एमएसएमई ईपीसी का मंत्रालय से कोई संबंध नहीं, सरकारी विभाग ने लोगों को किया सचेत
सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय ने शनिवार को कंपनियों और आम जनता को सचेत किया है कि एमएसएमई एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (एमएसएमई ईपीसी) नाम के संगठन का उससे किसी भी तरह से कोई संबंध नहीं है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय ने शनिवार को कंपनियों और आम जनता को सचेत किया है कि एमएसएमई एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (एमएसएमई ईपीसी) नाम के संगठन का उससे किसी भी तरह से कोई संबंध नहीं है। मंत्रालय ने लोगों से कहा कि वे काउंसिल की अनधिकृत और बुरे इरादों वाली गतिविधियों के झांसे में नहीं आएं।
एमएसएमई मंत्रालय ने एक स्पष्टीकरण जारी कर कहा कि कई सूचनाओं के मुताबिक यह संगठन खुद को मंत्रालय का हिस्सा बताता है और लोगों को झांसे में ले लेता है। मंत्रालय ने कहा कि एमएसएमई ईपीसी द्वारा निदेशक पद पर नियुक्ति पत्र जारी करने के संबंध में कुछ संदेश विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित किये जा रहे हैं। यह संगठन एमएसएमई मंत्रालय के नाम का भी उपयोग कर रहा है।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि काउंसिल का एमएसएमई मंत्रालय से कोई संबंध नहीं है। मंत्रालय ने काउंसिल को संबंधित किसी भी पद पर नियुक्ति के लिये अधिकृत नहीं किया है। हालांकि अपनी वेबसाइट पर एमएसएमई एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने स्पष्ट किया है कि वह एक निजी कंपनी है, जो परमार्थ कार्यो के लिए स्थापित की गई है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए सरकार कृषि क्षेत्र के विकास के साथ ही गांव-गांव में उद्योगों को बढ़ावा देने में जुट गई है। इसके लिए ग्रामोद्योग विकास योजना (जीवीवाइ) के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) मंत्रलय की तरफ से गांवों में अगरबत्ती निर्माण, मधुमक्खी पालन और मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए नई योजना की शुरुआत की गई है। प्रशिक्षण के बाद ग्रामीणों को उद्योग लगाने के लिए आíथक मदद भी दी जाएगी। सरकार का उद्देश्य तीनों ही क्षेत्रों में एक-दो साल के बाद क्लस्टर आधारित उत्पादन शुरू करने की है।
एमएसएमई मंत्रलय के मुताबिक, भारत में अगरबत्ती का कारोबार 7,500 करोड़ रुपये का है जिसमें 750 करोड़ रुपये का निर्यात भी शामिल है। इस कारोबार से पांच लाख से ज्यादा लोग जुड़े हैं। वैसे ही, ब्रिटेन, जर्मनी, स्पेन, अमेरिका, जापान, फ्रांस और इटली जैसे देशों में भारतीय मधु (शहद) की मांग लगातार बढ़ रही है। भारत सालाना एक लाख टन मधु का उत्पादन करता है।