मुस्लिम पर्सनल लॉ को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर परखेगा सुप्रीमकोर्ट
मुस्लिम पर्सनल ला और कामन सिविल कोड का मुद्दा जब भी कोर्ट पहुंचा, बात सरकार पर आकर टिक गई।
नई दिल्ली [माला दीक्षित]। मुस्लिम पर्सनल ला और कामन सिविल कोड का मुद्दा जब भी कोर्ट पहुंचा, बात सरकार पर आकर टिक गई। पर्सनल ला में कोर्ट की दखलंदाजी का विरोध करने वाले हमेशा यही दलील देते रहे कि कामन सिविल कोड संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्व का हिस्सा है और इसे लागू करना सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है कोर्ट इस पर आदेश नहीं दे सकता।
कोर्ट भी इक्का दुक्का टिप्पणियों के अलावा इस मुद्दे से हमेशा दूरी बनाए रहा, लेकिन अब ऐसा नहीं है।
मुस्लिम पर्सनल ला (शरीयत) के प्रावधान तीन तलाक, हलाला और बहु विवाह को सुप्रीमकोर्ट मौलिक अधिकारों की कसौटी पर परखेगा। एक मुस्लिम महिला शायरा बानो ने सम्मान से जीवन जीने के मौलिक अधिकार की दुहाई देते हुए शरीयत के इन प्रावधानों को चुनौती दी है। उसने इन तीनों प्रावधानों को असंवैधानिक ठहराने की मांग की है।
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साथ ही उसकी तलाक की डिक्री भी गैरकानूनी घोषित करने की मांग की है। हर नागरिक को मौलिक अधिकारों के हनन पर सीधे सुप्रीमकोर्ट जाने का अधिकार है और उसके अधिकारों की रक्षा करना कोर्ट का कर्तव्य है। ऐसी स्थिति में सुप्रीमकोर्ट को पसर्नल ला के इन प्रावधानों को मौलिक अधिकारों की कसौटी पर कसना पड़ेगा। कोर्ट याचिका पर सरकार को नोटिस जारी कर चुका है। सोमवार को फिर सुनवाई होगी।
शायरा बानो की याचिका के अलावा मुस्लिम महिलाओं के हक पर सुप्रीमकोर्ट ने पहले ही गत 16 अक्टूबर को स्वयं संज्ञान ले लिया था और अटार्नी जनरल व नेशनल लीगल सर्विस अथारिटी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। यह मामला भी सोमवार को लगा है।
शायरा की याचिका का सरकार ने अभी जवाब नहीं दिया है। हालांकि स्वयं संज्ञान मामले में मुसलमानों के धार्मिक संगठन जमीयत उलेमाए हिंद और मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने विरोध किया है। दोनों ने सुप्रीमकोर्ट में पक्ष रखते हुए कहा है कि कोर्ट पर्सनल ला के मुद्दे पर विचार नहीं कर सकता। सुप्रीमकोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह कहते हैं कि ये दलीलें जनहित याचिका पर सुनवाई के मामले में कुछ हद तक लागू हो सकती हैं लेकिन अगर कोई नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के हनन की शिकायत लेकर कोर्ट पहुंचता है तब ये बात लागू नहीं होगी।
शायरा बानों जिसे उसके पति ने तलाक दे दिया है, कोर्ट जाकर एक तरफा तीन तलाक के प्रावधान को मौलिक अधिकारों का हनन बताकर चुनौती देती है तो कोर्ट न सिर्फ उसकी बात सुनेगा बल्कि इस तथ्य की जांच परख भी करेगा। कोर्ट उसे टाल नहीं सकता। यहां पीडि़ता कोर्ट पहुंची है इसलिए स्थिति बदल गई है।
कामन सिविल कोड के मामले में संविधान सभा में जब बहस हो रही थी तो उस समय भी कुछ लोगों ने पर्सनल ला का मुद्दा उठाया था तब केएम मुंशी ने कहा था कि लोग समझते हैं कि विरासत और उत्तराधिकार उनके धर्म का हिस्सा है लेकिन अगर ऐसा होगा तो आप महिलाओं को कभी बराबरी का हक नहीं दे पाएंगे। मुंशी ने आगे कहा लेकिन आप पहले ही ऐसा हक देने वाला मौलिक अधिकार पास कर चुके हैं जिसमें कहा गया है कि लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। शायरा ने याचिका में बराबरी के हक की दुहाई दी है।