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EXCLUSIVE: मानसून का काउंटडाउन शुरू, क्या वाटर लॉगिंग से उबर पाएगा NCR

इस बार आखिर अपनी पिछली गलतियों से सबक ले नालों की सफाई का जिम्मा कितनी जिम्मेदारी से निभाया जाएगा, यही है हमारा आज का मुद्दा

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 31 May 2018 03:12 PM (IST)Updated: Fri, 01 Jun 2018 08:33 AM (IST)
EXCLUSIVE: मानसून का काउंटडाउन शुरू, क्या वाटर लॉगिंग से उबर पाएगा NCR
EXCLUSIVE: मानसून का काउंटडाउन शुरू, क्या वाटर लॉगिंग से उबर पाएगा NCR

नई दिल्ली [राज्य ब्यूरो]। ऋतु जल्दी-जल्दी अपने पन्ने पलट रही है। मौसम का संतुलन थोड़ा आगे- पीछे घटने-बढ़ने लगा है। बहरहाल दक्षिण भारत में आंधी-तूफान और बारिश के आगमन के साथ मानसून ने कुंडी खटका दी है। अब दिल्ली-एनसीआर में भी सचेत होने का नाट्य रूपांतरण शुरू होने वाला है। चारों ओर खासकर नालों की साफ-सफाई की होड़ मचने वाली है। आंकड़ों में दावे होने वाले हैं। शहरों के बड़े-छोटे नालों के दिन बहुरने वाले हैं और सड़कों की सूरत और सीरत बिगड़ने वाली है। आखिर अब गाद और कूड़े तले दबे नाले कुछ सांस ले पांएगे तो उसकी गाद से सड़कों का दम फूल जाएगा। दरअसल, सफाई करने और कराने के नाम पर चौड़े होने वाले कर्मचारी गाद का बोझा सड़क के सीने पर लादकर छोड़ देंगे अब गाद वहीं पड़ी-पड़ी सूखेगी या बारिश आ गई तो उसकी फिर नाले में ही वापसी हो जानी है।

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मतलब हर साल की भांति नालों की सफाई के नाम पर नगर निगम और प्रशासन की फाइल तो मेनटेन हो जाएगी, लेकिन जब बारिश आएगी तो बरसात का जल नालों में न जा पाने के कारण सड़कों पर ही कुंलाचे मारेगा और परिवहन सेवा के पहिए जाम करेगा। यह हालात हर साल होते अनुभव को बयां करते हैं। हर साल दिल्ली-एनसीआर की जनता सरकारी कुरीतियों का खामियाजा भुगतती है। अधिकारी फिर दावे-वादे करते हैं। इस बार आखिर अपनी पिछली गलतियों से सबक ले नालों की सफाई का जिम्मा कितनी जिम्मेदारी से निभाया जाएगा, यही है हमारा आज का मुद्दा :

जनजीवन को झुलसा देने वाली गर्मी के बीच मानसून की आहट लोगों का हौसला थोड़ा बढ़ा रही है। लेकिन, एक सवाल भी उठ खड़ा है... वह यह कि क्या इस बार भी नालों की सफाई होगी? या इस बार भी विभाग इधर-उधर मुंह ताकेंगे और हालात बिगड़ जाने के बाद बहानेबाजी के साथ आम जनता को बरगलाएंगे। ऐसे ही हालात बने तो इस बार भी दिल्ली जलभराव से जूझेगी और लोग घर से बाहर नहीं निकलेंगे। जनता का यह चिंतन वाजिब है। आखिर वक्त रहते हम किसी भी काम की शुरुआत क्यों नहीं करते? अंतिम समय का इंतजार क्यों करते हैं? ऐसा तो नहीं मानसून का आना कोई आकस्मिक घटना है। हर बार तय समय से दो-चार दिन आगे-पीछे आगमन होता है। जब आना तय है तो हमारी तैयारी की प्रक्रिया में लेट लतीफी और हीलाहवाली क्यों?

आपको बता दें जिस लोक निर्माण विभाग के पास बड़े नाले साफ करने की जिम्मेदारी है, उसने अभी तक कोई तैयारी नहीं की है। नगर निगम का भी यही हाल है। जलभराव की मुख्य वजह नालों की सफाई न होना ही है। व्यवस्था में सुधार के लिए नालों की सफाई का कार्य फरवरी से शुरू हो जाना चाहिए था। यह कार्य जून में मानसून आने से पहले 15 मई तक समाप्त कर देना चाहिए था ताकि नालों से निकली गाद को भी समय से उठाया जा सके। मगर नाले अभी तक साफ नहीं हुए हैं। इसके लिए निर्धारित अंतिम तारीखें भी निकल चुकी हैं। अब निगम ने इसके लिए फिर अवधि बढ़ाते हुए 30 जून कर दी है। इस दौरान यदि बारिश हो गई तो पूरे के पूरे कार्य पर पानी फिरना तय है। यानी निकाली गई गाद फिर से नालों में जाएगी और सफाई कार्य पर पैसा खर्च

