Move to Jagran APP

Navratri 2020: कल्याणकारी सद्प्रवृत्तियों से जुड़कर अपने भीतर के आसुरी दुष्प्रवृत्ति पर पाएं विजय

Navratri 2020 आत्मचिंतन करें कि हमारे अंदर ही शिव का दिव्य ज्ञान दैवीगुण और शक्तियां मौजूद हैं। शिवरूपी यानी कल्याणकारी सद्प्रवृत्तियों से जुड़कर अपने भीतर के दुष्प्रवृत्ति रूपी असुरों पर विजय आसानी से प्राप्त की जा सकती है। 17 अक्टूबर से आरंभ नवरात्र पर विशेष..

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2020 02:22 PM (IST)Updated: Tue, 13 Oct 2020 02:22 PM (IST)
नवदुर्गा रूपी शिव-शक्तियों को हम बाहर न ढूंढ़ें, बल्कि अपने अंदर ही देखें। प्रतीकात्मक

ब्रह्मा कुमारी शिवानी। Navratri 2020 नवरात्र के नौ दिन विशेष हैं। हर परिवार भक्तिभाव से देवी का आवाहन करता है। हम सुनते आ रहे हैं कि जब-जब नकारात्मक ऊर्जा बढ़ेगी, तब-तब इसे समाप्त करने के लिए शक्ति का आवाहन किया जाएगा। आज के समय में इसकी प्रासंगिकता अधिक है। विश्व भर में भ्रष्टाचार, अन्याय, बहनों के साथ अत्याचार-अनाचार आदि हो रहा है, परिवार टूट रहे हैं। नकारात्मकता चरम पर है। जब भी बुराइयां अच्छाइयों पर हावी होने लगती हैं, तब दैवी शक्तियों का आवाहन किया जाता है, बुरी ताकतों का अंत करने के लिए।

loksabha election banner

प्रश्न है, दैवी शक्तियां क्या हैं और उनका आवाहन कैसे करें? कहानियों में हम सुनते हैं कि देवताओं को असुरों से बचाने के लिए दिव्य शक्तियों का आवाहन किया गया।

प्रश्न है कि ये असुर और देवता व्यक्ति-विशेष हैं या सद्गुण व अवगुण के प्रतीक? अगर एक कलाकार से कहा जाए कि वह क्रोध पर विजय पाने का चित्र बनाए, तो उसे क्रोध का एक प्रतीक बनाना पड़ेगा, भले ही वह काल्पनिक हो। उस विकार या नकारात्मक शक्ति को उसे असुर की आकृति देनी होगी, दूसरी तरफ सकारात्मक गुणों को देवताओं के रूप में दिखाना पड़ेगा। अच्छाई की देवी को बुराई रूपी दानव के ऊपर विजयी दिखाना होगा। आज हमने काल्पनिक कहानी को तो सच मान लिया, लेकिन उन प्रतीक रूपों के पीछे छिपे अर्थ, गुण या चरित्र को भुला दिया।

मतलब यह है कि देवी और दैत्य रूपी गुण या अवगुण हमारे अंदर संस्कार के रूप में हैं।

देवताओं के संस्कार पवित्रता, शांति, प्रेम, सुख, आनंद आदि हमारे अंदर हैं और काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि असुरों के बुरे संस्कार भी हमारे अंदर हैं। अपने दैवी संस्कारों को आसुरी संस्कारों पर विजय दिलाने के लिए शक्तियों का कहां आवाहन करना पड़ेगा? अपने अंदर ही न! अर्थात यह सारी लड़ाई अंदर ही हो रही है।

अंदर के इस द्वंद्व व उसके आध्यात्मिक अर्थ को हम भूल गए हैं। हमने देवियों की बड़ी-बड़ी सुंदर मूर्तियां बनाईं। उनके हाथों में शस्त्रस्त्र दिखा दिए और उनके पैरों के नीचे राक्षस को दिखा दिया। हमने महिमा-गायन किया, पूजन किया, पर्व का आनंद लिया, मूर्तियों का विसर्जन किया, फिर समाप्त। लेकिन अंदर के बुरे संस्कारों पर विजय पाने या उन्हें दैवी संस्कारों में परिवर्तित करने का कार्य हमने किया ही नहीं। जो प्रक्रिया हमें अपने अंदर करनी थी, उसे हमने बाहर किया।

अगर हम किसी को क्रोध न करने को कहते हैं, तो वह कहता है कि देवताओं ने भी तो क्रोध किया था। स्वयं से पूछें, हम देवताओं की महिमा में क्या कहते हैं? सर्वगुणसंपन्न, सोलह कला संपूर्ण, निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम आदि। तो क्या देवता और अवगुण इकट्ठे हो सकते हैं? देवताओं ने भी अपने अंदर के असुरों को समाप्त किया। उन्होंने अपने अंदर के दैवी संस्कारों का आवाहन किया। उन्हें जाग्रत किया। आसुरी संस्कारों को परास्त किया, तभी वे देवता कहलाए।

जिन्हें क्रोध आता है, वे सोचें कि क्या मैं अपने अंदर के क्रोध रूपी राक्षस को समाप्त कर सकती हूं या सकता हूं। समय लगेगा। अंदर का युद्ध चलेगा, लेकिन आध्यात्मिक अस्त्रों का उपयोग करना होगा। चाहे परिस्थिति को स्वीकार करने का शस्त्र हो, अहैतुक प्यार देने का हो, दायित्व लेने का या फिर कुछ सार्थक करने का अस्त्र-शस्त्र हो। इनके उपयोग से हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह या अहंकार के असुरों को समाप्त करना है। उसके बाद हम ज्यादा शांत, संतुष्ट और खुश होंगे।

नवदुर्गा रूपी शिव-शक्तियों को हम बाहर न ढूंढ़ें, बल्कि अपने अंदर ही देखें। आपमें शिव का दिव्य ज्ञान, दैवीगुण और शक्तियां मौजूद हैं। आप आत्मा के रूप में शक्तिस्वरूप हैं। शिव अर्थात कल्याणकारी सद्प्रवृत्तियों से जुड़ेंगे, तो आप दुष्प्रवृत्ति रूपी असुरों पर विजय प्राप्त कर लेंगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.