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रक्षा क्षेत्र से लेकर स्वास्थ्य और परिवहन समेत कई क्षेत्रों में उपयोगी होगी 'थ्रू-द-रडार' तकनीक

भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलुरु के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित थ्रू-द-वॉल रडार (टीडब्ल्यूआर) एक तरह की इमेजिंग तकनीक है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 30 Jan 2020 09:51 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jan 2020 10:06 AM (IST)
रक्षा क्षेत्र से लेकर स्वास्थ्य और परिवहन समेत कई क्षेत्रों में उपयोगी होगी 'थ्रू-द-रडार' तकनीक

नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। दीवार के आर- पार की गतिविधियों की जानकारी मिल जाए तो घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचने वाले पुलिसकर्मियों, दमकलकर्मियों और सुरक्षा बलों को आपात स्थितियों से निपटने में मदद मिल सकती है। लेकिन अब तक ऐसा कोई उपकरण हमारे पास उपलब्ध नहीं था। अब भारतीय शोधकर्ताओं ने चावल के दाने से भी छोटी चिप पर एक ऐसा रडार विकसित किया है, जो इस तरह की परिस्थितियों से निपटने में मददगार हो सकता है।

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भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलुरु के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित थ्रू-द-वॉल रडार (टीडब्ल्यूआर) एक तरह की इमेजिंग तकनीक है। इस तरह के रडार रक्षा क्षेत्र से लेकर कृषि, स्वास्थ्य और परिवहन समेत विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी हो सकते हैं। इस रडार को विकसित करने वाले शोध दल का नेतृत्व कर रहे भारतीय विज्ञान संस्थान के इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर गौरब बैनर्जी ने बताया कि दुनिया के कुछ ही देशों के पास आज किसी रडार के पूरे इलेक्ट्रॉनिक्स को एक चिप पर स्थापित करने की क्षमता है। संपूरक धातु ऑक्साइड अर्धचालक (सीमॉस) तकनीक के उपयोग से विकसित इस रडार में एक ट्रांसमीटर, एक उन्नत फ्रीक्वेंसी सिंथेसाइजर और तीन रिसीवर लगाए गए हैं, जो जटिल रडार संकेत उत्पन्न कर सकते हैं। इन सभी इलेक्ट्रॉनिक घटकों को एक छोटी-सी चिप पर लगाया गया है।

चुनौती पूर्ण है टीडब्ल्यूआर इमेजिंग

डॉ. बैनर्जी ने बताया कि रडार डिजाइन के मामले में टीडब्ल्यूआर इमेजिंग हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है। इसकी एक वजह यह है कि दीवारों से गुजरते हुए संकेत मंद पड़ जाते हैं। अधिक आवृत्तियों से युक्त रेडियो तरंगें इस चुनौती को हल करने में उपयोगी हो सकती हैं, जिसे डिजाइन करना एक जटिल कार्य है। इस तरह के रडार में खास तरह के चर्प संकेतों का उपयोग होता है, जिसमें माइक्रोवेव ट्रांसमीटर, एक रिसीवर और एक आवृत्ति सिंथेसाइजर जैसे अनुकूलित इलेक्ट्रॉनिक्स की आवश्यकता होती है।

भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक अपने नएडिजाइन की बदौलत सभी इलेक्ट्रॉनिक घटकों को एक छोटी चिप में लगाने में सफल हुए हैं। डॉ. बनर्जी का कहना है कि छोटे और सस्ते स्मार्टफोन बनाने की तकनीक का उपयोग रडार सिस्टम के लिए अत्यंत छोटे इलेक्ट्रॉनिक घटक डिजाइन करने में हो सकता है। इस चिप का विकास मूल रूप से एयरपोर्ट सुरक्षा से जुड़े अनुप्रयोगों के लिए किया गया है। हालांकि, बैनर्जी और उनकी टीम स्वास्थ्य जैसे अन्य क्षेत्रों में भी इस चिप के उपयोग के तरीके खोजने में जुटी है।

रेडियो तरंगों के जरिये भेदती है दीवारें

शोधकर्ताओं ने कहा, रडार किसी चीज से संकेतों (सिग्नल) के टकराकर वापस लौटने के सिद्धांत पर काम करते हैं और इनका उपयोग करते समय संकेतों के वापस लौटने में लगने वाले समय का आकलन किया जाता है। इस तरह के संकेतों के आधार पर वस्तु का एक खाका तैयार किया जा सकता है और यह निर्धारित करने में भी मदद मिल सकती है कि वह वस्तु किस गति से चलती है। टीडबल्यूआर तकनीक आम रडार से एक कदम आगे की चीज है, जो रेडियो तरंगों के जरिए दीवारों को भेदने के सिद्धांत पर काम करती है, जिसे प्रकाश की किरणें भेद नहीं पाती हैं।

बुजुर्गों की सेहत की होगी निगरानी

बुजुर्गों की सेहत की निगरानी ऐसा ही एक क्षेत्र है, जिसमें इसका उपयोग हो सकता है। किसी घर को स्कैन करके टीडब्ल्यूआर सिस्टम वहां मौजूद व्यक्तियों की गतिविधि से लेकर उनके सांस लेने की दर का भी आकलन कर सकता है। यह अध्ययन भारत सरकार के इम्प्रिंट कार्यक्रम, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के अनुदान पर आधारित है।


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