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EXCLUSIVE: इन 10 सवालों ने आरुषि हत्याकांड को बनाया मर्डर मिस्ट्री, जानिए कहां हुई चूक

हत्या के 10 साल बाद भी सीबीआइ की दो और यूपी पुलिस की एक जांच टीम इस केस का खुलासा नहीं कर सकी। वही सवाल अब भी बरकरार हैं।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 10 Aug 2018 08:31 PM (IST)Updated: Fri, 10 Aug 2018 08:31 PM (IST)
EXCLUSIVE: इन 10 सवालों ने आरुषि हत्याकांड को बनाया मर्डर मिस्ट्री, जानिए कहां हुई चूक
EXCLUSIVE: इन 10 सवालों ने आरुषि हत्याकांड को बनाया मर्डर मिस्ट्री, जानिए कहां हुई चूक

नई दिल्ली (अमित सिंह)। नोएडा के सेक्टर-25 जलवायु विहार सोसायटी के फ्लैट नंबर-32 में 10 वर्ष पूर्व हुई 14 वर्षीय आरुषि तलवार और घरेलू नौकर हेमराज की हत्या का रहस्य अब भी बरकरार है। आज भी लोगों के जेहन में सवाल बना हुआ है कि आखिर कौन है इनका हत्यारा। देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआइ दो बार मामले में जांच कर चुकी है। दोनों जांच टीमों ने अलग-अलग थ्योरी पर काम किया।

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एक टीम ने दंत चिकित्सक तलवार दंपती और उनके पारिवारिक दंत चिकित्सक मित्र के नौकर समेत तीन नौकरों को गिरफ्तार किया। दूसरी टीम ने नौकरों की जगह तलवार दंपती को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। इससे पहले नोएडा पुलिस भी तलवार दंपती को जेल भेज चुकी थी। केस की तीन बार जांच हुई और तीनों बार कोर्ट ने सुबुतों के अभाव में आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। इसने इस केस को देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बना दिया है। अब भी इन केस में 10 ऐसे सवाल हैं, जिनका उत्तर जांच एजेंसियां नहीं तलाश सकी हैं। आइए जानते हैं, कौन से हैं ये सवाल और कहां हुई चूक ने इस केस को देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बना दिया।

1. 16 मई 2008 की सुबह आरुषि का खून से लथपथ शव उसके बिस्तर पर पड़ा मिला था। अगले दिन 17 मई 2008 को नौकर हेमराज का खून से लथपथ शव तलवार दंपती के घर की छत पर मिला। दोनों की हत्या गला काटकर और सिर पर किसी भारी चीज से वार कर की गई थी। उस रात आरुषि के माता-पिता डॉ राजेश तलवार और डॉ नूपुर तलवार भी उसी फ्लैट में दूसरे कमरे में सो रहे थे। ऐसे में पहला सवाल यही है कि घर में दो लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई और उन्हें कैसे पता नहीं चला। हेमराज की हत्या छत पर ही की गई या उसे फ्लैट में मारने के बाद शव छत पर ले जाया गया।

2. सवाल ये भी है कि पहले किसकी हत्या हुई आरुषि की या हेमराज की। इससे कातिल द्वारा हत्या के मकसद का अनुमान लगाया जा सकता है। अभी अनुमान लगाया जाता है कि हत्यारे ने किसी एक को मारा और फिर राज छिपाने के लिए दूसरे की भी हत्या कर दी थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दोनों की हत्या का समय लगभग आसपास ही बताया गया है, लेकिन हत्या का सटीक समय नहीं है। हत्या के मकसद के कई अनुमान लगाए गए, लेकिन कोई भी कोर्ट में टिक नहीं सका।

3. क्या हत्या वाली रात कोई और घर में आया था या नहीं। सीबीआइ की दो जांच टीमों ने दोनों संभावनाओं पर काम किया। दोनों टीमों ने अपनी जांच में दोनों संभावनाओं पर जोर देते हुए जांच रिपोर्ट तैयार की। हालांकि दोनों टीमों की संभावनाएं कोर्ट में टिक नहीं सकी। क्योंकि इस बात का कोई पुख्ता सुबुत नहीं है कि उस रात तलवार दंपती के घर में कोई बाहरी व्यक्ति आया था या नहीं। हाईकोर्ट ने तलवार दंपती को रिहा करने के आदेश में भी इस बिन्दु पर अहम टिप्पणी की है। हाईकोर्ट में केस की सुनवाई के दौरान ऐसे कई सबूत मिले जो उस रात तलवार दंपती के घर में बार-बार कृष्णा की संभावित उपस्थिति की ओर इशारा करते हैं। सीबीआई के पास इन सवालों का इतना पुख्ता जवाब नहीं था जिससे कि उस रात किसी तीसरे की मौजूदगी की संभावना से इंकार किया जाए। इन संदेहों ने ही सीबीआइ की थ्योरी पर पानी फेर दिया कि घटना की रात फ्लैट में राजेश, नुपुर, आरुषि तलवार और हेमराज के अलावा कोई नहीं था।

