संतान की चाह में देश की मुख्य धारा में लौटे नक्सली दंपति, ऐसी है इनकी कहानी
नक्सली दंपति ने संतान की चाह में देश की मुख्य धारा में लौट आए हैं। 15 साल पहले ये लोग सलवा जुडूम के डर से नक्सलियों की लाल सेना का हिस्सा बन गए थे।
बीजापुर, गणेश मिश्रा। वर्ष 2005 में सलवा जुडूम की प्रताड़ना से परेशान होकर नक्सलवाद को अपनाने वाले नक्सली दंपति की कहानी मार्मिक है। इनका दर्द इस बात को बयां करने के लिए काफी है कि माओवादी और क्रांतिकारी विचारधारा के नाम पर नक्सली नेता संगठन में किस तरह बस्तर के युवाओं का शोषण और उनके अधिकारों का हनन करते हैं। यही नहीं बल्कि दाम्पत्य और संतान सुख से भी कोसों दूर कर दिया जाता है। ऐसी ही कहानी नक्सली दंपति सेक्शन कमांडर नागेश और सोमे की है, जिन्होंने नक्सलियों से परेशान होकर संतान की चाह में देश की मुख्य धारा में लौट आए हैं।
बुधवार को आत्मसमर्पण करने यहां पहुंचे नक्सली दंपति मनकेली निवासी नागेश उर्फ बुधराम कुरसम और सोमे उर्फ भीमे दोनों ही संगठन में सेक्शन कमांडर के पद पर काम कर रहे थे। दोनों ने करीब 15 साल पहले सलवा जुडूम के डर से नक्सलियों की लाल सेना का हिस्सा बन गए थे।
आठ साल पहले किया था विवाह
नागेश का कहना है कि उसने पूवर्ती निवासी सोमे भीमे से वर्ष 2011 में संगठन में रहने के दौरान ही शादी कर ली थी। परंतु बड़े लीडरों ने शादी के तुरंत बाद जबरदस्ती नसबंदी करवाकर संतान सुख से दूर कर दिया। इसके चलते वे आठ साल से काफी परेशान और प्रताड़ित होते रहे। उन्हें संतान की इच्छा थी लेकिन बड़े नक्सली नेताओं के आगे वे मजबूर थे।
नागेश ने बताया कि एक दिन संतान की चाह के चलते उसने अपनी पत्नी भीमे से समर्पण की इच्छा जताई तो उसने हामी भर दी। इसके बाद दोनों काम के सिलसिले में आंध्र प्रदेश जाने का बहाना बनाकर आत्मसमर्पण करने बीजापुर आ गए। यहां एसपी से संपर्क करने के बाद उन्हें जीने की एक नई राह मिली है।
बच्चे बनते हैं रोढ़ा, इसलिए इनके खिलाफ हैं नक्सली
नक्सल संगठन में महिला और पुरुष दोनों शामिल होते हैं। दोनों को ही लड़ाई और बंदूक चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है। नक्सली कैंप एक से दूसरी जगह तक मूव करते रहते हैं और इनका कोई स्थाई ठिकाना नहीं होता। नक्सली गतिविधियों के विस्तार में बच्चे रोढ़ा होते हैं। इस वजह से संगठन में शादी और बच्चे पैदा करने तक की मनाही है।
संगठन में जोड़ों के बीच प्रेम होता है और वे गुप्त तरीके से शादी कर लेते हैं। इस शादी की खबर लगने पर उन्हें सजा दी जाती है और सजा के तौर पर नसबंदी करा दी जाती है। नक्सली लीडरों का मानना है कि प्रेम और दांपत्य संबंध और बच्चे नक्सल संगठन को कमजोर करते हैं। इस वजह से वे परिवार और वंश वृद्धि के खिलाफ हैं।
नक्सलवाद से हो रहा मोहभंग
बस्तर आईजी विवेकानंद सिन्हा ने कहा कि बस्तर के भोले- भाले आदिवासियों को बहला- फुसलाकर बाहर के नक्सली संगठन में भर्ती कर रहे हैं, लेकिन बस्तर के लोग अब समझ चुके हैं कि नक्सली जन विरोधी हैं। स्कूल, अस्पताल, सड़क बनने नहीं देते और ग्रामीणों को सरकारी सुविधाओं से वंचित रखते हैं। अब स्थानीय कैडरों का नक्सलवाद से मोह भंग हो रहा है। वे मुख्यधारा से जुड़ने लगे हैं और क्षेत्र के विकास की बात भी कर रहे हैं। सिन्हा ने समर्पित नक्सलियों का स्वागत करते अन्य भटके नक्सलियों से मुख्यधारा में लौटने की अपील की।