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    New Criminal Laws का मामला क्यों पहुंचा सुप्रीम कोर्ट? समझिए तीन नए कानूनों के खिलाफ दलीलें

    Updated: Mon, 20 May 2024 11:29 AM (IST)

    SC Hearing Against New Criminal Laws सुप्रीम कोर्ट में आज तीन नए आपराधिक कानूनों- 1. भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और 3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई होगी। ये तीन कानून भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और इंडियन एविडेंस एक्‍ट (आईईए) के विकल्‍प के रूप में बीते साल पारि‍त किए गए हैं।

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    सुप्रीम कोर्ट में आज तीन नए आपराधिक कानूनों के ख‍िलाफ दायर जनहित याचि‍का पर सुनवाई है।

    डिजिटल डेस्‍क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में आज तीन नए आपराधिक कानूनों- 1. भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) और 3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई होगी। 

    ये तीन कानून भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और इंडियन एविडेंस एक्‍ट (आईईए) के विकल्‍प के रूप में बीते साल पारि‍त किए गए थे, जि‍न्‍हें लेकर केंद्र सरकार 1 जुलाई से लागू करने की अध‍िसूचना जारी कर चुकी है। याचिका पर जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मिथल द्वारा सुनवाई की अध्यक्षता किए जाने की संभावना है।

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    तीन कानूनों का विरोध क्‍यों? 

    एडवोकेट विशाल तिवारी ने जनहित याचिका (पीआईएल) में दावा किया है कि नए कानून बेहद कठोर हैं। साथ ही यह भी कहा कि बीते दिसंबर में पर्याप्त संसदीय बहस के बिना पारित किया गया, क्‍योंकि उस समय कई विपक्षी सांसद निलंबन की कार्रवाई झेल रहे थे। 

    जनहित याचिका के अनुसार, इसमें कानूनों की खामियों और विसंगतियों का जिक्र करते हुए चिंता जताई गई है, जिसमें राजद्रोह, आतंकवाद और मजिस्ट्रेटों के लिए बढ़ी हुई शक्तियों से जुड़े प्रावि‍धान शामिल हैं।

    क्‍या हैं तीन नए कानून?

    भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस): यह कानून देश में अलगाव, सशस्त्र विद्रोह और राजद्रोह जैसे अपराधों के लिए प्रावि‍धान प्रस्‍तुत करता है, जो अब इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) 1860 की जगह लेगा। यह कानून आतंकवाद को भी परिभाषित करता है।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस): यह कानून सीआरपीसी 1898 की जगह लेगा, जो जुर्माना लगाने और अपराधी घोषित करने के लिए दंडाधिकारियों की शक्तियों का विस्तार करता है।

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए): यह कानून इंडियन एविडेंस एक्‍ट (आईईए) 1872 का स्थान लेता है, जो साक्ष्य स्वीकार्यता और प्रक्रियाओं के पालन को लेकर बनाया गया है।

    जनहित याचिका में ये मांग रखी

    विशाल तिवारी ने जनहित याचिका में नए कानूनों के क्रियान्वयन पर अस्थायी रोक की मांग की है। साथ ही जनहित याचिका में मौलिक अधिकारों पर कानूनों की व्यवहार्यता और संभावित प्रभाव का आकलन करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के तत्काल गठन की भी मांग की है।