4. सीबीआइ ने तलवार दंपत‌ी को आरोपी बनाते हुए कोर्ट में दलील थी क‌ि हेमराज को आरुषि के साथ कमरे में आपत्तिजनक हालत में देख डॉ. राजेश तलवार ने गुस्से में गोल्फ स्टिक से दोनों पर हमला कर दिया था। इसके बाद वह हेमराज को बेहोशी या मृत हालत में लेकर छत पर पहुंचे और वहां सर्जिकल नाइफ से उसका गला काट दिया। बाद में उन्होंने बेटी का गला भी उसी सर्जिकल नाइफ से काट दिया। हालांकि जांच में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला जिससे थ्योरी की पुष्टि होती हो। सीएफएसएल दिल्ली की 19 जून 2008 की रिपोर्ट के अनुसार आरुषि के तकिये, बेडशीट और गद्दे पर हेमराज का कोई डीएनए या खून नहीं मिला था। सीडीएफडी हैदराबाद ने भी 6 नवंबर 2008 की रिपोर्ट में कहा था कि आरुषि के कमरे से सिर्फ उसी का डीएनए मिला था। सीएफएसएल दिल्ली ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि हेमराज के कपड़ों पर भी आरुषि का ब्लड नहीं मिला था। मतलब दोनों की हत्या अलग-अलग जगहों पर ही हुई है।

5. सीडीएफडी प्रयोगशाला की रिपोर्ट में कृष्णा के कमरे में उसके ताकिए पर हेमराज का डीएनए नमूना मिलने की पुष्टि की गई थी। सीबीआइ ने बाद इस रिपोर्ट को गलत बताया। सीबीआइ ने कहा कि सीडीएफडी प्रयोगशाला ने बाद में पत्र लिखकर बताया कि कृष्णा के ताकिए के नमूने वाले प्रदर्श (साक्ष्य संख्या) पर गलत नंबर पड़ गया था। इससे कृष्णा के तकिए पर हेमराज का डीएनए मिलने की पुष्टि हुई थी, जबकि हेमराज का डीएनए दूसरे प्रदर्श पर पाया गया है। मगर सीबीआइ हाईकोर्ट में ये साबित करने में नाकाम रही थी कि ऐसी गलती किस वजह से हुई थी। गवाह के तौर पर बुलाए गए सीडीएफडी के वैज्ञानिकों और रजिस्ट्री के सदस्यों के बयान से भी गलत प्रदर्श पड़ने की बात साबित नहीं हुई। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि बहुत संभव है कि हेमराज के कत्ल के वक्त कृष्णा वहां मौजूद था और हेमराज का खून से सना शव उठाते समय कुछ खून उसके सिर के बालों में लग गया हो। जो बाद में कृष्णा के ताकिए पर आ गया। कोर्ट ने कहा था कि सीबीआइ यह साबित करने में असफल रही है कि सबसे महत्पूर्ण साक्ष्य से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई।

6. सीबीआइ ने ट्रायल कोर्ट के सामने हेमराज और कृष्णा के तकियों की जांच संबंधी प्रदर्शों के फोटोग्राफ पेश नहीं किए थे। सुप्रीमकोर्ट कोर्ट में पुनरीक्षण अर्जी की सुनवाई के दौरान यह फोटो पेश किए गए थे। कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारियों ने जानबूझकर सबसे विवादित प्रदर्शों के फोटोग्राफ नहीं पेश किए। क्योंकि फोटोग्राफ से साबित है दोनों प्रदर्शों पर अलग-अलग नंबर हैं, जिससे रिपोर्ट बदलने की गुंजाइश नहीं है।

7. तलवार दंपती की छत पर जहां हेमराज का खून से लथपथ शव मिला था, वहीं दीवार पर खून से सने हाथ के पंजे का निशान भी मिला था। शुरू से माना जाता रहा है कि वह पंजे का निशान कातिल का हो सकता है। हालांकि उस खूनी पंजे का डीएनए भी किसी संभावित कातिल डा. राजेश तलवार, कृष्णा, राजकुमार या विजय मंडल से मेल नहीं खाया।

