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इन्हें साधे बिना पीएम बनने की राह मुश्किल है मोदी जी!

गठबंधन राजनीति के दौर में यदि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करती है तो उन्हें कई नए साथियों की तलाश करनी होगी। लेकिन इतना तय है कि भले ही वह अकेले दम पर भाजपा को सत्ता न दिला पाए लेकिन पार्टी की कुल सीटों की संख्या में इजाफा जरूर करा सकते हैं। यदि मोदी को पीएम की कुर्सी तक पहुंचना है तो उन्हें पुराने साथियों को जोड़े रखने के साथ-साथ नए साथियों को साधना भी जरूरी होगा।

By Edited By: Published: Thu, 27 Dec 2012 12:33 PM (IST)Updated: Thu, 27 Dec 2012 01:08 PM (IST)
इन्हें साधे बिना पीएम बनने की राह मुश्किल है मोदी जी!

नई दिल्ली। गठबंधन राजनीति के दौर में यदि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश करती है तो उन्हें कई नए साथियों की तलाश करनी होगी। लेकिन इतना तय है कि भले ही वह अकेले दम पर भाजपा को सत्ता न दिला पाए लेकिन पार्टी की कुल सीटों की संख्या में इजाफा जरूर करा सकते हैं। यदि मोदी को पीएम की कुर्सी तक पहुंचना है तो उन्हें पुराने साथियों को जोड़े रखने के साथ-साथ नए साथियों को साधना भी जरूरी होगा।

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नरेंद्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में इसकी बानगी भी पेश कर दी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है तमिलनाडु की मुख्यमंत्री व एआइडीएमके प्रमुख जयललिता का शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होना। इसके अलावा उन्होंने एमएनएस के राज ठाकरे, आरपीआइ के राम दास अठावले और आइएनएलडी के ओम प्रकाश चौटाला को भी बुलाकर एक संकेत तो अवश्य दे दिया है।

लेकिन यहां सवाल है कि भाजपा अभी 116 सीटों के आंकड़े को अपने बल बूते कितना बढ़ा पाएगी और साथियों से उन्हें कितना मदद मिलेगा। क्योंकि 272 का जादुई आंकड़ा छूने के लिए भाजपा को खुद कम से कम 180 का आंकड़ा पार करना होगा, जबकि साथियों से उसे 90 से ज्यादा सीटों की जरूरत होगी।

अभी के एनडीए की बात की जाए तो इनके पास कुल सीटों का आंकड़ा 156 का है जिसमें भाजपा के 116 के अलावा, जदयू की 20, शिवसेना की 11, अकाली दल की 4, तेलंगाना राष्ट्र समिति की 2, असम गण परिषद की 1, एनपीएफ की 1, हरियाणा जनहित कांग्रेस की 1 सीटें शामिल हैं।

यहां से यदि एनडीए को सीटों की संख्या की जरूरत की चर्चा की जाए तो उसे लगभग 120 सीटों की आवश्यकता होगी। इन सीटों में 60 सीटें भाजपा के खाते में डाल दिया जाए और 60 सीटें नए दोस्तों से प्राप्त करने का अनुमान लगाया जाए तो ऐसी स्थिति में मोदी को नए दोस्त की जरूरत पड़ेगी। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजद और आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी का हो सकता है। इनके पास यहां क्रमश: 19, 14 और छह सीटें हैं। इसके साथ ही तमिलनाडु में एआइडीएमके की जयललिता के पास 39 में 9 सीटें हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि पूर्व में ये सभी दल एनडीए का हिस्सा थे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में अजीत सिंह की पार्टी रालोद के पास 6 और झारखंड में झामुमो की दो सीटें हैं। इसलिए अभी के सीटों की संख्या का हिसाब लगाया जाए तो यह आंकड़ा 50 का बनता है और इसमें जयललिता 10 और सीटों का इजाफा कर लेती हैं तो मित्र दलों से प्राप्त सीटों की संख्या 60 तक पहुंच जाती है। एआइडीएमके की सीटों की संख्या बढ़ने की सबसे बड़ी वजह यह है कि 2009 में जब लोकसभा चुनाव हुआ था तब वहां डीएमके का शासन था और इसके कारण वह 18 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। वर्तमान में वहां जयललिता मुख्यमंत्री है इसलिए यह आंकड़ा पलट भी सकता है।

हालांकि एनडीए के लिए आदर्श स्थिति तब होगी जब कोई ऐसी छवि का नेता पीएम पद का दावेदार होगा जो सबको स्वीकार्य हो। लेकिन यदि मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया जाता है तो भाजपा को व्यक्तिगत लाभ तो मिलेगा, लेकिन कुछ पुराने और कुछ नए संभावित दोस्त छिटक भी सकते हैं। इसमें सबसे बड़ा डर नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और चंद्रबाबू नायडू को लेकर है। हालांकि नीतीश के हटने से भाजपा बिहार में कुछ सीटों का लाभ तो पा सकती है, लेकिन अन्य जगहों के संभावित साथियों को लेकर उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है। मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती नीतीश को साथ बनाए रखने और ममता बनर्जी को अपने साथ जोड़ने की होगी। यही दोनों फैक्टर मोदी के प्रधानमंत्री बनने के लिए अहम होने वाला है।

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