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मूक-बधिर कर सकेंगे मातृभूमि की वंदना, सांकेतिक भाषा में तैयार हुई संघ की प्रार्थना

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखाओं में जाने वाले मूक-बधिर कार्यकर्ता भी अब सांकेतिक भाषा (साइन लैंग्वेज) में नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे प्रार्थना के माध्यम से मातृभूमि की वंदना कर पाएंगे। इंदौर की संस्था आनंद सर्विस सोसायटी ने इसे इंटरनेट मीडिया पर वायरल भी कर दिया है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 25 Sep 2021 08:14 PM (IST)Updated: Sat, 25 Sep 2021 10:02 PM (IST)
मूक-बधिर कर सकेंगे मातृभूमि की वंदना, सांकेतिक भाषा में तैयार हुई संघ की प्रार्थना
मूक-बधिर कार्यकर्ता भी मातृभूमि की वंदना कर पाएंगे।

 अभिषेक चेंडके, इंदौर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की शाखाओं में जाने वाले मूक-बधिर कार्यकर्ता भी अब सांकेतिक भाषा (साइन लैंग्वेज) में 'नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे' प्रार्थना के माध्यम से मातृभूमि की वंदना कर पाएंगे। प्रार्थना के सांकेतिक रूप को तैयार कर मूक-बधिरों को इसका प्रशिक्षण देने वाली इंदौर की संस्था आनंद सर्विस सोसायटी ने इसे इंटरनेट मीडिया पर वायरल भी कर दिया है, ताकि देशभर में संघ की प्रार्थना को मूक-बधिर सांकेतिक भाषा में समझ सकें।

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साल भर की मेहनत के बाद बनी सांकेतिक प्रार्थना

मूक-बधिरों और सामान्य लोगों के बीच सेतु बनकर उनकी शिक्षा के लिए कई वर्षों से काम करने वाली आनंद सर्विस सोसायटी ने सालभर की कवायद के बाद संघ की प्रार्थना को सांकेतिक भाषा में ढाला है। उन्हें इस रूप में प्रार्थना के शुभारंभ के लिए सरसंघचालक डा. मोहन भागवत के इंदौर आने की प्रतीक्षा थी। यह प्रतीक्षा 22 सितंबर को पूरी हुई और संघ प्रमुख के हाथों प्रार्थना के सांकेतिक रूप का शुभारंभ हुआ।

पहले हिंदी में किया गया अनुवाद

सोसायटी की संचालिका मोनिका पुरोहित बताती हैं कि मूल प्रार्थना संस्कृत में है। उसका सांकेतिक भाषा में रूपांतरण चुनौतीपूर्ण था। अत: प्रार्थना के संस्कृत शब्दों का पहले हिंदी में अनुवाद किया गया और फिर उसे सांकेतिक भाषा में ढाला गया। इस बात का भी ध्यान रखा गया कि अनुवाद व सांकेतिक भाषा में प्रार्थना का भाव जरा भी न बदले। जब हमने डा. भागवत को सांकेतिक भाषा में प्रार्थना तैयार किए जाने की जानकारी दी, तो उन्होंने इसे देखने की इच्छा जताई। तीन मिनट की प्रार्थना को देखकर वह काफी प्रसन्न हुए।

मूक-बधिर भाई बने प्रेरणा

सोसायटी के संचालक ज्ञानेंद्र पुरोहित बताते हैं, 'मेरे बड़े भाई आनंद मूक-बधिर थे। वर्ष 1997 में एक हादसे में उनका निधन हो गया। आनंद संघ की शाखाओं में खेल गतिविधियों में तो भाग लेते थे, लेकिन उन्हें संघ की प्रार्थना समझ नहीं आती थी। तबसे ही विचार था कि संघ की प्रार्थना को सांकेतिक भाषा में तैयार कर भाई आनंद को सच्ची श्रद्धांजलि दी जाए।'

सहायक साबित होगी सांकेतिक भाषा में प्रार्थना

संघ के आनुषंगिक संगठन 'सक्षम' के मालवा प्रांत के पूर्व सचिव गुलशन जोशी बताते हैं कि संघ से दिव्यांग भी जुड़े हैं। संघ की शाखाओं में मूक-बधिर भी शामिल होते हैं। वे खेल व अन्य गतिविधियां आसानी से कर लेते हैं। अब सांकेतिक भाषा में रूपांतरित की गई प्रार्थना उनके लिए सहायक साबित होगी।

पुणे में पहली बार लय में प्रस्तुत की गई थी प्रार्थना

इंदौर महानगर के विभाग सह प्रचार प्रमुख प्रांजल शुक्ल ने बताया कि संघ की प्रार्थना को वर्ष 1939 में नागपुर में हुई एक बैठक में तैयार किया गया था। पहले यह मराठी-अवधी मिश्रित हिंदी में तैयार की गई थी। सारे देश में प्रार्थना का एक स्वरूप रखने के उद्देश्य से फिर इसका संस्कृत में अनुवाद किया गया। 23 अप्रैल 1940 को पुणे के संघ शिक्षा वर्ग में संस्कृत में अनुवादित प्रार्थना पहली बार लय में यादव राव जोशी ने प्रस्तुत की थी।

मूक-बधिरों के प्रशिक्षण व काउंसिलिंग में सक्रिय है संस्था

आनंद सर्विस सोसायटी मूक-बधिरों के प्रशिक्षण व काउंसिलिंग के लिए काम करती है। मूक-बधिरों की परेशानी सुनने के लिए इंदौर के तुकोगंज थाने में इसी संस्था के सहयोग से मूक-बधिर पुलिस सहायता केंद्र संचालित किया जाता है। संस्था से मूक- बधिर आनलाइन सहायता भी प्राप्त करते हैं। इससे उनकी कानूनी मदद भी हो पाती है। पाकिस्तान से भारत आई मूक-बधिर गीता के माता-पिता को ढूंढने में भी संस्था सहायता कर रही है।

राष्ट्रगान व प्रसिद्ध फिल्मों के संवाद भी किए तैयार

ज्ञानेंद्र बताते हैं कि हमारी संस्था ने मूक-बधिरों के लिए शोले, गांधी, तारे जमीं पर, मुन्नभाई एमबीबीएस जैसी फिल्मों के संवादों को भी सांकेतिक भाषा में प्रस्तुत किया है। इसी तरह वर्ष 2003 में राष्ट्रगान को भी सांकेतिक भाषा में तैयार किया जा चुका है।


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