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साइलेंट किलर है प्रदूषण, रोजाना 20 सिगरेट के बराबर प्रदूषण झेल रहे दिल्लीवासी

इस प्रदूषण में अगर आपको काफी कफ आ रहा है सीने में भारीपन लग रहा है छींक आ रही है सांस लेने में दिक्कत या थकान हो रही है तो आराम करें कोई मेहनत वाला काम न करें। घर से बाहर निकलें पर N-95 मास्क पहनें तो बेहतर होगा।

By Anurag MishraEdited By: Published: Thu, 03 Nov 2022 07:17 PM (IST)Updated: Thu, 03 Nov 2022 07:17 PM (IST)
साइलेंट किलर है प्रदूषण, रोजाना 20 सिगरेट के बराबर प्रदूषण झेल रहे दिल्लीवासी
दिल्ली गैस चेंबर में तब्दील हो चुकी है

 नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। देश की राजधानी दिल्ली में गुरुवार, 3 नवंबर को प्रदूषण का स्तर बेहद गंभीर हो गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार पीएम 10 और पीएम 2.5, दोनों का स्तर 500 पर पहुंच गया। यह हाल सिर्फ एक दिन का नहीं, बीते आठ दिनों से यहां प्रदूषण का स्तर 400 के पार ही रहा। लेकिन इसके लिए दिल्लीवासी कम, पड़ोसी राज्य ज्यादा जिम्मेदार हैं। यहां 60 फीसद प्रदूषण बाहरी राज्यों से आ रहा है।

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बर्कले अर्थ साइंटफिक पेपर के अनुसार एक सिगरेट से 22 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर प्रदूषण फैलता है। इस तरह दिल्ली में हर व्यक्ति इन दिनों जिस प्रदूषित हवा में सांस ले रहा है, वह रोजाना 20 सिगरेट पीने के बराबर है। यानी बीते आठ दिनों में दिल्लीवासी प्रदूषण के तौर पर 153 सिगरेट पी चुके हैं।

पड़ोसी राज्यों से आ रहा प्रदूषण

ऑस्ट्रिया स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अप्लायड सिस्टम एनालिसिस और नागपुर स्थित इंवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) ने संयुक्त रूप से दिल्ली के प्रदूषण पर शोध किया है। इसमें कहा गया है कि दिल्लीवासी पीएम 2.5 से प्रदूषित हवा के लिए 40 फीसद जिम्मेदार हैं जबकि 60 फीसद परेशानी की वजह पड़ोसी राज्य हैं। शोध के अनुसार दिल्ली की हवा पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा आदि से अधिक जहरीली हो रही है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो आने वाले दिनों में दिल्ली में स्थिति और खराब होगी।

रिपोर्ट को मार्कस एमन, पल्लव पुरोहित और एमरिक बेरटोक ने तैयार किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि दिल्ली के वातावरण में मौजूद पीएम 2.5 के लिए वाहनों को जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन असलियत यह है कि वाहन सिर्फ 20 फीसद पीएम 2.5 के लिए जिम्मेदार हैं। वातावरण में अधिक घातक कण, खेती से जुड़ी गतिविधियों, सड़कों की धूल और नगरपालिका का कूड़ा और बायोमास से पहुंच रहे हैं।

जहर का कॉकटेल

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर अप्लायड सिस्टम एनालिसिस के पॉल्यूशन मैनेजमेंट रिसर्च ग्रप के सीनियर रिसर्च स्कॉलर पल्लव पुरोहित ने जागरण प्राइम को बताया कि वातावरण में सबसे अधिक घातक अजैविक एयरोसॉल का निर्माण बिजली घरों, उद्योगों और ट्रैफिक से निकलने वाली सल्फ्यूरिक एसिड और नाइट्रोजन ऑक्साइड और कृषि कार्यों से पैदा होने वाले अमोनिया के मेल से होता है। 23 फीसद प्रदूषण की वजह यह कॉकटेल है।

अनेक मरीजों के लिए मुश्किल

दिल्ली मेडिकल काउंसिल की साइंटफिक कमेटी के चेयरमैन डा. नरेंद्र सैनी का कहना है कि हवा में ज्यादा प्रदूषण होने से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। हवा में मौजूद केमिकल और पार्टिकुलेट मैटर की वजह से अस्थमा, हाइपरटेंशन, ब्लड प्रेशर, सिर में दर्द, आंखों में जलन, त्वचा पर एलर्जी, सहित कई बीमारियों के मरीजों के लिए मुश्किलें हो सकती हैं। पीएम 2.5 बहुत ही छोटे कण होते हैं जो सांस के साथ रक्त में पहुंच सकते हैं। इससे कई तरह की मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। ज्यादा प्रदूषण में रहने से हार्ट अटैक जैसी दिक्कत भी हो सकती है।

वायु प्रदूषण है साइलेंट किलर

आरएमएल अस्पताल के कार्डियोलाजी विभाग के प्रोफेसर डा. तरुण कुमार वायु प्रदूषण को साइलेंट किलर मानते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार प्रदूषण के कारण होने वाली 80 प्रतिशत मौतें दिल व रक्तवाहिकाओं की बीमारियों के कारण होती हैं। प्रदूषण बढ़ने पर पीएम-2.5 दिल के लिए ज्यादा घातक होता है। पीएम-2.5 के बढ़े हुए हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के स्तर पर दिल की बीमारियों के कारण होने वाली मौतें आठ से 18 प्रतिशत बढ़ने की आशंका रहती है।

