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अंग्रेजों ने क्यों बनाई थी भारत में 2 राजधानी, पढ़िए- ऐसा करने के पीछे की दास्तां

कलकत्ता गेट के पास बचपन से रह रहीं नन्ही बताती हैं कि पहले कलकत्ता गेट का इस्तेमाल यमुनापार से आने वाले लोग लाल किला, जामा मस्जिद व दरियागंज की ओर जाने के लिए किया करते थे।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 05 Jan 2019 10:46 AM (IST)Updated: Sat, 05 Jan 2019 11:07 AM (IST)
अंग्रेजों ने क्यों बनाई थी भारत में 2 राजधानी, पढ़िए- ऐसा करने के पीछे की दास्तां

नई दिल्ली [किशन कुमार]। दिल्ली में आपने कश्मीरी गेट, लाहौरी गेट, मोरी गेट, अजमेरी गेट व दिल्ली गेट को तो सुना व देखा ही होगा, जिनका निर्माण मुगलकाल में हुआ था। ये सभी मुख्य मार्ग से सटे होने के कारण नजर में आ जाते हैं, लेकिन दिल्ली में एक ऐसा गेट भी है, जिसकी जानकारी शायद ही आपको हो। यह कलकत्ता गेट है, जिसका निर्माण अंग्रेजों ने कराया था। पुरानी दिल्ली के आंचल में छिपा कलकत्ता गेट लाल किले के पीछे की तरफ स्थित है, जो अपने साथ दिल्ली का भी इतिहास समेटे हुए है।

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कलकत्ता गेट का निर्माण सन् 1852 में हुआ था। लेखक व इतिहासकार सोहेल हाशमी बताते हैं कि गुलाम भारत में अंग्रेजों की राजधानी गर्मी में शिमला, जबकि सर्दी में कलकत्ता हुआ करती थी। वह बताते हैं कि वर्ष 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों की योजना कलकत्ता स्थित हावड़ा को रेलगाड़ी के जरिये पंजाब से जोड़ने की थी। रेलगाड़ी को मेरठ होते हुए जाना था, लेकिन अंग्रेज दिल्ली से रेलवे लाइन गुजारने के लिए तैयार नहीं थे।

ऐसे में पुरानी दिल्ली के व्यापारी, बैंकर्स व कुछ अमीरों ने इकट्ठा होकर अंग्रेजों पर दिल्ली से रेलवे लाइन गुजारने के लिए दबाव डाला। व्यापारियों व अन्य लोगों ने अंग्रेज अधिकारियों को समझाया था कि दिल्ली व्यापारिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। ऐसे में इसे रेल लाइन से जोड़ा जाना चाहिए। इसके लिए व्यापारियों ने कई याचिकाएं भी डाली थीं, जिसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अध्यक्ष चा‌र्ल्स वुड ने रेल लाइन को दिल्ली से गुजारने के लिए हामी भरी थी।

इसके बाद वर्ष 1867 में 1 जनवरी की आधी रात में दिल्ली में रेल इसी गेट के ऊपर से होकर गुजरी थी और उसी समय के आसपास पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की नींव पड़ी थी।

इतिहासकार ने बताया कि जिस तरह से दिल्ली में कश्मीरी गेट कश्मीर जाने के लिए था, लाहौरी गेट लाहौर की ओर निकला था, संभवत: उसी तरह कलकत्ता गेट से कलकत्ता की ओर जाने वाला रास्ता हुआ करता था। क्योंकि, कलकत्ता को बसाने वाले अंग्रेज ही थे और सन् 1852 में कलकत्ता पहुंचने के लिए सड़क के अलावा और कोई माध्यम नहीं था।

कलकत्ता गेट के पास बचपन से रह रहीं नन्ही बताती हैं कि पहले कलकत्ता गेट का इस्तेमाल यमुनापार से आने वाले लोग लाल किला, जामा मस्जिद व दरियागंज की ओर जाने के लिए किया करते थे। उस समय यहां सड़क किनारे फलों का बाजार हुआ करता था।

गेट के भीतर से तांगे व साइकिल सवार भी निकल जाया करते थे। बाद में वर्ष 1997 में नया रास्ता बनने के बाद गेट के नीचे का रास्ता बंद कर दिया गया था। तभी से यह गेट अतिक्रमण का शिकार होता चला गया। हालांकि, आज भी इसके ऊपर से रेल गुजरा करती है।

कलकत्ता गेट की स्थिति यह लाल किला के पीछे यमुना बाजार इलाके के पास स्थित है। नजदीकी मेट्रो स्टेशन लाल किला व चांदनी चौक है, जबकि नजदीकी बस स्टैंड भी लाल किला है। यहां से पैदल या रिक्शा से जाया जा सकता है।


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