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भारत का हर चौथा व्यक्ति है मनोरोगी, कहीं आप भी तो नहीं कर रहे ये गलतियां

WHO की रिपोर्ट में खुलासा 50 फीसद मानसिक रोगी 14 साल की उम्र में हो जाते हैं बीमार। युवावस्था में सामने आते हैं गंभीर परिणाम। बच्चों की गलत परवरिश भी है अहम वजह।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 05 Oct 2018 11:37 AM (IST)Updated: Wed, 10 Oct 2018 08:47 PM (IST)
भारत का हर चौथा व्यक्ति है मनोरोगी, कहीं आप भी तो नहीं कर रहे ये गलतियां
भारत का हर चौथा व्यक्ति है मनोरोगी, कहीं आप भी तो नहीं कर रहे ये गलतियां

नई दिल्ली (जेएनएन)। भागदौड़ भरी जिंदगी और मॉडर्न जीवनशैली हमारे बच्चों के स्वास्थ्य पर भी तेजी से नकारात्मक प्रभाव छोड़ रही है। इसके गंभीर परिणाम उनकी युवावस्था में सामने आते हैं। इसका नतीजा कई बार आत्महत्या या गंभीर मानसिक बीमारी के रूप में सामने आता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मानसिक बीमारी से जूझ रहे 50 फीसद लोग किशोरावस्था में ही इस समस्या से ग्रसित हो चुके थे।

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विश्व मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता सप्ताह के मद्देनजर दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में आयोजित एक सम्मेलन में यह बात सामने आई है। सम्मेलन में मौजूद डॉक्टरों के अनुसार मानसिक बीमारियां बच्चों में भी तेजी से बढ़ रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए डॉक्टरों ने कहा कि मानसिक बीमारियों से पीड़ित 50 फीसद लोगों में यह बीमारी किशोरावस्था में ही शुरू हो जाती है। फिर भी लोग इसे नजरअंदाज करते हैं। युवावस्था में इसके गंभीर परिणाम सामने आते हैं।

इस सम्मेलन में सफदरजंग, आरएमएल अस्पताल व एम्स के मनोचिकित्सक शामिल हुए थे। सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राजेंद्र शर्मा ने कहा कि युवाओं को अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात करनी चाहिए। अस्पताल के मनोचिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. कुलदीप कुमार ने कहा कि डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार हर चार में से एक व्यक्ति मनोरोग से पीड़ित है। 50 फीसद लोगों में 14 साल की उम्र में बीमारी की शुरुआत हो जाती है। बच्चों पर पढ़ाई का अत्यधिक दबाव भी मानसिक परेशानी का कारण बनता है।

डॉक्टरों ने बताया कि कई लोग दूसरे बच्चों से अपने बच्चों की तुलना करते हैं। इससे भी बच्चों पर मानसिक दबाव बढ़ता है। उन्होंने कहा कि इन दिनों मोबाइल व सोशल नेटवर्क पर बच्चे अधिक समय तक व्यस्त रहते हैं। इसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव देखा जा रहा है। कई लोग अपने बच्चों को लेकर इलाज के लिए पहुंचते हैं। यह देखा गया है कि मोबाइल व सोशल नेटवर्क पर अधिक समय देने से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। इसलिए दो-तीन घंटे से अधिक समय तक मोबाइल व सोशल नेटवर्क साइट्स पर सक्रिय रहना मानसिक बीमारी का कारण बन सकता है। सम्मेलन में कैंसर के मरीजों में मानसिक अवसाद पर भी चर्चा की गई।

इंटरनेट की लत छुड़ाने को आरएमएल में विशेष क्लीनिक

आरएमएल अस्पताल में शुक्रवार से विशेष क्लीनिक शुरू होगा। अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. पीआर बेनिवाल ने कहा कि अधिक सेल्फी लेना भी बीमारी है। इसे सेल्फाइटिस नाम दिया है। इंटरनेट, ऑनलाइन खेल, सोशल नेटवर्क पर घंटों सक्रिय रहना या किसी अन्य लत के कारण व्यवहार में अचानक परिवर्तन आने को मानसिक बीमारियों की इस श्रेणी में रखा गया है। इंटरनेट के बढ़ते दुष्प्रभाव के मद्देनजर इस तरह के क्लीनिक की जरूरत बढ़ती जा रही है। इस क्रम में सबसे पहले एम्स ने विशेष क्लीनिक शुरू किया है।

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