एनजीटी ने कहा- अफसोस, अदालतों की निगरानी के बावजूद गंगा में गंदगी बहाना जारी
पीठ ने कहा कि राज्य अभी भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की स्थापना के लिए टेंडर देने और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करने में उलझे हुए हैं।
नई दिल्ली, प्रेट्र। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने उत्तरी राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और बंगाल के मुख्य सचिवों को गंगा पुनरुद्धार की निश्चित समय अंतराल पर निगरानी करने के निर्देश दिए हैं। ट्रिब्यूनल ने कहा, यह अफसोसनाक है कि विभिन्न अदालतों द्वारा लगातार निगरानी के बावजूद इस पवित्र नदी में गंदगी को बहाया जाना जारी है। इस तरह उपेक्षा करने के बजाय राज्यों को इस मामले को ज्यादा गंभीरता से लेना चाहिए।
एनजीटी के चेयरमैन जस्टिस एके गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, 'यह अफसोसनाक है कि 34 साल (1985 से 2014) तक सुप्रीम कोर्ट की लगातार निगरानी, छह साल से इस ट्रिब्यूनल द्वारा निगरानी और जल अधिनियम बनने के 46 साल बाद भी सबसे पवित्र नदी में गंदगी को बहाया जाना जारी है।'
पीठ ने कहा कि राज्य अभी भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की स्थापना के लिए टेंडर देने और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करने में उलझे हुए हैं। ट्रिब्यूनल ने कहा, 'हमें यह भी लगता है कि संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को निश्चित समय अंतराल पर संयुक्त बैठकें करनी चाहिए ताकि मानव संसाधन और गंगा पुनरुद्धार के अच्छे तरीकों को साझा करने जैसे अहम मसलों पर विचार किया जा सके।'
पीठ ने कहा कि गंगा नदी को एक इकाई व ईको सिस्टम मानते हुए समग्र दृष्टिकोण अपनाने और विभिन्न पक्षों द्वारा वित्तीय संसाधनों को साझा करने की जरूरत है। ट्रिब्यूनल ने कहा कि प्रदूषण मुक्त वातावरण हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार और राज्यों का संवैधानिक दायित्व है। इस तरह राज्य अपने संवैधानिक दायित्वों को निभाने में निश्चित रूप से विफल हो रहे हैं।
2015 में बीस हजार करोड़ रुपये का आवंटन
बता दें कि मोदी सरकार ने 13 मई 2015 को नमामि गंगे योजना को मंजूरी देकर इसके लिए 20,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया था। इसके बाद तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने 21 जुलाई 2016 को लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में कहा था कि एनजीआरबीए फ्रेमवर्क के तहत 2020 तक गंगा नदी में अनट्रीटेड सीवेज को गिरने से रोकने का लक्ष्य रखा गया है।