सिख को बिना हेलमेट के प्रतियोगिता में हिस्सा न लेने देना भेदभाव नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक पगड़ीधारी सिख को बिना हेलमेट पहने किसी खेल प्रतियोगिता में शामिल नहीं होने देना उसके साथ भेदभाव नहीं है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि एक पगड़ीधारी सिख को बिना हेलमेट पहने किसी खेल प्रतियोगिता में शामिल नहीं होने देना उसके साथ भेदभाव नहीं है। सुरक्षा मानकों को पालन कराने की कहने को धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप भी नहीं ठहराया जा सकता।
जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने दिल्ली के सिख जगदीप सिंह पुरी की तरफ से दायर याचिका को खारिज कर दिया। 50 वर्षीय पुरी ने कहा था कि हेलमेट पहनने से इन्कार करने पर उसे साइकिल प्रतियोगिता में शामिल नहीं होने दिया गया था, जो उसके साथ भेदभाव की श्रेणी में आता है।पीठ ने पुरी की इस दलील पर भी गंभीर आपत्ति जताई कि जब सेना एक सिख को पगड़ी के साथ नियंत्रण रेखा पर ड्यूटी करने दे सकती है तो एक खेल प्रतियोगिता के आयोजक उस पर कैसे आपत्ति कर सकते हैं।
पेशे से ग्राफिक डिजाइनर पुरी की तरफ से पेश वकील आरएस सूरी ने कहा कि जब एक सिख को सेना में पगड़ी पहने की अनुमति दी जा सकती है तो खेल प्रतियोगिता में क्यों नहीं। पीठ ने कहा, 'आप एक सैनिक की किसी रेस प्रतियोगिता में शामिल होने वाले के साथ तुलना नहीं कर सकते। सेना में आप देश की सेवा करते हैं। वहां किसी तरह का भेदभाव नहीं हो सकता। आप सेना में भर्ती होकर यह नहीं कह सकते कि मैं युद्ध लड़ने नहीं जाऊंगा, लेकिन आप एक साइकिल खरीदने के बाद भी किसी साइकिल रेस में शामिल होने या नहीं होने का फैसला कर सकते हैं।'
पीठ ने कहा, 'यह धार्मिक आधार पर किसी के साथ भेदभाव या उसके धार्मिक अधिकारों में हस्तक्षेप का मामला नहीं है। यह आस्था या कर्तव्य का मामला भी नहीं है।' पीठ ने सिखों को साइकिल प्रतियोगिता में बिना हेलमेट शामिल होने देने के लिए सरकार या आयोजकों को किसी तरह का निर्देश देने से भी इन्कार कर दिया। पीठ ने याचिकाकर्ता से सरकार के सामने अपना पक्ष रखने को कहा। पुरी को 14 अगस्त, 2015 में बिना हेलमेट के आजाद हिंद ब्रिवेट में शामिल होने से रोक दिया गया था।