सेहत के लिए हानिकारक है पराली का धुआं

दिल्ली में इन दिनों पड़ोसी राज्यों से पराली का धुंआ आ रहा है जो सेहत के लिए हानिकारक है। इससे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड और मीथेन जैसी जहरीली गैसें घुलती हैं, जो सांस व आंखों के रोग पैदा करती हैं। सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट (CSE) की कार्यकारी निदेशक (रिसर्च और एडवोकेसी) अनुमिता रायचौधरी के अनुसार प्रदूषण के चलते दिल्ली की हवा में खतरनाक गैसों का स्तर भी लगातार बढ़ रहा है। हवा में ओजोन का स्तर मानक से अधिक दर्ज किया जा रहा है। वहीं स्मॉग के चलते हवा में कार्बन मोनो ऑक्साइड का स्तर भी मानकों से अधिक बना हुआ है।

नौ साल कम हो सकती है उम्र

शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार भारत की एक चौथाई आबादी प्रदूषण के जिस स्तर का सामना कर रही है वैसा कोई अन्य मुल्क नहीं कर रहा। हालांकि बीते कुछ सालों में सुधार हुए हैं जिसे त्वरित गति देने की आवश्यकता है। रिपोर्ट कहती है कि प्रदूषण के खौफनाक असर की वजह से देश के कई हिस्सों में लोगों की उम्र नौ साल तक कम हो सकती है।

रिपोर्ट के अनुसार अगर प्रदूषण ऐसा ही रहा तो दिल्ली में लोगों की उम्र 9.7 साल कम हो जाएगी। वहीं उत्तर प्रदेश में खराब प्रदूषण से लोगों की उम्र 9.5 वर्ष, बिहार में 8.8, हरियाणा में 8.4 और झारखंड में 7.3 वर्ष घट सकती है। स्वच्छ वायु नीतियों का फायदा उत्तर भारत जैसे प्रदूषण के हॉटस्पॉट्स वाले क्षेत्रों में कहीं अधिक है जहां 48 करोड़ लोग जिस वायु में सांस लेते हैं, उसका प्रदूषण स्तर विश्व के किसी भी इलाके प्रदूषण स्तर से दस गुना अधिक है।

शारदा विश्वविद्यालय के शोधकर्ता प्रोफेसर प्रमोद कुमार सिंह का कहना है कि प्रदूषण जैसी बड़ी समस्या को हम नजरंदाज कर रहे हैं। इस पर समय रहते ध्यान देना होगा। पटाखों से होने वाले वायु और ध्वनि प्रदूषण, पेट्रोल/डीजल से होने वाले वायु प्रदूषण, विशिष्ट प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण के लिए सरकार के साथ आम जनता को जागरूक होना बहुत ज़रूरी है।

पूरे देश की समस्या बना प्रदूषण

CSE के विवेक चट्टोपध्याय के मुताबिक प्रदूषण आपकी उत्पादकता को प्रभावित करता है क्योंकि अगर आप सेहतमंद नहीं होंगे तो कार्यक्षेत्र में बेहतर नहीं कर पाएंगे। विवेक कहते हैं कि वायु प्रदूषण को घटाने के लिए सरकार अगर सही कदम उठाए और इसको नियंत्रित कर सके तो इससे जीडीपी को होने वाले नुकसान को काफी कम किया जा सकता है।

क्या होते हैं पर्टिकुलेट मैटर

पर्टिकुलेट मैटर (PM) या कण प्रदूषण वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आंखों से नहीं देख सकते हैं। कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है। कण प्रदूषण में पीएम 2.5 और पीएम 10 शामिल हैं जो बहुत खतरनाक होते हैं। पर्टिकुलेट मैटर विभिन्न आकार के होते हैं और यह मानव और प्राकृतिक दोनों स्रोतों के कारण से हो सकता है। स्रोत प्राइमरी और सेकेंडरी हो सकते हैं। प्राइमरी स्रोत में ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल और खाना पकाने का धुआं शामिल हैं। सेकेंडरी स्रोत सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रिया हो सकती है। इनके अलावा जंगल की आग, लकड़ी के जलने वाले स्टोव, उद्योग का धुआं, निर्माण कार्यों से उत्पन्न धूल वायु प्रदूषण आदि अन्य स्रोत हैं। ये कण आपके फेफड़ों में चले जाते हैं जिससे खांसी और अस्थमा के दौरे पड़ सकते हैं। उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक और भी कई गंभीर बीमारियों का खतरा बन जाता है।

बचाव के लिए 'सफर' की एडवायजरी

  • सुबह-शाम जरूरत पड़ने पर या कम से कम बाहर निकलें
  • बाहर निकलने पर N-95 या P-100 मास्क पहनें
  • बहुत अधिक शारीरिक श्रम करने से बचें
  • जॉगिग के बजाए हल्की वॉक पर जाएं
  • बहुत कफ आ रहा है, सीने में भारीपन है, छींक आ रही है, सांस लेने में दिक्कत या थकान हो रही है तो आराम करें
  • घर की खिड़कियां और एसी बंद रखें
  • घर में मोमबत्ती या लकड़ी जलाने से बचें
  • घर में वैक्यूम क्लीनर के बजाए गीले पोछे से सफाई करें

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