प्रसव के दिन भी 63 फीसद महिलाओं को करना पड़ता है घर और खेत का काम
सर्वे में यह बात सामने आई कि प्रसव के दिन भी 63 फीसद महिलाओं को डिलीवरी से पहले घर का काम करना पड़ा था।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। सुरक्षित मातृत्व के लिए कई योजनाएं चल रही हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के ज्यादातर गर्भवती महिलाओं तक सरकारी सुविधाएं नहीं पहुंच पा रही हैं। इस वजह से गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता। छात्रों के एक समूह की ओर से छह राज्यों में किए गए 'जच्चा-बच्चा' सर्वे में यह बात सामने आई है। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा व मध्य प्रदेश शामिल हैं।
प्रसव के दिन भी महिलाएं करती हैं घर के काम
सर्वे में यह बात सामने आई कि प्रसव के दिन भी 63 फीसद महिलाओं को डिलीवरी से पहले घर का काम करना पड़ा था। यह सर्वे अर्थशास्त्री व समाजिक कार्यकर्ता रीतिका खेड़ा, ज्यां द्रेज के अलावा अनमोल सोमांची की देखरेख में किया गया। यह सर्वे 708 महिलाओं पर किया गया है। इसमें 342 गर्भवती महिलाएं व 364 धात्री महिलाएं (ऐसी महिलाएं जिन्होंने सर्वे से छह माह पहले तक बच्चों को जन्म दिया था) शामिल थीं।
यूपी, झारखंड और एमपी की स्थिति खराब
सर्वे में पाया गया कि गर्भवती महिलाओं की सुख-सुविधाओं के मामले में उत्तर प्रदेश, झारखंड व मध्य प्रदेश की स्थिति अधिक खराब है। उत्तर प्रदेश में 48 फीसद गर्भवती महिलाओं व 39 फीसद धात्री महिलाओं को यह तक मालूम नहीं था कि गर्भावस्था के दौरान उनका वजन बढ़ा था या नहीं।
69 फीसद को नहीं मिला पौष्टिक भोजन
केवल 22 फीसद धात्री महिलाओं ने कहा कि वे गर्भावस्था के दौरान सामान्य से अधिक भोजन कर रही थीं। सिर्फ 31 फीसद ने कहा कि वे पौष्टिक भोजन कर रही थीं। गर्भावस्था के दौरान खानपान में अंडे, मछली व दूध का सेवन जरूरी है। उत्तर प्रदेश में सिर्फ 12 फीसद महिलाओं ने गर्भावस्था में पौष्टिक भोजन का सेवन किया।
बीएमआइ के अनुसार नहीं बढ़ा वजन
सर्वे में कहा गया है कि जिन महिलाओं का बीएमआइ (बॉडी मास इंडेक्स) 18.5 से कम हो, उनका गर्भावस्था के दौरान 13 से 18 किलोग्राम वजन बढ़ना चाहिए, जबकि सर्वे में पाया गया कि गर्भावस्था में इन महिलाओं का वजन औसतन सात किलोग्राम ही बढ़ा। इसमें भी उत्तर प्रदेश की गर्भवती महिलाओं का वजन चार किलोग्राम ही बढ़ा था। कुछ महिलाएं इतनी दुबली व कमजोर थीं कि गर्भावस्था के अंत तक उनका वजन 40 किलोग्राम से कम था।
आराम की कमी
सर्वे के दौरान दो तिहाई (63 फीसद) महिलाओं ने कहा कि गर्भावस्था में प्रसव के दिन भी उन्हें खेतों या घर में कामकाज करना पड़ा। 21 फीसद धात्री महिलाओं ने कहा कि गर्भावस्था में उनकी देखभाल व घर के कामकाज में मदद के लिए कोई सहारा नहीं था। खानपान में पौष्टिक चीजों का इस्तेमाल नहीं करने से अधिकांश गर्भवती महिलाएं कमजोरी महसूस करती हैं। 41 फीसद महिलाओं की पैरों में सूजन व नौ फीसद को दौरे पड़ने की समस्या हुई।
प्रसव के लिए खर्च करने पड़ते हैं पैसे
सर्वे में पाया गया था कि जिन महिलाओं का प्रसव हो चुका था, उन्होंने प्रसव के लिए औसतन साढ़े छह हजार रुपये खर्च किए थे। एक तिहाई महिलाओं को उधार लेना पड़ा या घर की कोई संपत्ति बेचनी पड़ी।
22 फीसद तक पहुंची केंद्र की मदद
अनमोल ने कहा कि आरटीआइ के जवाब से पता चला कि केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना का लाभ सिर्फ 22 फीसद महिलाओं को मिला। इस योजना में सिर्फ पहली प्रसव के लिए सहायता राशि देने का प्रावधान किया गया है, जो सही नहीं है।