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पाक के आतंकी संगठनों से जुड़े एनजीओ को भी मिलेगी मदद, अमेरिका वार्ता में उठ सकता है मुद्दा

भारत का कहना है कि इससे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों को भी मदद मिलने लगेगी। इस आधार पर प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहा लेकिन परिषद के अन्य सभी 14 सदस्यों ने इसके समर्थन में वोट किया।

By Jagran NewsEdited By: Ashisha Singh RajputPublished: Sat, 10 Dec 2022 09:18 PM (IST)Updated: Sat, 10 Dec 2022 09:18 PM (IST)
अगले हफ्ते आतंकवाद के खिलाफ सहयोग पर भारत-अमेरिका वार्ता में उठ सकता है मुद्दा

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। अगले हफ्ते भारत और अमेरिका के बीच आतंकवाद के खिलाफ सहयोग को लेकर एक बैठक होने वाली है लेकिन उसके ठीक पहले शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में आतंकवाद से जुड़े मुद्दे पर दोनो देश एक दूसरे से अलग-थलग नजर आये। मुद्दा यह था कि अमेरिका और आयरलैंड की तरफ से यूएनएससी में एक प्रस्ताव लाया गया था जो मानवीय आधार पर मदद देने को लेकर किसी भी तरह के भेदभाव को समाप्त करेगा।

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यूएनएससी में पारित हुआ प्रस्ताव, भारत का विरोध हुआ दरकिनार

इससे संयुक्त राष्ट्र की तरफ से प्रतिबंधित संस्थानों व एजेंसियों को भी मानवीय आधार मदद देने का रास्ता साफ हो जाएगा। भारत का कहना है कि इससे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों को भी मदद मिलने लगेगी। इस आधार पर प्रस्ताव पर वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहा लेकिन परिषद के अन्य सभी 14 सदस्यों ने इसके समर्थन में वोट किया। इस प्रस्ताव के बारे में अमेरिका ने यहां तक कहा कि इससे अनगिनत लोगों की जानें बचाई जा सकेंगी। भारतीय खेमे के लिए यह मुद्दा काफी चुभने वाला रहा है क्योंकि अभी भारत यूएनएससी की अध्यक्षता कर रहा है।

आतंकवाद के खिलाफ अपने अभियान

इस दौरान उसने आतंकवाद के खिलाफ अपने अभियान को और ज्यादा जोर देने की योजना भी बनाई है। इसके बावजूद आतंकवाद पर भारत के अभिन्न सहयोगी देश अमेरिका का रुख पूरी तरह से अलग रहा। इस प्रस्ताव के पारित होने से बाढ़ से प्रभावित पाकिस्तान को जब विदेशी एजेंसियों की तरफ से मदद पहुंचाई जाएगी तो उसे वहां के प्रतिबंधित संगठन भी इस्तेमाल कर सकेंगे। भारत ने इस मुद्दे को उठाया भी कि किस तरह से पूर्व में संयुक्त राष्ट्र की तरफ से प्रतिबंधित आतंकी संगठन अपना रूप बदल कर इस तरह के मानवीय मदद को हासिल करते रहे हैं।

यूएन में भारत की स्थाई प्रतिनिधि रूचिरा काम्बोज ने नाम तो नहीं लिया लेकिन उनका इशारा सीधे तौर पर पाकिस्तान पोषित आतंकी सगंठन लश्करे तैयबा की तरफ था जिसने वहां फलह-ए-इंसानियन फाउंडेशन के नाम से एक एनजीओ बना रखा है।

आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद ने भी अल रहमत ट्रस्ट के नाम से एक संगठन बना रहा है। भारतीय राजदूत काम्बोज ने अनुपस्थित होने से पहले दिए गए अपने भाषण में कहा है कि, हमारे पड़ोस में कई बार ऐसे उदाहरण मिले हैं कि सुरक्षा परिषद की तरफ से प्रतिबंधित संगठनों ने अपनी पहचान बदल कर मानवीय मदद देने वाली एजेंसियों के तौर पर काम किया है। ऐसा वो प्रतिबंधों से बचने के लिए करते हैं।

भारत की मांग है कि इस तरह के प्रस्ताव को पारित करने से पहले इसके प्रभावों के बारे में भी अब विचार करें। यूएन की तरफ से प्रतिबंधित संगठन मानवीय आधार पर दी जाने वाली मदद का गलत इस्तेमाल करेंगे। भारत की तरफ से पूर्व में इस प्रस्ताव में आवश्यक संशोधन करने का जो सुझाव दिया था वह भी स्वीकार नहीं किया गया। भारत ने इस पर आपत्ति जताते हुए वोटिंग से अलग होने का फैसला किया।

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन का संदेश

दूसरी तरफ, अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन ने इस प्रस्ताव के पारित होने का स्वागत करते हुए कहा कि हम यह संदेश देना चाहते हैं कि मानवीय आधार पर मदद देने को लेकर हम किसी भी तरह की कोताही नहीं कर रहे। बहरहाल, यह मुद्दा अगले हफ्ते 12-13 दिसंबर को नई दिल्ली में होने वाली बैठक में भारत उठा सकता है। आतंकवाद के खिलाफ सहयोग पर अमेरिकी सरकार के समन्वयक टिमोथी बेट्स की अगुवाई में एक दल भारत आ रहा है। दोनो देशों के बीच पाकिस्तान के साथ ही अफगानिस्तान की स्थिति को लेकर भी चर्चा होगी।

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