मोहब्बत में माड़ा और आयते ने छोड़ी बंदूक, 5 लाख के इनामी नक्सली जोड़े ने लिए सात फेरे
दोनों कई सालों से नक्सल संगठन में सक्रिय थे। माड़ा पर पांच लाख और आयते पर एक लाख रुपये का इनाम था।
दंतेवाड़ा, योगेंद्र ठाकुर। इश्क वो बला है जो अच्छे-अच्छों को रास्ता बदलने पर मजबूर कर देती है। नक्सली जोड़े के प्यार की कहानी भी कुछ कम नहीं है। बस्तर के दुर्दांत नक्सली जोड़े को जब इश्क हुआ तो नक्सल विचारधार में कैद रहने में उन्हें घुटन होने लगी। चूंकि नक्सल संगठन में विवाह पर पाबंदी होती है, इसलिए दोनों योजना बनाकर जंगल से भाग निकले। रविवार को सरकारी सामूहिक विवाह में जब दोनों ने एक दूसरे को वरमाला पहनाई तो पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा। ऐसा लगा मानो सुबह का भूला शाम को घर लौट आया हो।
पुलिस अधीक्षक दंतेवाड़ा अभिषेक पल्लव ने बताया कि नक्सली माड़ा मड़कामी दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण ब्लॉक के मुनगा गांव का निवासी है। उसकी पत्नी कुहरामी आयते सुकमा जिले के मेटापाल गांव की है। दोनों वर्षो से नक्सल संगठन में सक्रिय थे। माड़ा पर पांच लाख और आयते पर एक लाख रुपये का इनाम था। कांकेर घाटी एरिया कमेटी में काम करने के दौरान दोनों संपर्क में आए। दिक्कत यह थी कि अगर संगठन में किसी को पता चल जाता तो उन्हें सजा दी जाती।
माड़ा ने आयते से किया वादा निभाया
इसके बाद माड़ा और आयते ने जंगल से भागकर आत्मसमर्पण की योजना बनाई। पहले आयते मौका देखकर भागी। उसने अगस्त 2018 में तोंगपाल थाने में सरेंडर किया था। इधर माड़ा को भागने का मौका नहीं मिल पा रहा था। आयते बेचैन थी। उससे संपर्क का भी कोई जरिया नहीं था। हालांकि माड़ा ने भी वादा निभाया और एसपी कार्यालय पहुंच आत्मसमर्पण किया। सरेंडर के बाद से आयते तोंगपाल थाने में रह रही है जबकि माड़ा दंतेवाड़ा पुलिस लाइन में रहता है और डीआरजी में तैनात है। इस बीच माड़ा को जब दंतेवाड़ा में मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना का पता चला तो वह उनके(एसपी पल्लव) के पास पहुंचे। एसपी ने महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों से सामूहिक विवाह में नक्सली जोड़े का विवाह कराने को कहा।
प्रेम के लिए भी लेनी होती है अनुमति
नक्सल संगठन में प्रेम और विवाह पर पाबंदी है। प्रेम करने के लिए भी लीडर्स की अनुमति लेनी पड़ती है। प्रेम संगठन के भीतर ही किया जा सकता है। गांव की किसी लड़की से जुड़ाव गुनाह माना जाता है। विवाह की अनुमति मुश्किल से मिलती है। अगर मिली भी तो पुरुष की नसबंदी कर दी जाती है ताकि वह बच्चे न पैदा कर पाए। शादी में फेरे नहीं होते, बल्कि जमीन में बंदूक गाड़कर शपथ ली जाती है कि वे नक्सल आंदोलन से नहीं डिगेंगे।