विरोधियों से प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं
मैं अपने राजनीतिक विरोधियों से किसी प्रशंसा या प्रमाण पत्र की अपेक्षा भी नहीं रखता हूं। स्वाभाविक है कि वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करेंगे तथा झूठ या अर्द्धसत्य का सहारा लेंगे। मैं नहीं कहता कि आप मेरी बात मानिए। जमीनी हकीकत का सबसे अच्छा पैमाना क्या होता है..लोग खुश हैं या नहीं, विकास हुआ या नहीं, वादे पूरे हुए या नहीं।
भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी का पहला साक्षात्कार-
पेश हैं मोदी के दैनिक टाइम टेबल से लेकर देश के बारे में उनकी सोच और पड़ोसी देशों से रिश्तों के बारे में हुई लंबी चर्चा के प्रमुख अंश:
आपके राजनीतिक विरोधी एवं आलोचक गुजरात मॉडल पर सवाल उठाते हैं। आप क्या कहेंगे?
देखिए, मैं अपने राजनीतिक विरोधियों से किसी प्रशंसा या प्रमाण पत्र की अपेक्षा भी नहीं रखता हूं। स्वाभाविक है कि वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करेंगे तथा झूठ या अर्द्धसत्य का सहारा लेंगे। मैं नहीं कहता कि आप मेरी बात मानिए। जमीनी हकीकत का सबसे अच्छा पैमाना क्या होता है..लोग खुश हैं या नहीं, विकास हुआ या नहीं, वादे पूरे हुए या नहीं। इन सब सवालों का सबसे अच्छा उत्तर कौन दे सकता है.? मेरे हिसाब से लोकतंत्र में चुनाव से अच्छा पैमाना कोई नहीं होता है। गुजरात के मतदाताओं ने तीन बार अपनी राय बता दी, [थोड़ा मुस्कुराते हुए] हालांकि कांग्रेस के कुछ नेता गुजरात की जनता को मूर्ख समझते हैं, पर मैं इससे इत्तेफाक नहीं रखता। वैसे भी 2014 का लोकसभा चुनाव देश के लिए हो रहा है। गुजरात के लिए नहीं। केंद्र सरकार सवालों का जवाब देने की बजाय मुद्दों को भटकाने में लगी है। मैं आलोचकों से आग्रह करूंगा कि वे गुजरात आएं और खुद मूल्यांकन करें। जैसा कि हमारे पर्यटन के ब्रांड अंबेसडर अमिताभ बच्चन कहते हैं-कुछ दिन तो गुजारिए गुजरात में, फिर चाहे जो आलोचना करें, उसका स्वागत है।
केंद्र और राच्यों के बारे में आपने कई बार अपनी बात रखी है। प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा है। संघीय ढांचे के बारे में क्या विचार है?
मैं पिछले बारह साल से मुख्यमंत्री के तौर पर एक राच्य का नेतृत्व कर रहा हूं। मैंने राच्यों के प्रति केंद्र के भेदभावपूर्ण रवैये को नजदीक से देखा है। अफसोस की बात है कि आजादी के बाद से धीरे-धीरे राज्यों को कमजोर किया गया। दरअसल कांग्रेस की मानसिकता ही संघीय ढांचे के खिलाफ बन गई है। वह राज्यों को केंद्र के समकक्ष मानने की बजाय उन्हें अपने अधीन मानने लगी है। जैसा मैंने कहा कि इस भेदभाव को बहुत करीब से देखा है। इसीलिए यह सुनिश्चित करूंगा कि संविधान की व्यवस्था को उसकी मूल भावना के अनुरूप कार्यान्वित किया जाए। देश का विकास तभी संभव है, जब केंद्र सरकार एवं सभी राज्य सरकारें कंधे से कंधा मिलाकर एक टीम के रूप में काम करें। प्रधानमंत्री एवं सभी मुख्यमंत्रियों के बीच भी आपसी सहयोग एवं परस्पर विश्वास की भावना का होना जरूरी है।
गुजरात में पिछले एक दशक से विकास दर 10 फीसद से ज्यादा रही है। क्या यह करिश्मा राष्ट्रीय स्तर पर दोहराया जा सकता है?
गुजरात इस देश का ही हिस्सा है। जो गुजरात में संभव है, वह पूरे देश में हो सकता है। वैसे भी आर्थिक विकास एवं प्रगति के मामले में भाजपा और राजग का ट्रैक रिकार्ड अच्छा है। वाजपेयी जी की सरकार के समय भी विकास दर आठ फीसद से ऊपर थी। आज मुद्रास्फीति की दर आठ फीसद है और विकास दर चार फीसद। गुजरात के अनुभव ने मुझे सिखाया है कि यदि सरकार में पारदर्शिता हो एवं निर्णय लेने की प्रक्रिया सरल व प्रभावी हो तो औद्योगिक निवेश स्वयं होता है। हमारा जो ट्रैक रिकार्ड है, उसके मद्देनजर यह बहुत मुश्किल नहीं होगा।
महंगाई के लिए भाजपा संप्रग की नीतियों को जिम्मेदार ठहराती रही है। क्या आप वादा करेंगे कि आपकी सरकार बनी तो महंगाई कम होगी या अंकुश लगेगा?
