद्र सरकार ने 1000 करोड़ रुपये से निर्भया फंड की घोषणा की थी। यह फंड महिलाओं की सुरक्षा और उन्हें कामयाब बनाने पर खर्च किया जाना था। साल दर साल इस फंड में बढ़ावा किया गया। लेकिन कई सरकारों ने इस फंड से कोई पैसा खर्च नहीं किया। यह हाल तब है जब कोई भी राज्य इस तरह के अपराधों से अछूता नहीं है।