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प्रदुषित हवा से खुद को बचाकर रखना है तो आप भी आजमाएं ये नुस्‍खे, नहीं तो...

सर्दियां शुरू होने से पहले ही दिल्‍ली एनसीआर की हवा खतरनाक स्‍तर पर प्रदुषित हो गई है। ऐसे में कैसे रखें अपनी सेहत का ख्‍याल, जानें यहां।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 29 Oct 2018 01:04 PM (IST)Updated: Mon, 29 Oct 2018 04:58 PM (IST)
प्रदुषित हवा से खुद को बचाकर रखना है तो आप भी आजमाएं ये नुस्‍खे, नहीं तो...
प्रदुषित हवा से खुद को बचाकर रखना है तो आप भी आजमाएं ये नुस्‍खे, नहीं तो...

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। सर्दियां शुरू होने से पहले ही दिल्‍ली एनसीआर की हवा खतरनाक स्‍तर पर प्रदुषित हो गई है। आलम ये है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सुबह सैर पर जाने वालों को ऐसा न करने की सख्‍त हिदायत दी है। इस मौसम में बढ़ते प्रदुषण की सबसे बड़ी वजह हवा की गति का कम होना होती है। ऐसे में गाडि़यों से निकलने वाला धुआं वातावरण में ऊपर न जाकर निचले स्‍तर पर जमा हो जाता है। इसके अलावा हवा में मौजूद नमी की वजह से इसमें धुएं समेत धूल के कण अधिक मात्रा में बने रह जाते हैं। ऐसे में हमें अपनी आखों के सामने धूल भरा आसमान दिखाई देता है। इस हालत में आंखों में जलन के अलावा, सांस लेने में कठिनाई समेत कई समस्‍याएं पैदा हो जाती हैं। इतना ही नहीं अधिक उम्र के लोगों के लिए यह मौसम बेहद खतरनाक होता है। रात में नींद का ना आना, बेचैनी महसूस करना, सिर दर्द आदि की शिकायत ऐसे में बढ़ जाती है। अस्‍थमा के मरीजों को भी ऐसे मौसम में मुश्किलों से दो-चार होना पड़ता है।

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चौंकाने वाले हैं आंकड़े
आंकड़े बताते हैं कि भारत में जितने लोग मलेरिया, एड्स और टीबी समेत अन्‍य बीमारियों से नहीं मरते हैं, उससे कहीं ज्‍यादा लोग प्रदूषण की चपेट में आकर अपनी जान गंवा देते हैं। लांसेट क‍मीशन ऑन पॉल्‍यूशन एंड हैल्‍थ की रिपोर्ट-2015 में यहां तक कहा गया है कि भारत में हर छह में से एक मौत की वजह प्रदूषण होती है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2015 में इसकी वजह से करीब 25 लाख लोगों की मौत हुई थी। इसी वर्ष चीन में 18 लाख लोगों की मौत का कारण प्रदूषण था।

प्रदूषण के मामले में 141वें स्‍थान पर भारत 
यहां पर हम आपको बता दें कि वर्ल्‍ड इकोनॉमिक फोरम के साथ मिलकर येल व कोलंबिया यूनिवर्सिटी हर दूसरे साल पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक जारी करती हैं। इसमें देशों की पर्यावरण गुणवत्ता को कई मानकों पर मापा जाता है। जुलाई, 2016 में जारी हुए पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में 180 देशों में से भारत को 141वां स्थान मिला। कुल 100 अंकों में से भारत को 53.58 मिले हैं। सभी ब्रिक्स देशों में भारत का प्रदर्शन सबसे निराशाजनक रहा। ब्राजील 46वें, रूस 32वें, चीन 109वें और दक्षिण अफ्रीका 81वें स्थान पर रहा था। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल अपनी सेहत का ध्‍यान रखने को है।

स्वास्थ्य पर प्रदूषण के दुष्प्रभाव को देखते हुए इस संबंध में गंगाराम अस्पताल के चेस्ट मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ कंसल्टेंट डॉ. अरुप बसु की ये है आपको सलाह:-

  1. प्रदूषण से श्वसन तंत्र के उपरी हिस्सों पर असर जल्दी होता है। शुरुआत में सांस की नली में परेशानी, गले में खरास व ब्रॉन्काइटिस बीमारी होती है। इससे फेफड़े को भी नुकसान पहुंचता है। इस समय सांस व फेफड़े की बीमारियां बढ़ रही हैं। अस्थमा के पुराने मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ रही है। दिक्कत बढ़ने पर कुछ लोगों को आइसीयू में वेंटिलेटर पर भी रखना पड़ता है। इसमें से कुछ लोगों की मौत तक हो जाती है। सामान्य लोगों में भी एलर्जी व सांस की बीमारियां देखी जाती है। खासतौर पर बच्चों को अधिक दिक्कत होती है। प्रदूषण के कारण यह देखा जा रहा है कि ओपीडी में अभी से 15-25 फीसद मरीज बढ़ गए हैं। जो लोग पहले से इनहेलर या नेबुलाइजर इस्तेमाल करते हैं, वे प्रदूषण से ज्यादा प्रभावित होते हैं। ठीक से सांस नहीं ले पाने के कारण उनका दम फूलने लगता है। दवा का डोज बढ़ाने पर उसका साइड इफेक्ट होने का भी खतरा रहता है। इसलिए बहुत संभलकर दवा की खुराक बढ़ानी पड़ती है।
  2. प्रदूषण की जल्द रोकथाम जरूरी है। वातावरण की स्वच्छता के लिए सामाजिक व सरकारी दोनों स्तरों पर प्रयास करने होंगे। सामाजिक प्रयास यह कि लोगों को पराली, कूड़ा जलाने व पटाखे फोड़ने से बचना चाहिए। वहीं सरकार को सख्ती से ऐसे नियम लागू करने होंगे जिससे प्रदूषण कम हों। 
  3. सुबह व शाम को टहलना बंद कर दें। दोपहर में वातावरण साफ होने पर लोग टहल सकते हैं। इस समय पानी खूब पीना चाहिए ताकि शरीर का हाइड्रेशन ठीक रहे। इससे शरीर से कई तरह के प्रदूषक तत्व बाहर आ जाते हैं। घर से बाहर निकलने पर मास्क का इस्तेमाल किया जा सकता है पर इससे भी पूरा बचाव संभव नहीं है। छोटे बच्चों को इन दिनों घर से बाहर नहीं ले जाना चाहिए। कमरे में एयर प्यूरिफायर का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  4. प्रदूषण साइलेंट किलर है। पांच साल से कम उम्र वाले बच्चे प्रदूषण के जद में आते हैं तो उन्हें ब्रॉन्काइटिस होती है। बड़े होने पर उन्हें फेफड़े की बीमारी हो सकती है और उनके विकास पर भी असर पड़ सकता है। इसके अलावा हृदय की बीमारी व फेफड़े का कैंसर हो सकता है।


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