ICSE कार्यक्रम में बोले केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, पर्यावरण के प्रति गंभीर हैं भारतीय छात्र
पर्यावरण मंत्री ने बताया कि देश में कैम्पस को स्मार्ट बनाने की प्रतियोगिता भी शुरू की गई है जिसके तहत कैम्पस को स्मार्ट हरा-भरा बनाने के अलावा कई बातों पर ध्यान दिया जाएगा।
नई दिल्ली [अंशु सिंह]। दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल हैबिटेट सेंटर में आयोजित इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन सस्टेनेबिलिटी एजुकेशन (आइसीएसइ 2019) में केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल यानी एसडीजी को हासिल करने के लिए सतत विकास की प्रक्रिया पर जोर दिया जाता है, क्योंकि विकास को रोका नहीं जा सकता। वह सस्टेनेबल होना चाहिए।
इसी तरह, सतत विकास के लिए सतत शिक्षा जरूरी है। एसडीजी में भी शिक्षा पर विशेष जोर है। सभी को शिक्षा मिलनी चाहिए। भारत में शिक्षा का अधिकार कानून लागू है, ताकि हर बच्चा स्कूल जा सके। लेकिन सवाल है कि स्कूल या कॉलेज जाने के बाद वह क्या सीखता है? वही उसका सस्टेनेबल लाइफस्टाइल कहा जाता है और वही भारतीयों की प्रकृति होती है।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिग के जरिये कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि हमें प्रयोगात्मक चीजों पर ध्यान देना होगा। जैसे, जयपुर के एनआइटी कैम्पस में प्लांट ऐंड ग्रो ट्री अभियान की शुरुआत की गई है। पहले वर्ष में स्टूडेंट्स ने निर्णय लिया है कि वे साल में कम से कम एक हजार पेड़ लगाएंगे। पेड़ों के साथ उनका नेमप्लेट लगा होगा। इस तरह इंस्टीट्यूट में चार वर्ष की पढ़ाई के दौरान स्टूडेंट्स उनकी देखभाल करेंगे। यह भी सतत शिक्षा का ही हिस्सा है।
स्मार्ट कैम्पस प्रतियोगिता का शुभारंभ
पर्यावरण मंत्री ने बताया कि देश में कैम्पस को स्मार्ट बनाने की प्रतियोगिता भी शुरू की गई है, जिसके तहत कैम्पस को स्मार्ट, हरा-भरा बनाने के अलावा, वहां इको प्रैक्टिस को बढ़ावा देना, जल का बचाव व संरक्षण करना, विद्युत की बचत व निर्माण करना और कचरे को इकट्ठा करने के साथ उसका प्रबंधन करना होता है। इन सब का मतलब है कि स्टूडेंट्स किताबों की दुनिया से बाहर जाकर सस्टेनिबिलिटी के ऊपर काम कर रहे हैं। हमें इसे ही आगे ले जाना होगा। उन्होंने एक्सपर्ट्स से सुझाव मांगे हैं। वे अपनी राय दें। सरकार उसे कार्यान्वित करने की कोशिश करेगी।
ग्रीन स्कूल प्रोग्राम में बच्चे कर रहे पर्यावरणीय ऑडिट
हम सभी जानते हैं कि कैसे देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ आई हुई है,वहीं कुछ सूखे पड़े हैं। मुंबई जैसे बड़े शहरों में बाढ़ आती है, तो पूरा जनजीवन ठप हो जाता है। स्कूल-कॉलेज सब बंद हो जाते हैं। इस पर सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवॉयरनमेंट की निदेशक डॉ. सुनीता नारायण ने कहा कि आज सभी प्राकृतिक आपदाओं को जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देखा जाने लगा है, जो सही नहीं है। जैसे, बीते कुछ समय में भारत में हजार बार से अधिक भारी बारिश हुई, जिसे मूसलाधार बारिश कह सकते हैं।
