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    संघर्ष, जीवटता और समर्पण से भरी रही है द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी, पति और दो बच्चों की मौत के बाद इस तरह खुद को संभाला

    By Achyut KumarEdited By:
    Updated: Wed, 22 Jun 2022 03:22 PM (IST)

    द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना लगभग तय माना जा रहा है। अगर उनके निजी जिंदगी की बात करें तो वह काफी दुखों संघर्षों और समर्पण से भरी रही है। पति और दो बच्चों की मौत के बाद उनकी जिंदगी काफी संघर्षों से भरी रही है।

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    दुखो और संघर्षों से भरी रही है द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी

    नई दिल्ली, जेएनएन। द्रौपदी मुर्मू को एनडीए ने मंगलवार को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया। इससे पहले वह झारखंड की राज्यपाल थीं। उनकी जिंदगी काफी दुखों और संघर्षों से भरी हुई है। उनके पति और दो बच्चों की आकस्मिक मौत हो गई, जिसके बाद उनके ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन इससे वह घबराईं नहीं और पूरी जीवटता के साथ इनका मुकाबला किया। बता दें, मुर्मू ने ससुराल की अपनी जमीन एक स्कूल को दान कर दिया है, जिसमें 70 बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। 

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    द्रौपदी मुर्मू का व्यक्तिगत जीवन

    द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले में रायरंगपुर से करीब 25 किलोमीटर दूर उपरबेड़ा गांव में 20 जून 1958 को हुआ। उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू औऱ पति का नाम श्याम चरन मुर्मू है। वह संथाल परिवार से आती हैं। उनका लालन पालन एक आदिवासी परिवार में हुआ। उन्होंने रामादेवी महिला कालेज भुवनेश्वर से स्नातक किया।

    जूनियर असिस्टेंट के रूप में किया काम

    • द्रौपदी मुर्मू ने 1994 से लेकर 1983 तक सिचाई और बिजली विभाग ओडिशा सरकार में जूनियर असिस्टेंट के रूप में काम किया।
    • मुर्मू ने अरविंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च, रायरंगपुर में मानद सहायक शिक्षक के तौर पर भी काम किया था।
    • राजनीति में आने से पहले वह शिक्षक थीं।

    1997 में राजनीतिक जीवन की शुरुआत

    द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। वह राजरंगपुर जिले में पहली बार पार्षद चुनी गईं। इसके बाद उन्हें भाजपा की ओडिशा इकाई की अनुसूचित जनजाति मोर्चा का उपाध्यक्ष बनाया गया। मुर्मू 2002 से लेकर 2009 तक मयूरभंज की भाजपा जिलाध्यक्ष रहीं। 

    ओडिशा सरकार में रह चुकी हैं मंत्री

    • मुर्मू दो बार ओडिशा से विधायक रहीं।
    • उन्हें बीजद और भाजपा गठबंधन की नवीन पटनायक सरकार में मंत्री भी बनाया गया था।
    • वह 2002 से 2004 तक राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में ट्रांसपोर्ट एवं वाणिज्य विभाग और 2002 से 2004 तक राज्यमंत्री के रूप में पशुपालन और मत्स्यपालन विभाग की जिम्मेदारी संभाली।
    • मुर्मू 2002 से 2009 तक भाजपा के एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य रहीं।
    • उन्हें 2006 से 2009 तक भाजपा के एसटी मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया

    नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित

    द्रौपदी मुर्मू को ओडिशा विधानसभा ने 2007 में सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। मुर्मू झारखंड की पहली महिला राज्यपाल थीं। वह छह साल एक माह 18 दिन तक झारखंड की राज्यपाल रहीं। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने झारखंड के विश्वविद्यालयों के लिए चांसलर पोर्टल शुरू कराया।

    भाजपा सरकार के कई विधेयकों को किया वापस

    • मुर्मू ने राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान भाजपा की रघुवर दास सरकार के कई विधेयकों को वापस लौटाने का कड़ा कदम उठाया था।
    • हेमंत सोरेन की झामुमो सरकार में भी उन्होंने जनजातीय परामर्शदात्री समिति के गठन से संबंधित फाइल वापस लौटाई।

    संघर्ष, दुखों और समर्पण से भरी रही जिंदगी

    द्रौपदी मुर्मू की जिंदगी संघर्ष, दुखों और समर्पण से भरी रही है। उन्होंने पति और दो बेटों की मौत के बाद जिंदगी में काफी संघर्ष किया। उनकी बेटी का नाम इतिश्री, जिनकी शादी हो चुकी है। बता दें, मुर्मू ने अपने ससुराल की जमीन एक स्कूल के नाम कर दिया है, जिसमें अब गर्ल्स और ब्वायज हास्टल बने हुए हैं। स्कूल में कुल 70 बच्चे पढ़ाई करते हैं।