Move to Jagran APP

नई शिक्षा नीति में भारतीयता की अवधारणा के साथ ही भारतीय ज्ञान परंपरा पर भी जोर

जाहिर है कि नौकरशाही और मानसिकता की यह बाधा बनी रहेगी लेकिन यह भी सच है कि अगर इन पर काबू नहीं पाया गया शैक्षिक तंत्र में विचारधारा और दूसरे नाम पर जमी ताकतों को मर्यादित नहीं किया गया तो नई शिक्षा नीति का पूरा फायदा नहीं उठाया जा सकता।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 29 Jul 2021 10:16 AM (IST)Updated: Thu, 29 Jul 2021 10:16 AM (IST)
नई शिक्षा नीति में अनुसंधान और उच्च शिक्षा में भी भारतीय भाषाओं पर जोर

उमेश चतुर्वेदी। शिक्षा ऐसा विषय है, जिसमें रातोंरात परिवर्तन होना मुश्किल है, लेकिन यह भी सच है कि अगर लागू करने वाले प्राधिकारियों में इच्छा शक्ति हो तो बदलाव की डगर पर चल पड़ना बहुत कठिन भी नहीं होता। कहा जा सकता है कि बीते बारह महीनों में नई शिक्षा नीति के हिसाब से कई परिवर्तनों की आधारशिला रखी गई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि बदलाव की यह बयार आने वाले दिनों में भारत में उस सोच को रूपायित करेगी, जिसकी कल्पना राष्ट्रीय शिक्षा नीति में की गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में शिद्दत से भारतीय भाषाओं की अहमियत को स्वीकार किया गया है। भारतीय शिक्षण और सोच के स्तर पर मातृभाषाओं की कमी को न सिर्फ गहराई से महसूस किया गया, बल्कि भाषा की सामथ्र्य को समझते हुए भारत को अपनी जुबान और इस बहाने अपने सोच देने की जो कवायद शुरू की गई, उसके हिसाब से बीते बारह महीनों में कई कदम उठाए गए हैं।

loksabha election banner

नई शिक्षा नीति के तहत अब भारत में इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिंदी समेत कई अन्य भारतीय भाषाओं में शुरू करने की तैयारी हो चुकी है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद यानी एआइसीटीई ने हिंदी, बांग्ला, मराठी, मलयालम समेत 11 भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराए जाने की मंजूरी दे दी है। इसी तरह मेडिकल में दाखिले के लिए होने वाली संयुक्त प्रवेश परीक्षा नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट भी 13 भारतीय भाषाओं में कराए जाने का फैसला लिया गया है।

नई शिक्षा नीति में अनुसंधान और उच्च शिक्षा में भी भारतीय भाषाओं पर जोर देने की बात की गई है। लिहाजा इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पिछले एक साल में कई विश्वविद्यालयों ने कदम उठाए हैं। कई विश्वविद्यालयों ने पाठ्यक्रमों के भाषायी विस्तार के लिए अनुवाद के लिए अलग से विभाग बनाने शुरू कर दिए हैं। इसके साथ ही कई विश्वविद्यालयों ने भले ही पढ़ाई का माध्यम मातृभाषाओं में शुरू नहीं किया है, लेकिन छात्रों को परीक्षाओं में दो भाषाओं में उत्तर लिखने की अनुमति दे दी है। छात्र जिस भाषा में सहज है, वह परीक्षा में उसी भाषा में जवाब लिख सकता है। इसी तरह से कई विश्वविद्यालयों ने अपने स्तर पर ऐसे कई पाठ्यक्रम विकसित कर लिए हैं, जिनकी पढ़ाई दो या दो से अधिक भाषाओं के माध्यम से हो सकती है। भोपाल के अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय संभवत: देश का पहला विश्वविद्यालय है, जिसने हिंदी माध्यम से इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू भी कर दी है।

नई शिक्षा नीति में भारतीयता की अवधारणा के साथ ही भारतीय ज्ञान परंपरा पर भी जोर दिया गया है। इस लिहाज से भी पाठ्यक्रम बनने शुरू हो गए हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय और सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा ने इस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। यहां भारतीय ज्ञान परंपरा की पढ़ाई भी शुरू हो गई है। देर-सवेर इसका फल मिलेगा।

हालांकि भाषायी शिक्षण में हीला-हवाली करने की भी जानकारियां हैं। एनसीईआरटी जैसे संस्थानों से ऐसी भी खबरें छन कर आई हैं, जहां नई शिक्षा नीति के हिसाब से पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता बढ़ाने की दिशा में सक्रिय कोशिश के बजाय ढुलमुल रणनीति अख्तियार की जा रही है। कुछ संस्थान अपनी स्वायत्त हैसियत का दुरुपयोग करते हुए इस नीति को लागू करने के बजाय ऐसी रणनीति बना रखे हैं, जिसमें काम होता हुआ नजर तो आए, लेकिन वास्तव में लागू न हो पाए। जाहिर है कि नौकरशाही और मानसिकता की यह बाधा बनी रहेगी, लेकिन यह भी सच है कि अगर इन पर काबू नहीं पाया गया, शैक्षिक तंत्र में विचारधारा और दूसरे नाम पर जमी ताकतों को मर्यादित नहीं किया गया तो नई शिक्षा नीति का पूरा फायदा नहीं उठाया जा सकता। इसकी तरफ सरकारों को ध्यान देना ही होगा।

[वरिष्ठ पत्रकार]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.