जीवनभर यह शख्स रहा 'आवारा', पढ़िए-फिर कैसे बन गया साहित्य का 'मसीहा'
Sarat Chandra Chattopadhyay Death Anniversary शरत चंद्र चटर्जी अपनी रचनाओं के जरिये इस कदर लोकप्रिय होते गए उनकी रचनाएं लोग खरीदकर मांगकर पढ़ने लगे।
नई दिल्ली [जेपी यादव]। Sarat Chandra Chattopadhyay Death Anniversary : जीवन की पथरीली राहें और मुश्किल भरे हालात किसी को भीतर तक तोड़ देते हैं, तो किसी की जिंदगी ही संवर जाती है। बेतरतीब सी जिंदगी के साथ कभी चलकर तो कभी दौड़कर सफर तय करने वाले देश ही दुनिया के महान साहित्यकारों में शुमार शरत चंद्र चटर्जी ने कहानी, उपन्यासों के रूप में पाठकों का दामन अनमोल नगीनों से भर दिया है। दुनिया के जाने के कई दशकों बाद भी पाठकों की प्यास अपनी अनमोल कृतियों से भर रहे हैं और यह अनंतकाल तक चलता रहेगा। बंगाली भाषा में लेखन करने वाले शरत बाबू की लेखनी का ही कमाल है, तो वह न सिर्फ बंगाल बल्कि पूरे भारत में बतौर लेखक पढ़े और सराहे गए।
शरत देश के ऐसे उपन्यासकार थे, जिन्होंने साहित्य में भाषाओं की सीमा को ढहा दिया। वह अपनी रचनाओं के जरिये इस कदर लोकप्रिय होते गए कि उनकी रचनाएं लोग खरीदकर, मांगकर पढ़ने लगे। उनकी लोकप्रियता को इस नजरिये से भी देखा जा सकता है कि उन्हें जितनी लोकप्रियता और सम्मान बंगाल में मिला उतना ही हिंदी या कहें इससे अधिक मलयालम, गुजराती के साथ अन्य भारतीय भाषाओं में मिला।
एक दौर में 'चरित्रहीन' था युवतियों का फेवरेट
शरत शायद भारत के एकमात्र ऐसे लेखक थे, जिन्होंने पाठकों की आंखें न केवल नम कीं, बल्कि कई को तो फूट-फूटकर रुलाया। चाहे वह उनका चर्चित उपन्यास 'चरित्रहीन' हो या फिर 'देवदास', एक तरफ शरतचंद्र का उपन्यास 'चरित्रहीन' था तो दूसरी ओर 'देवदास', दोनों ही युवाओं के फेवरेट रहे और रहेंगे। कहने को दोनों का फलक अलग था, लेकिन कहा जाता है कि 'देवदास' जहां युवाओं को इस कदर भाया कि वह इसे पढ़कर देवदास चरित्र में इतना डूबे कि कई ने तो देवदास बनने की कल्पना तक कर डाली। कुछ ऐसा ही हाल शरत बाबू के उपन्यास 'चरित्रहीन' का भी था, जिसे 70-80 के दशक में पढ़कर युवतियां रो पड़ती थीं। आज भी पुस्तक मेलों में सर्वाधिक बिकने वाले उपन्यास 'चरित्रहीन' और 'देवदास' ही हैं।
कल्पना से ज्यादा हकीकत लगे पात्र
कहानी और उपन्यास कल्पनाओं की उपज होते हैं, ऐसा कहने वाले शरत चंद्र के पात्रों के बारे में जानकर ठहर जाते हैं। शरत चंद्र चटर्जी उपन्यास सम्राट प्रेमचंद्र की तरह पात्रों को ढूंढ़कर लाए, उन गलियों में घुसे जहां समाज के सभ्य लोग जाने से भी कतराते थे। उसके लिए दोनों ही लेखक समाज में गए-समाज के अंग बने और फिर ढूंढ़ निकाला। शरत बाबू ने श्रीकांत तो प्रेमचंद ने होरी... और दोनों ने अपने-अपने चरित्रों के जरिये कालजयी रचनाओं को जन्म दिया।
