Move to Jagran APP

फूहड़पन को लेकर छलका भरत व्यास का दर्द, कहा- ऐसे तो भोजपुरी खो देगी पहचान

भोजपुरी गायन के शिखर पुरुष और इस भाषा के लोक गौरव कहे जाने वाले भरत शर्मा व्यास भोजपुरी गानों में बढ़ती अश्लीलता से बेहद व्यथित हैं।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 09 Aug 2018 11:47 PM (IST)Updated: Fri, 10 Aug 2018 09:43 AM (IST)
फूहड़पन को लेकर छलका भरत व्यास का दर्द, कहा- ऐसे तो भोजपुरी खो देगी पहचान
फूहड़पन को लेकर छलका भरत व्यास का दर्द, कहा- ऐसे तो भोजपुरी खो देगी पहचान

नोएडा (जेएनएन)। भोजपुरी गायन के शिखर पुरुष और इस भाषा के लोक गौरव कहे जाने वाले भरत शर्मा व्यास भोजपुरी गानों में बढ़ती अश्लीलता से बेहद व्यथित हैं। उनका मानना है कि यदि फूहड़पन का यह दौर नहीं थमा तो दुनिया के 10 देशों में बोले जाने वाली यह भाषा अपनी पहचान खो देगी। साढ़े चार हजार से ज्यादा गानों को अपनी आवाज दे चुके भरत व्यास गुरुवार को दैनिक जागरण के नोएडा के कार्यक्रम में आए थे। यहां उन्होंने रिपोर्टिंग प्रभारी ललित विजय से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंशः

loksabha election banner

पिछले दो दशकों में भोजपुरी लोकगीतों में फूहड़पन बढ़ा है। गानों के बोल में सभ्य परिहास या चुहल की जगह अश्लील शब्दों ने ले ली है। इस पतन के क्या कारण हैं?

- यह सब कुछ सस्ती लोकप्रियता व रातों-रात स्टार बनने की चाहत में हो रहा है। जो लोग ऐसा कर रहे हैं, उनका भोजपुरी की सेवा या उसकी विरासत से कोई लेना-देना नहीं है। उनके सरोकारों में भोजपुरी भाषा या संस्कृति नहीं है। पहले के दौर में भी कुछ गायक व गीतकार ऐसे आए थे, लेकिन भोजपुरी समाज ने उसे नहीं अपनाया। आज वे कहीं नहीं हैं। जिन लोगों ने वह राह नहीं अपनाई, वह आज भी सम्मान पा रहे हैं।

कुछ लोग इसे हॉलीवुड का असर मानते हैं।

- हॉलीवुड के असर ने तो बॉलीवुड को समाज से काट दिया। आज कई हिंदी फिल्म ऐसी हैं, जिन्हें आप परिवार के साथ नहीं देख सकते। भोजपुरी फिल्में भी इस असर से अछूती नहीं हैं। अब भोजपुरी में मौलिक विषयों पर फिल्में नहीं बनतीं। नदिया के पार जैसी यादगार फिल्में कहां हैं अब? बॉलीवुड या दक्षिण की फिल्मों की भोजपुरी में डबिंग हो रही हैं।

क्या इन सबका सर्वाधिक असर भोजपुरी जैसी क्षेत्रीय भाषा पर ही पड़ा?

- देखिए, मैं निजी तौर पर इसके पीछे युवा भोजपुरी गीतकारों व गायकों को जिम्मेदार मानता हूं। उन्हें यह समझना होगा कि गीत सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि वह जीवन दर्शन है। गीत-संगीत जीने की कला भी है। गीतों से समाज में संदेश जाता है, कुरीतियों पर प्रहार होता है। तभी तो भिखारी ठाकुर पर आज शोध हो रहा है। आज के समय में हजारों भोजपुरी गायक है, लेकिन सोचनीय पहलू यह है कि उनकी राष्ट्रीय पहचान नहीं बन पा रही है। भोजपुरी करोड़ों लोगों की भाषा है और निजी स्वार्थ के लिए कुछ लोग इसे बदनाम कर रहे हैं।

भोजपुरी गाने तो लोकप्रिय हो रहे हैं पर साहित्य में ऐसा क्यों नहीं?

- जैसा सुनेंगे, वैसा ही सोचेंगे और वैसा ही लिखेंगे। इसलिए सबसे पहले भोजपुरी को मर्यादित भाषा की श्रेणी में लाना होगा। फिर साहित्य स्वयं समृद्ध हो जाएगा।

भोजपुरी की दुर्दशा के लिए क्या सरकारी उपेक्षा भी जिम्मेदार है?

- विशाल भोजपुरी परिवार से तमाम लोग राष्ट्रीय राजनीति में रहे हैं और आज भी हैं। दुखद यह है कि वह खुद को भोजपुरिया कहने से बचते हैं। ऐसे लोगों को मैं इस गाने से संदेश देता हूं, ‘दिल्ली-बांबे-कलकता चाहे रहीह मसूरी में, पढ़िह-लिखिह कवनो भासा, बतिअइह भोजपुरी में।’ यह भावना विकसित करनी होगी। तभी भोजपुरी का कल्याण होगा। भोजपुरी अकेली क्षेत्रीय भाषा है, जिसकी विदेश में भी पहचान है। भोजपुरी को संविधान की आठवीं सूची में लाना बेहद जरूरी है। दुखद है कि किसी भी भोजपुरी गायक को पद्म पुरस्कार नहीं मिला है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.