कुछ लोगों ने मुंबई की बाढ़ को जलवायु परिवर्तन के परिणाम के तौर पर देखना शुरू कर दिया, जबकि इसमें शहरी नालों का कुप्रबंधन और अन्य मानव जनित कार्य जिम्मेदार हैं। समय रहते तैयारियां नहीं की गईं। इसी तरह, शिक्षा में भी जितना जोर पर्यावरण शिक्षा पर होना चाहिए, वह नहीं है। हमने एक छोटी-सी कोशिश की है। ग्र्रीन स्कूल प्रोग्र्राम के जरिये 3000 स्कूलों के बच्चे ऑडिट करते हैं कि स्कूलों में पानी की कितनी बचत हुई? कितने बच्चे कार से आते हैं? इनमें डीजल कारें कितनी होती हैं? साइकिल और बस से कितने लोग आते हैं..आदि? डॉ. सुनीता ने कहा कि आज सबसे पहले जरूरत खुद हमें बदलने की है। हम बदलेंगे, तो तय लक्ष्यों को हासिल कर सकेंगे।
सस्टेनेबल एजुकेशन से सतत विकास का लक्ष्य
इस अवसर पर सेंटर फॉर एनवॉयरनमेंट एजुकेशन के संस्थापक एवं निदेशक कार्तिकेय साराभाई ने कहा कि पर्यावरण,जलवायु परिवर्तन और सतत विकास से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने के लिए सस्टेनेबल एजुकेशन एक बेहतर विकल्प हो सकता है। लेकिन इसका अभी तक समुचित प्रयोग नहीं किया गया है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में पर्यावरण शिक्षा एक विशेष विषय के रूप में जरूर उभरा है तथा विभिन्न स्तरों पर शिक्षण और सीखने के विभिन्न दृष्टिकोण और पद्धतियों का भी विकास हुआ है। बावजूद इसके, परिवर्तन और परिवर्तन के घटक के रूप में पर्यावरण शिक्षा की बारीकियों और पेचीदगियों को चिह्नित करने की आवश्यकता है।
स्कूल प्रणाली में सस्टेनेबल एजुकेशन को करना होगा शामिल
आइसीएसइ 2019 के संयोजक एवं यूनेस्को के पूर्व कार्यक्रम निदेशक डॉ.राम बूझ ने कहा कि इस सम्मेलन का उद्देश्य ही दुनिया भर की स्कूल प्रणाली में सस्टेनेबल एजुकेशन का समावेश करना और एक क्षेत्रीय मंच प्रदान कर शिक्षकों, पेशेवरों और नीति निर्माताओं के बीच अनुभवों और विचारों के आदान-प्रदान को सहज बनाना है। इसके लिए शिक्षार्थियों को नए कौशल, मूल्यों और दृष्टिकोणों के साथ सशक्त बनाने का प्रयास किया जाएगा। वहीं, मोबियस फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रदीप बर्मन ने कहा कि सम्मेलन का लक्ष्य सतत विकास शिक्षा (ईएसडी) के कार्यान्वयन में सहायता करना है, जो सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक हो, स्थानीय रूप से उपयुक्त हो और जिसे राष्ट्रीय स्कूली शिक्षा प्रणाली में समायोजित किया जा सके।
विश्व भर से आए प्रतिभागी
कुल मिलाकर, मोबियस फाउंडेशन, द क्लाइमेट रियलिटी प्रोजेक्ट, इंडिया द्वारा नई दिल्ली स्थित यूनेस्को के साथ संयुक्त रूप से आयोजित इस दो दिवसीय (आइसीएसइ 2019) सम्मेलन में लगभग 500 प्रतिभागी (राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय) भाग ले रहे हैं। इसमें नीति निर्माता, शिक्षक, पाठ्यक्रम विशेषज्ञ, स्कूल और शिक्षा संस्थानों के प्रतिनिधि, युवा, वैज्ञानिक,जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ तथा निजी क्षेत्र और सिविल सोसायटी के प्रतिनिधि शामिल हैं। इसमें शिक्षा की भूमिका को केन्द्र में रखकर बेहतर जीवन और पर्यावरण के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और आवश्यक व्यवहार परिवर्तन पर विचार-विमर्श किया जा रहा है, ताकि एसडीजी के लक्ष्यों को प्राप्त कर चिरस्थायी भविष्य के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो सके।