नोबेल विजेता रवींद्रनाथ टैगोर से प्रभावित थे शरत
नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्र नाथ टैगोर को शरत चंद्र बहुत पसंद करते थे, बावजूद इसके कि इसके दोनों के बीच कई मुद्दों पर घोर मतभेद था। दोनों आपस में पत्र व्यहार भी करते थे। यह भी माना जाता है कि शरत पर न केवल रवींद्रनाथ का प्रभाव बल्कि उनपर बंकिमचंद्र चटर्जी का प्रभाव भी कम नहीं था। यह बात शरत खुद भी मानते थे।
नौकरी न मिली तो छोड़ा देश
जिस तरह शरत के उपन्यासों और कहानियों के किरदार संघर्ष करते हैं, उसी तरह का संघर्ष खुद लेखक ने किया है। बचपन अभाव और मां-बाप के बिना बीता, तो कई बार पैसों के अभाव में पढ़ाई तक बाधित हुई। यहां तक कि उनकी कॉलेज की पढ़ाई भी बीच में छूट गई। इसके बाद शरत कुछ इस कदर आहत हुए कि वह 30 रुपये मासिक के क्लार्क होकर वर्मा पहुंच गए। यही से उनके चर्चित उपन्यास 'चरित्रहीन' का बीज पड़ा, जिसमें मेस जीवन के वर्णन के साथ मेस की नौकरानी से प्रेम की कहानी है।
शरत चंद्र चटर्जी के चर्चित उपन्यास
- श्रीकान्त
- पथ के दावेदार
- देहाती समाज
- देवदास
- चरित्रहीन
- गृहदाह
- बड़ी दीदी
- ब्राह्मण की बेटी
- सविता
- वैरागी
- लेन देन
- परिणीता
- मझली दीदी
- नया विधान दत्ता
- ग्रामीण समाज
- शुभदा
- विप्रदास
- चर्चित कहानियां
- गुरुजी
- अनुपमा का प्रेम
देवदास कृति बनी हैं 12 फिल्में
शरत चंद्र चटर्जी की यूं तो सभी कृतियां पठनीय है, लेकिन देवदास की बात ही अलग है। जिसने भी पढ़ा वह भावुक हुआ और रोया भी। देवदास उपन्यास किसी दौर में सबसे लोकप्रिय कृति थी। इसकी लोकप्रियता का अंदाजा से इस बात से लगाया जा सकता है कि शरतचंद्र की कृति ‘देवदास’ पर तो 12 से अधिक भाषाओं में फिल्में बन चुकी हैं। यह भी एक उपलब्धि ही रही है कि सभी फिल्मों अपार सफलता भी मिली। इसी के साथ उनकी कृति ‘चरित्रहीन’ पर बना धारावाहिक भी दूरदर्शन खूब चर्चित और सफल रहा, इस पीढ़ी के लोग आज भी इसके दृष्यों को याद करते हैं।
हिंदी में ही बनी हैं तीन फिल्में
शरत की कालजयी कृति देवदास पर 1955 में पहली हिंदी फिल्म बनी थी। इससे पहले 1935 में भी इसी नाम से फिल्म बनी, जिसमें कुंदनलाल सहगल ने देवदास का रोल किया था। इसके बाद 1955 में देवदास पर बनी फिल्म में दिलीप कुमार ने जबरदस्त अभिनय किया। इसके बाद 2000 में संजय लीला भंसाली ने शाहरुख को लेकर देवदास बनाई, जिसमें माधुरी दीक्षित और एश्रवर्या राय ने भूमिका निभाई थी।
शरत का शरीर उनका साथ नहीं दे रहा था। यही वजह है कि 50 की उम्र पार करते-करते वह बुरी तरह अस्वस्थ रहने लगे। आखिरकार उन्होंने 16 जनवरी 1938 को अंतिम सांस ली।
उनके जाने के लिए मशहूर लेखक विष्णु प्रभाकर ने शरतचंद्र चटर्जी की जीवनी लिखी, जिसका नाम 'आवारा मसीहा' लिखा। यह काफी पढ़ा गया और इसे कई पुरस्कार मिला।