नसीरुद्दीन को प्रसिद्ध लेखक का जवाब- देश में भय का माहौल होता तो तस्लीमा भारत में न रहतीं
लेखक बालेंदु द्विवेदी ने कहा कि नसीरुद्दीन शाह के बयान से सहमत नहीं हूं। अगर देश में भय का माहौल होता, तो तस्लीमा भारत में न रहतीं।
इंदौर, नईदुनिया। 'देश के अच्छे अदाकारों में शुमार नसीरुद्दीन शाह ने डर लगने का अपना हालिया बयान जिन संदर्भों में दिया है, उससे मैं बहुत गहराई से वाकिफ नहीं हूं। लेकिन मैं भी देशभर में लगातार कार्यक्रमों के सिलसिले में यात्रा करता रहता हूं। इस नाते एक बात दावे के साथ कह सकता हूं कि आम लोगों में डर का कोई वातावरण नहीं है। इसलिए मेरे लिए नसीर साहब के बयान से सहमत होना संभव नहीं है। भारत एक ऐसा देश है, जहां बुद्धिजीवियों को पूरी स्वतंत्रता होती है, वरना तस्लीमा नसरीन पूरी दुनिया को छोड़कर भारत में ही रहना क्यों पसंद करती?' ये बेबाक टिप्पणी है ख्यात लेखक बालेंदु द्विवेदी की। नईदुनिया के सहयोग से हैलो हिंदुस्तान द्वारा आयोजित 'इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल' में शिरकत करने इंदौर आए द्विवेदी ने खास चर्चा में कई विषयों पर अपने विचार रखे।
हादसे भी जीवन को दे देते हैं नई दिशा
हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर द्विवेदी ने बताया कि बात करीब दस साल पहले तब के इलाहाबाद और आज के प्रयागराज की है। दीपावली का दिन था। एक मोटरसाइकिल में अचानक आग लग गई और इसके बाद शुरू हुआ हंगामेबाजी और हुड़दंग का सिलसिला। यहां तक कि वकील भी कूद पड़े। इसके चलते पूरे सिस्टम की कमियां और विसंगतियां सामने आने लगीं। मुझे इस घटना ने बहुत व्यथित किया और इससे जुड़ी छोटी से छोटी बात को नोट करने लगा। बाद में उसे कहानी 'हुड़दंग' की शक्ल दी। इस तरह शुरू हुआ सिलसिला कथा लेखन का।
उस घटना के पहले मैं समीक्षात्मक लेखन करता था, लेकिन बाद में पूर्णकालिक लेखक बन गया और कथाओं से लेकर उपन्यासों, नाटकों और यात्रा वृत्तांत आदि भी लिखने लगा। इसलिए जो लोग कहते हैं कि लेखक बनाए नहीं जाते, वो पैदाइशी होते हैं...उनसे मैं सहमत नहीं हूं। क्योंकि मेरी अपनी अनुभूति है कि कभी-कभी एक हादसा भी जीवन को नई दिशा दे देता है।
यूं तय होती है लेखक-समीक्षक की भूमिका
बतौर लेखक जब आप किसी नई कहानी या नाटक पर काम करते हैं तो पहली बार उसे लिखते समय आपका नजरिया शुद्ध रूप से लेखक का होता है, लेकिन जब उसे ही आप दोबारा री-राइट या री-रीड करते हैं, तो आपको समीक्षक की भूमिका में आ जाना चाहिए। इससे कृति की कमियां दूर होंगी और वो पाठक को कहीं अधिक सहजता से संप्रेषित हो सकेगी।
साहित्य का नया वातावरण बनाते हैं लिटरेचर फेस्टिवल
'इंदौर लिटरेचर फेस्टिवल' जैसे आयोजन हिंदी के नए लेखकों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद हैं। इनके जरिए साहित्य का नया वातावरण बनता है। पहले युवा लेखकों के पास संवाद का कोई मंच नहीं होता था, लेकिन अब इस कमी की भरपाई लिटरेचर फेस्टिवल बखूबी कर रहे हैं। इनका एक लाभ यह भी है कि इनकी वजह से लेखकों के मठाधीशी अहंकार और गुटबंदी पर भी रोक लग रही है।