तपती धूप मे उमड़ता उत्साह: भुवनेश्वर पहुंचते ही मोदी के रोड शो में लगे नारे
भाजपा के लिए अगर ओडिशा अहम है तो चेहरा केवल मोदी ही हैं। भाजपा यह कह चुकी है कि ओडिशा मोदी की गरीब कल्याण योजनाओं की प्रयोगशाला है।
भुवनेश्र्वर, आशुतोष झा। हाल में बड़ी जीत के बाद पहली बार ओडिशा पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना देर किए एयरपोर्ट से सीधे जनता के बीच उतर गए। चिलचिलाती धूप को नजरअंदाज कर प्रदेश की जनता जहां सड़क किनारे उनके आगमन के लिए बेकरार थी, वहीं मोदी लगभग पांच किलोमीटर तक गाड़ी के दरवाजे पर खड़े होकर लगातार जनता का अभिवादन स्वीकार करते रहे।
मौखिक संवाद भले न हुआ हो, मोदी संकेतों-संकेतो में पंचायत चुनाव की जीत के लिए जनता को धन्यवाद भी देते रहे और शायद जनता के भरोसे की गर्माहट भी महसूस करते रहे। लगभग आधे घंटे के इस रोड शो के जरिए भाजपा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ओडिशा अब उसके लक्ष्य में नंबर एक पर खड़ा है।
भाजपा के लिए अगर ओडिशा अहम है तो चेहरा केवल मोदी ही हैं। भाजपा यह कह चुकी है कि ओडिशा मोदी की गरीब कल्याण योजनाओं की प्रयोगशाला है। साफ है कि यहां केवल उज्ज्वला ही नहीं, ऐसी कई योजनाएं अपने चरण पर दिखेंगी जो अगले पांच-सात वर्षों में ओडिशा की बीमारू छवि को बदलती दिखे। भाजपा ने गरीब कल्याण एजेंडा को लेकर पहले ही एक रोड मैप तैयार किया है जिसे कोझीकोड़ की कार्यकारिणी में पारित भी किया गया था।
शनिवार को प्रधानमंत्री की मौजूदगी और उतरते ही सबसे पहले जनता के बीच जाना इसी भरोसे को स्थापित करने का माध्यम था। यह रोड शो इसलिए भी अहम था क्योंकि पिछली कुछ कार्यकारिणी की तरह इस बार मोदी की कोई जनसभा आयोजित नहीं की गई है। कारण तपती गर्मी है। रोड शो के जरिए मूक संवाद पूरा कर लिया गया। ट्वीट कर मोदी ने ओडिशा की जनता की ओर से स्वागत के लिए अपना आभार भी जता दिया।
ध्यान रहे कि ओडिशा में हाल में हुए पंचायत चुनाव मे भाजपा उन स्थानों पर बड़ी जीत हासिल करने में कामयाब रही है जहां गरीबी परंपरा का हिस्सा बन चुकी है। इस चौंकाने वाली जीत ने पार्टी के अंदर भी विश्र्वास पैदा कर दिया है कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में कमल के लिए उपजाऊ जमीन है। अब नजर मोदी के रविवार को वाले समापन भाषण पर टिकी है। यह उम्मीद है कि शनिवार को रोड शो के दौरान मूक संकेत देने वाले मोदी रविवार को ओडिशा के लिए कुछ स्पष्ट संदेश देंगे। रविवार की सुबह वह 1817 में हुए पाइका विद्रोह के उन सेनानियों के परिवारों से भी मिलेंगे जिन्हें अंग्रेजों के खिलाफ संभवत: पहली लड़ाई छेड़ने का गौरव प्राप्त हुआ था।
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