कांग्रेस की सरकार ने सौ दिन में महंगाई कम करने की बात कही थी। पांच साल पूरा हो गया, वादा पूरा नहीं हुआ। मैं मानता हूं कि ऐसी वादाखिलाफी के कारण जनसामान्य में राजनीतिक पार्टियों के लिए शक पैदा होता है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि मोरारजी देसाई की सरकार हो या अटल बिहारी वाजपेयी जी की, उस दौरान महंगाई पर पूरी तरह अंकुश था। हमारा ट्रैक रिकार्ड बताता है कि भाजपा की सरकारों ने हमेशा गरीबों के प्रति संवेदनशीलता दिखाई है।
सब्सिडी धीरे-धीरे खत्म करना तो भाजपा की नीतियों का भी हिस्सा है। संप्रग भी यही करती रही है। फिर आलोचना क्यों?
[थोड़ा समझाने की मुद्रा में] पंडित दीनदयाल उपाध्याय के अंत्योदय सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि देश के संसाधनों पर पहला हक गरीबों का है। इस दृष्टि से गरीबों को कुछ सब्सिडी दी जाए, यह जायज है। उसमें किसी का विरोध नहीं हो सकता है। अहम फर्क यह है कि कांग्रेस गरीबों को वोटबैंक के रूप में देखती है एवं चाहती है कि वे गरीब ही बने रहें और सरकार पर निर्भर रहें ताकि उनका वोटबैंक कायम रहे। दूसरी तरफ हमारा मानना है कि उन्हें गरीबी के खिलाफ लड़ने के लिए ताकतवर बनाना होगा।
आपने चीन और जापान जैसे देशों का भ्रमण किया। लेकिन पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों से बेहतर रिश्ते का कोई फार्मूला?
सबसे पहले तो मेरा मानना है कि एक सशक्त भारत ही पड़ोसी देशों के साथ अच्छे रिश्ते सुनिश्चित कर सकता है। आपसी सहयोग और मैत्री की भावना पर हम आगे बढ़ेंगे। हम प्रो एक्टिव होंगे लेकिन यह ध्यान रखा जाएगा कि राष्ट्रहित सबसे ऊपर रहे।
भ्रष्टाचार इस चुनाव में बड़ा मुद्दा है। अब सरकार भी इसे रोकने के लिए कुछ विधेयक और अध्यादेश ला रही है। इस व्यवस्था में परिवर्तन के लिए आपके पास क्या सुझाव हैं?
[थोड़ा आक्रामक लहजे में] भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए पहली और अहम जरूरत है, शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व की प्रामाणिकता। यदि शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व स्वयं भ्रष्ट हो या फिर अपनी कमजोरी की वजह से भ्रष्टाचार को मौन स्वीकृति दे रहा हो तो इसे कौन रोकेगा। ऐसा प्रामाणिक नेतृत्व कौन सा दल दे सकता है, यह जनता को तय करना है। मेरा स्पष्ट मानना है कि लड़ाई सिर्फ कानून से नहीं लड़ी जाती है। नेकनीयत आवश्यक है लेकिन भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए अनुभव और सशक्त नेतृत्व की जरूरत है। वैसे तो मेरी पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि राष्ट्रभावना से प्रेरित है लेकिन फिर भी वादा करूंगा कि हम भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति अपनाएंगे।
मोदी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो बोल्ड है और नेतृत्व के लिए इसकी जरूरत होती है। लेकिन कभी-कभी डिक्टेटर होने की हद तक बोल्ड होने का आरोप लगता है?
हमारे देश में लोकतंत्र है और उसके तहत हर किसी को अपने विचार रखने का अधिकार है। इसलिए मेरे बारे में कौन क्या कहता है, इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। वषरें से हमारी राजनीति में अनिर्णायकता की परिस्थिति इतनी प्रगाढ़ बन गई है कि निर्णायक नेतृत्व को सामान्यत: आलोचना का शिकार होना पड़ता है। मेरा मानना है कि कोई भी निर्णय लेने से पहले सलाह मशविरा आवश्यक है ताकि सभी की भागीदारी सुनिश्चित हो। परंतु एक निर्णय होने के बाद उसका समयबद्ध अमल होना भी आवश्यक है। अन्यथा हम पारालिसिस बाय एनालिसिस का शिकार हो जाते हैं।
आपने तो बचपन में तमाम लोगों को मीठी चाय की चुस्की दी होगी। फिर क्या कारण है कि आपकी जुबान लोगों को चुभती है। आप पर आरोप है कि बहुत तीखा बोलते हैं।
[जोर से ठहाका लगाते हैं.] आप अक्सर देखेंगे कि मैं व्यक्तिगत आलोचनाओं से दूर रहता हूं। परंतु जो मुद्दे जनहित में उठाने आवश्यक हैं, उनको न उठाऊं तो उचित नहीं होगा। उदाहरण के तौर पर वंशवाद का मुद्दा जनहित का मुद्दा है। अफसोस कि कुछ लोग इसे व्यक्तिगत आलोचना के रूप में लेते हैं। जिस प्रकार का कीचड़ मुझपर उछाला गया एवं झूठ के पुलिंदों के आधार पर मुझे निशाना बनाया गया, उसे यदि आप ध्यान में रखें तो शायद ही आप स्वीकार करेंगे कि मैं ज्यादा तीखा बोलता हूं।
एक सवाल हर किसी के मन में है, मोदी चुनाव किस संसदीय क्षेत्र से लड़ेंगे?
[रहस्यमय अंदाज में मुस्कराते हुए] भाजपा में उम्मीदवार चुनने की लंबी प्रक्रिया है। पार्टी की चुनाव समिति यह फैसला करती है।