मैला ढोने की कुप्रथा में यूपी सबसे आगे, सरकार के ढीले रवैये पर एनएचआरसी प्रमुख ने जताई नाराजगी
मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एचएल दत्तू ने कानून के बावजूद सिर पर मैला ढोने का क्रम जारी रहने पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर पर बदलाव लाने की सख्त जरूरत है।
नई दिल्ली, जेएनएन। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एचएल दत्तू ने देश में सिर पर मैला ढोने का क्रम जारी रहने पर चिंता जताते हुए कहा कि सरकार को यह बताना चाहिए कि इस कुप्रथा को खतम करने के लिए उसने क्या उपाय किये। जस्टिस दत्तू ने कहा कि सिर्फ कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं है जमीनी स्तर पर बदलाव लाने की जरूरत है। जस्टिस दत्तू ने यह बात सिर पर मैला ढोने की कुप्रथा खतम करने की चुनौतियों पर आयोजित मानवाधिकार आयोग की परिचर्चा का उद्घाटन करते हुए कही।
कानून ठीक से लागू नहीं
जस्टिस दत्तू ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के दखल के बावजूद लगता है कि मैला ढोने की कुप्रथा समाप्त करने का कानून अभी भी ठीक से लागू नहीं हुआ है इसे लागू करने के लिए सकारात्मक प्रयासों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि यह एक अभिशाप है। लगातार सुनने को मिलता है बिना सुरक्षा उपाय के सीवर साफ करते वक्त मौत हो गई। यह मानवाधिकार का उल्लंघन है। यहां तक कि राजधानी में भी ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती है ऐसे में देश के अन्य दूर दराज हिस्सों में क्या हाल होगा। जस्टिस दत्तू ने कहा कि आयोग ने हाल में ऐसे 34 मामलों पर स्वत: संज्ञान लिया है। उन्होंने कहा कि विकसित देशों की तरह कोई तंत्र विकसित करके बहुत पहले ये कुप्रथा खतम हो जानी चाहिए थी।
उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर
समाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की सचिव नीलम साहनी ने कहा कि सिर पर मैला ढोने की प्रथा खतम करना सरकार की प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि इसे रोकने के लिए कानून लागू करने के अलावा कई कार्यक्रम, नीतियां और कल्याणकारी योजनाएं चल रही हैं ताकि उद्देश्य को प्राप्त किया जा सके। उन्होंने बताया कि 2018 के सर्वे के मुताबिक देश के 173 जिलों में अभी भी यह कुप्रथा जारी है। अभी तक 34749 मैला ढोने वालों की पहचान की गई है। इस सूची में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है जहां 16663 मैला ढोने वाले हैं इसके बाद महाराष्ट्र का नंबर आता है जहां संख्या 6387 है।
जागरुकता की जरूरत
उन्होंने कहा कि मैला ढोने वालों की पहचान करके उनके पुनर्वास के प्रयास चल रहे हैं। ड्राई लैटरीन को खतम करके उनकी जगह नियमित शौचालय बनाने का काम चलता रहता है। रेलवे ने भी 55000 कोचों में बायो टायलेट लगाए हैं ताकि ट्रैक गंदा न हो। इस बारे में जागरुकता लाने के लिए विभिन्न निगमों मे 464 कार्यशालाएं आयोजित की गई हैं। खतरनाक सफाई से यांत्रिक सफाई की ओर जाने के प्रयास किये जा रहे हैं। परिचर्चा में इस कुप्रथा को रोकने के लिए बहुत से उपयोगी सुझाव भी दिये गए।
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