होने के बाद भी इसका लाभ जनता को नहीं मिल सकेगा।

नहीं झेल सकते हल्की सी बारिश भी

बहरहाल अब स्थिति यह है कि दिल्ली के सभी क्षेत्रों का बुरा हाल है। आपको जानकार हैरानी होगी कि नगर निगम और लोक निर्माण विभाग मानसून की हल्की सी बारिश झेलने की क्षमता नहीं रखते। खुदा न खास्ता मौसम विभाग के अनुमानुसार अच्छी बारिश हो गई तो दिल्ली की जनता को सरकारी एजेंसियों की लापरवाही का नतीजा भुगतना ही पड़ेगा। दोनों ही विभागों की लापरवाही से ऐसे ही हालात बनते नजर आ रहे हैं। तीनों नगर निगम में नालों की सफाई का काम देरी से शुरू होने को लेकर पार्षदों में रोष है। वहीं विधायक नालों की सफाई में देरी का मामला विधानसभा के सत्र में भी उठा चुके हैं। नगर निगम उत्तरी व दक्षिणी सहित नगर निगम पूर्वी तीनों जगह एक जैसे ही हालात हैं।

विभागों की बहानेबाजियां

पूर्वी दिल्ली का हाल तो यह है कि यहां न ही नगर निगम और न ही लोक निर्माण विभाग के नाले 15 जून तक भी साफ नहीं हो पाएंगे। नगर निगम पूर्वी ने तो दस दिन पहले ही नालों की सफाई का कार्य शुरू किया है। हालांकि नगर निगम पूर्वी का दावा है कि 23 जून तक नाले साफ कर देंगे। इस नगर निगम के पास 221 ऐसे नाले हैं जिनके साफ नहीं होने से बरसात के समय पूरा यमुनापार जलमग्न होगा। नगर निगम का कहना है कि नालों से निकाली जाने वाली गाद डालने के लिए जगह न मिलने से नाले की सफाई के कार्य को शुरू करने में देरी हुई है। वहीं लोक निर्माण विभाग के पास यमुनापार में 200 नाले हैं। लोक निर्माण का कहना है कि नालों की सफाई के लिए निकाले जाने वाले टेंडर में इस बात का जिक्र किया जाता है कि सफाई कर निकाली जाने वाली गाद कहां डाली जाएगी। उसी हिसाब से टेंडर में रेट डाले जाते हैं। चूंकि दिल्ली विकास प्राधिकरण ने 15 दिन पहले गाद के लिए जगह दी है।

‘बहानों की सफाई’ पर रहता है ध्यान

यह जानते हुए भी कि अनुमानत: 15 जून तक मानसून आएगा, बावजूद इसके हर वर्ष नालों की सफाई में कोताही बरती जाती है। अभी तक सभी जिम्मेदार एजेंसियां हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती हैं। और जब हालात बिगड़ेंगे जलभराव होने पर एजेंसियां एकदूसरे पर आरोप लगाती हैं कि उनके अधिकार क्षेत्र के नाले साफ नहीं हुए हैं। हर बार इन्हीं आरोप-प्रत्यरोप के साथ मानसून गुजर जाता है। बड़ा सवाल यही रह जाता है कि सब कुछ जानते हुए भी नालों की सफाई के लिए जिम्मेदार एजेंसियों ने समय पर कार्य शुरू क्यों नहीं कराया। राजधानी की स्थिति पर नजर डालें तो साफ होता है कि इसके लिए बहु विभागीय व्यवस्था भी जिम्मेदार है।

गाद के लिए जगह नहीं

यहां एक बड़ी समस्या यह भी है कि नालों से निकाली गई गाद कहां डाली जाएगी। इसके लिए डीडीए जमीन उपलब्ध कराता है। ऐसे में कई बार चाह कर भी नालों की सफाई का कार्य शीघ्रता से शुरू नहीं हो पाता है। इसके अलावा विभागीय अधिकारियों का लापरवाहीपूर्ण रवैया भी इसके लिए जिम्मेदार है। विभागीय अधिकारी नालों की सफाई के लिए ढुलमुल रवैया अपनाते रहते हैं। इसके चलते नालों की सफाई समय पर शुरू नहीं हो पाती है।

भ्रष्टाचार भी है कारण

नालों की सफाई का कार्य समय पर शुरू नहीं होने के पीछे भ्रष्टाचार भी एक बड़ा कारण माना जाता है। नालों की सफाई एक ऐसा कार्य है कि जिसमें आठ दिन बाद स्थिति इस तरह की हो जाती है कि जैसे नाला साफ ही नहीं हुआ हो। इसका लाभ कुछ भ्रष्ट अधिकारी भी उठा लेते हैं। कुछ साल पहले की बात करें तो यमुनापार के शाहदरा उत्तरी क्षेत्र में जिन नालों की सफाई का दावा किया गया था इसके लिए बकायदा प्रमाण पत्र भी दिए गए थे वह साफ ही नहीं हुए थे। सतर्कता विभाग द्वारा जब जांच में इसका पर्दाफाश हुआ तब निगम के 6 अभियंता निलंबित हुए थे। जिनके खिलाफ विभाग ने जांच भी शुरू की थी।  


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