जेएनयू में हुए आंदोलन और हिंसात्मक घटनाओं से पढ़ाई बाधित, आम छात्र के भविष्य के साथ हुआ खिलवाड़ : अतुल कोठारी
जेएनयू में इस प्रकार की हिंसात्मक घटना एवं इसके परिणाम स्वरुप जो वातावरण निर्माण हो रहा है सारे शिक्षाविदों ने एक स्वर में हिंसा की सख्त शब्दों में निंदा की।
नई दिल्ली, जेएनएन। जेएनयू में इस प्रकार की हिंसात्मक घटना एवं इसके परिणाम स्वरुप जो वातावरण निर्माण हो रहा है, सारे शिक्षाविदों ने एक स्वर में हिंसा की सख्त शब्दों में निंदा की एवं निजी स्वार्थों के लिए कुछ छात्र संगठनों के द्वारा प्रवेश प्रक्रिया को रोक कर उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है। उनको संरक्षण देने वाले तत्वों पर सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए यह बात शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा नेहरू स्मारक संग्रहालय में 'जेएनयू : शिक्षा और राजनीति' विषय पर आयोजित कार्यक्रम में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने कही।
जेएनयू में हुई घटनाओं के मूल में जाकर इन समस्याओं का समाधान खोजना होगा, अब समय आ गया है जब इन घटनाओं में जो प्रमुख बातें कहीं दब गयी थी उन्हें उजागर कर चिंतन किया जाए, यह बात गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने बतौर मुख्य अतिथि कही। कार्यक्रम के समय को उचित बताते हुए उन्होंने कहा कि देश के प्रतिष्ठित संस्थानों के प्रमुखों को एक मंच पर लाकर आयोजकों ने ऐसे महत्वपूर्ण विषय पर देश में बहस छेड़ी है जिसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में अतुल कोठारी ने कहा कि जेएनयू में हुए आंदोलन व हिंसात्मक घटना से कार्य बाधित हुआ है और आम छात्र के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया गया है, उसकी विशेष चिंता करने की आवश्यकता है। तथाकथित आजादी की मांग करने वाले छात्र संगठनों का वास्तविक व अलोकतांत्रिक चरित्र सामने आया है। अपनी विचारधारा के तुच्छ स्वार्थों के लिए छात्रों के भविष्य के साथ जो खिलवाड़ किया जा रहा है, वह अक्षम्य है। जेएनयू में असहमति की परिणिति जैसी उग्रता में हुई, वैसी पहले कभी नहीं हुई थी। घटना का हिंसात्मक पक्ष प्रमुखता से देश और विश्व के सामने गया परन्तु शिक्षा एवं शैक्षणिक वातावरण की जो हानि हुई उस पर चर्चा नहीं हुई और यही कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य था।
उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों को अतार्किक रूप से अनुदान दिए जाने पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि सरकार देश के सुदूर क्षेत्र में चल रहे शिक्षण संस्थानों को कुछ लाख रुपये का अनुदान देती है, वहीं जेएनयू जैसे कुछ संस्थानों को 500 करोड़ तक देती है, सरकार को अनुदान देने की व्यवस्था का पुनरावलोकन करने की आवश्यकता है। वहीं फीस के संबंध में उन्होंने कहा कि जो छात्र गाड़ी से परिसर में घूमता है क्या वह भी हॉस्टल का 10 रुपये शुल्क देगा, इस पर विचार करने की आवश्यकता है। जेएनयू के लगभग 90 प्रतिशत छात्रों को 2000 से लेकर 47000 रुपये तक स्कॉलरशिप मिलती है, इन सभी बिंदुओं का समावेश करते हुए फीस पर चर्चा करना उचित होगा।
इस पर आगे बताते हुए उन्होंने कहा कि मात्र जेएनयू में ही नहीं बल्कि देश के सभी शिक्षण संस्थानों में शुल्क के अनुपात पर गहन चिंतन करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में मुख्यरूप से देश के 13 केंद्रीय संस्थान जैसे एनबीटी, एआईयू, एनआईओएस, आईसीएचआर, एनबीए, केंद्रीय विद्यालय संगठन, जवाहर नवोदय संगठन, एनआईटी, एनसीआरटी के प्रमुख साथ ही देश के 9 प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के कुलपति समेत वरिष्ठ शिक्षाविद, जेएनयू के पूर्व व वर्तमान छात्र एवं विभिन्न महाविद्यालयों के प्रोफेसर ने मिलकर विषय पर गहन चर्चा की और आयोजकों द्वारा प्रेषित प्रस्ताव पर सुझाव दिए।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के देवेंद्र सिंह ने बताया कि कार्यक्रम के बाद शिक्षाविदों के हस्ताक्षर करवाकर प्रधानमंत्री व मानव संसाधन मंत्री को ज्ञापन दिया जाएगा। विषय पर अपनी बात रखते हुए एनआईओएस के अध्यक्ष व जेएनयू के पूर्व छात्र सीबी शर्मा ने कहा कि जेएनयू की हिंसा पूर्णरूप से प्रायोजित थी उन्होंने 1983 की घटना का हवाला देते हुए बताया की जेएनयू में विचारधारा की लड़ाई व बहस का पुराना इतिहास रहा है किसी समय इसे अनिश्चितकाल के लिए बंद भी किया जा चूका था तो ऐसे में इन प्रायोजित हिंसक घटनाओं के कारण वर्तमान प्रशासन पर सीधे ऊँगली उठाने के बजाय इस प्रवृति के मूल में जाकर समस्याओं का हल निकालने की आवश्यकता है।