नए कश्मीर में मिलजुल कर बन रही तरक्की की नई राह, मस्जिद और गुरुद्वारे को लेकर लोगों ने छोड़ा अड़ियल रुख
कश्मीर घाटी में लगातार बदल रही फिजा के बीच अब स्थानीय युवा अपनी लोक संस्कृति के रंग बिखेरने व सहेजने में जुटे हैं।
नवीन नवाज, श्रीनगर। श्रीनगर-बारामुला राजमार्ग के आड़े आ रहे पुराने गुरुद्वारे और झेलम पर पुल की राह में पड़ रही मस्जिद को लेकर दोनों समुदायों के लोगों ने अड़ियल रुख छोड़ दिया। यह दोनों प्रोजेक्ट सालों से अटके हुए थे। अब लोगों ने मिलजुलकर और सूझबूझ से तरक्की की राह खोल दी। श्रीनगर के उपायुक्तडॉ. शाहिद इकबाल चौधरी ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई, जिसकी तारीफ हो रही है।
नए कश्मीर में युवा आइएएस अफसर शाहिद इकबाल की प्रशासनिक कार्यकुशलता के न केवल प्रशासक बल्कि आम कश्मीरी भी कायल हैं। उन्होंने चंद दिनों में ऐसे नामुमकिन काम कर दिखाए, जो देश-दुनिया में मिसाल बन गए हैं। वह सभी धमरें को साथ लेकर चलने में यकीन रखते हैं। दो दिन पहले ही श्रीनगर से आई इस खबर ने सुर्खियां बटोरीं कि स्थानीय लोग 40 वर्ष पुरानी उस मस्जिद को हटाने के लिए राजी हो गए, जो झेलम पर बन रहे पुल की राह में आ रही थी। मस्जिद के हटाने के फैसले के साथ ही श्रीनगर के कमरवारी और नूरबाग के बीच 166 मीटर लंबे दो-लेन वाले पुल का रास्ता साफ हो गया। यह प्रोजेक्ट 2002 से लंबित पड़ा हुआ था।
पांच अगस्त के बाद श्रीनगर में कोई बड़ा हिंसक प्रदर्शन नहीं
यही नहीं, शाहिद के कार्यकाल में, पांच अगस्त के बाद से, श्रीनगर में न कोई बड़ा हिंसक प्रदर्शन हुआ और न कोई बड़ा विकास कार्य रुका है। अगर कहीं कोई काम रुका था तो उसने गति पकड़ी। इसमें शाहिद ने प्रशासक की अपनी भूमिका से कहीं आगे निकल निजी प्रयास किए। दैनिक जागरण से उन्होंने कहा, दरअसल, प्रशासन कागजी विषय नहीं, बल्कि समाज को गहराई से समझने की कला है..।
जम्मू संभाग के राजौरी जिले में नियंत्रण रेखा के पिछड़े गांव रेहान के रहने वाले डॉ. शाहिद मुस्लिम (गुज्जर) समुदाय से आइएएस बने पहले युवक हैं। 2009 बैच के आइएएस डॉ. शाहिद अपनी तमाम उपलब्धियों का श्रेय खुदा और परिजनों को देते हुए कहते हैं- मैं तो बस जरिया हूं। मेरा प्रयास रहता है कि अधिक से अधिक लोगों को लाभ हो। मैं आम लोगों तक पहुंच बनाकर उन्हें कानून व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने से लेकर विकास योजनाओं में उन्हें भागीदार ही नहीं जिम्मेदार बनाने में यकीन रखता हूं। इसलिए सभी काम आसान हो जाते हैं। कठिन काम करने के लिए गहराई तक जाना पड़ता है..।
श्रीनगर प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ऐसा नहीं है कि सिख समुदाय या मुस्लिम समुदाय के साथ पहले इन मुद्दों पर बातचीत नहीं हुई। पहले भी संबंधित पक्षों से कई बार बातचीत हुई, लेकिन बात नहीं बनी। यह डॉ. इकबाल की सूझबूझ का नतीजा है कि दो प्रमुख योजनाएं जिनके पूरे होने की उम्मीद कल तक समाप्त हो चुकी थी, आज हकीकत बनने जा रही हैं।
सूचना विभाग के अधिकारी आफाक अहमद बताते हैं, डॉ. शाहिद जमीन से जुड़े हुए हैं। यही उनकी सबसे बड़ी खूबी है। उन्होंने जिस गांव में जिंदगी बिताई है, वहां की मुश्किलों को उन्होंने खुद झेला और महसूस किया है, इसलिए वह जानते हैं कि जनहित योजनाओं में देरी के क्या मायने होते हैं।
श्रीनगर उपायुक्त डॉ. शाहित इकबाल चौधरी ने बताया कि मेरा काम प्रशासनिक मदद करना है, वह मैं नियमों के मुताबिक करता हूं, लेकिन पूरा ध्यान रखता हूं कि कागज और किताबों के फेर में कोई सामाजिक अहित न हो..।
आतंक और अलगाववाद को कड़ा जवाब होगा 'मीरास'
कश्मीर में पिछले पांच माह में पहली बार कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होने जा रहा है। 11 जनवरी को श्रीनगर के टैगोर हॉल में होने जा मीरास कार्यक्रम आतंक और अलगाववाद को भी एक कड़ा जवाब होगा।
कश्मीर घाटी में लगातार बदल रही फिजा के बीच अब स्थानीय युवा अपनी लोक संस्कृति के रंग बिखेरने व सहेजने में जुटे हैं। इन कलाकारों में अधिकांश किशोर हैं, जिन्हें अलगाववादी और आतंकी अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करते आए हैं। अब वे अपनी प्रतिभा को दिखाने का मौका तलाश रहे हैं। कार्यक्रम का आयोजन श्रीनगर जिला प्रशासन की ओर से करवाया जा रहा है।
मंडलायुक्त कश्मीर बसीर अहमद खान ने कहा कि मीरास का मतलब है विरासत, इसमें कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत का कोई रंग नहीं छूटेगा। आयोजन से जुड़े एंजल्स कल्चरल अकादमी के अध्यक्ष तारिक अहमद शेरा ने कहा कि कश्मीरी युवा खुद को पत्थरबाजी या आजादी के नारों से जोड़ने को तैयार नहीं है, वह दुनिया को हकीकत से रूबरू कराना चाहता है और यही मीरास में दिखेगा। आतंकियों व अलगाववादियों द्वारा कश्मीर में सिनेमा, गीत, संगीत को इस्लाम के खिलाफ बताए जाने पर कश्मीर के वरिष्ठ साहित्यकार हसरत गड्डा ने कहा कि अब यहां इस तरह के फरमान नहीं चलेंगे। कश्मीरियों को अपनी लोक विरासत बहुत अजीज है।