8. आरुषि-हेमराज हत्याकांड को देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री बनाने में नोएडा पुलिस की अहम भूमिका है। नोएडा पुलिस ने शुरुआत में ही सबूत जुटाने में ऐसी चूक कर दी, जिसकी भरपाई अब तक नहीं हो सकी है। दरअसल 16 मई 2008 को जिस दिन आरुषि का शव मिला था। उसी दिन मेट्रो अस्पताल में भर्ती एक बड़े नेता को देखने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कांग्रेस के कई बड़े नेता नोएडा आए हुए थे। सुरक्षा को देखते हुए नोएडा पुलिस के सभी बड़े अधिकारी भी मेट्रो अस्पताल में मौजूद थे। ऐसे में आरुषि की हत्या का पता चलने पर केवल तत्कालीन थाना सेक्टर-20 प्रभारी दाताराम नौनेरिया मौके पर पहुंचे थे। उन्होंने किसी आत्महत्या की तरह इस केस में भी खानापूर्ति करते हुए आरुषि के शव का पंचनामा कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था। नोएडा पुलिस की लापरवाही का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पुलिस ने छत पर जांच तक नहीं की। अगर पुलिस ने उसी दिन छत पर जांच की होती तो तुरंत नौकर हेमराज का शव भी बरामद हो जाता।

9. पहले दिन नोएडा पुलिस ने मौके से न तो खून के नमूने लिए और न ही खून से सनी चादर और गद्दों को पुलिस ने सीज किया। यहां तक कि पुलिस को छत पर जाने वाली सीढ़ियों पर गिरी खून की बूंदे तक नहीं दिखीं। पुलिस ने पहले दिन छत पर जाने का कोई प्रयास नहीं किया। जबकि छत के दरवाजे और उसमें लगे ताले पर भी खून से सने हाथों के निशान थे। घटनास्थल से तत्काल फॉरेंसिक नमूने नहीं लिए गए। लिहाजा दोनों दिन फ्लैट में जुटी भीड़ के पैरों और हाथों के निशान में सभी सबूत मिट गए।

10. नोएडा पुलिस ने ही राजेश तलवार को बेटी के कमरे से खून से सनी चादर और गद्दे को छत पर रखने की मंजूरी दी थी। इसके बाद उन्होंने पुलिस से पूछकर ही खून से सने बेटी के कमरे की पानी डालकर धुलाई कर दी थी। इससे सारे फॉरेंसिक नमूने खत्म हो गए। यही वजह है कि लगभग 15 दिन बाद केस की जांच करने पहुंची सीबीआइ को फ्लैट से पुख्ता फॉरेंसिक नमूने नहीं मिले थे।

आरुषि हत्याकांड में कब क्या हुआ

- 16 मई 2008 की सुबह आरुषि का खून से लथपथ शव उसके कमरे मे बरामद हुआ। लापता घरेलू नौकर के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर उसकी तलाश शुरू कर दी गई।

- 17 मई 2008 को हेमराज का भी खून से लथपथ शव तलवार दंपती के छत से बरामद हो गया।

- 23 मई 2008 को नोएडा पुलिस ने आनन-फानन में बिना पुख्ता सुबुतों के डॉ राजेश तलवार को उन्हीं की बेटी आरुषि और नौकर हेमराज की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।

- 1 जून 2008 को सीबीआइ ने जांच संभाल ली।

- 13 जून 2008 को सीबीआइ ने तलवार दंपती की क्लीनिक पर काम करने वाले कृष्णा को गिरफ्तार कर लिया।

- 12 जुलाई 2008 को डॉ राजेश तलवार को गाजियाबाद सीबीआइ कोर्ट से जमानत मिल गई।

- 29 दिसंबर 2009 को सीबीआइ ने मामले में गिरफ्तार तीनों नौकरों को क्लीन चिट देते हुए क्लोजर रिपोर्ट लगा दी। हालांकि डॉ राजेश तलवार पर संदेह व्यक्त किया।

- 9 फरवरी 2011 को सीबीआइ कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को चार्जशीट मानते हुए सुनवाई शुरू की।

- 9 जनवरी 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने डॉ राजेश तलवार को जमानत दे दी।

- 26 नंबवर 2013 को सीबीआइ कोर्ट ने दोनों को दोषी ठहराते हुए जेल भेज दिया था।

- 12 अक्टूबर 2017 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुबुतों के अभाव में सीबीआइ कोर्ट के आदेश को पलटते हुए तलवार दंपती को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।


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